शोर प्रदूषण (Noise pollution)

शोर प्रदूषण का अध्ययन करने के पूर्व, शोर और ध्वनि में अंतर समझना आवश्यक है। ध्वनि (Sound) कर्णप्रिय होता है और अनचाही ध्वनि को शोर (Noise) कहते हैं।

चारों ओर लाउड स्पीकर, टेलीविजन, टेप रिकार्डर, बैंड बाजों की अवांछित ध्वनि ही शोर प्रदूषण है।

सायमन्स के अनुसार “निरर्थक अथवा अनुपयोगी ध्वनि ही शोर प्रदूषण है।

विल्सन के अनुसार "ऐसी कोई भी आवाज जो व्यक्ति के लिए अवांछित हो, ग्रहण के लिए असहय हो वह शोर कहलाता है। "


चिड़ियों की चहचहाहट और बांसुरी की आवाज, हमें कर्णप्रिय लगती हैं पर बैंड बाजों की आवाज, तेजी से बजता लाउडस्पीकर, हार्न की कर्कष ध्वनि, फटाके की आवाज, हमें बेचैन कर देती है। अर्थात, आवाज यदि कर्णप्रिय हो तो वह ध्वनि है और यदि ककर्ष हो तो वह शोर है।

शोर प्रदूषण के कारण

औद्योगिक संस्थान, टेलिविजन, हवाई जहाज का शोर, वाहनों के हॉर्न, विविध प्रकार की मशीनें, विस्फोटक पदार्थ, अवांछित ध्वनि उत्पन्न करते हैं। बादल का गरजना, बिजली का चमकना, अतिवृष्टि, शोर प्रदूषण के प्राकृतिक कारण हैं।

शोर प्रदूषण के प्रभाव

ध्वनि की ईकाई डेसीबल है। सामान्य फुस-फुसाहट 10 डेसीबल, समूहों का वार्तालाप 30 डेसीबल, मोटर साइकल की आवाज 105 डेसीबल, जेट वायुयान की आवाज 140 डेबल, फटाके और बम की आवाज 140-170 डेसीबल की तीव्रता उत्पन्न करती है। वैज्ञानिकों की अनुसार 80 डेसीबल की तीव्रता तक की आवाज मानव सहन कर सकता है, इसके अधिक की तीव्रता वाले आवाज मस्तिष्क और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। और कभी-कभी जानलेवा भी हो जाते हैं।

मुंबई के डॉ. ओक (1995) के अनुसार शोर से एक प्रकार का तनाव पैदा होता है जिससे अंत: स्त्रावी ग्रंथियाँ, विशेष कर एड्रीनल सक्रिय हो जाते हैं जिससे रक्त चाप और हृदय गति बढ़ जाति है।

शोर प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव हैं -

1. बहरापन उत्पन्न होना, क्योंकि शोर का प्रभाव, कान तथा तन्त्रिका तन्त्र पर ज्यादा पड़ता है।


2. अधिक शोर से, हृदय रोग, मानसिक रोग, थकावट और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होते हैं।

3. शोर से आंखों की पुतली के आकार में परिवर्तन हो जाता है।

4. हवाई अड्डों के पास रहने वाले लोगों में W.B.C. (श्वेत रक्त कणाकाऐं) की मात्रा तथा कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है।

5. हार्मोन्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है, खासकर एड्रीनलीन का स्त्राव अधिक होने लगता है जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है।

6. शोर के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु के हृदय की धड़कन, अनियमित हो जाने से शारीरिक विकलांगता आ जाती है।

7. विस्फोटक शोर, कान के पर्दे को क्षतिग्रस्त करते हैं।

8. अधिक शोर से नपुन्सकता उत्पन्न हो जाती है।

शोर प्रदूषण से नियन्त्रण

1. हवाई हड्डों के समीप लोगों का बसाव नहीं होना चाहिये।

2. अस्पताल, विद्यालय जैसे संस्थाओं के समीप, ध्वनि नियन्त्रक का प्रयोग आवश्यक है।

3. कल-कारखानों में कम ध्वनि वाले सायरन का उपयोग होना चाहिए।

4. ऐसी जगहों पर, जहाँ शोर पर नियन्त्रण कठिन है, इयरप्लग का उपयोग अनिवार्य होना चाहिये ।

5. शासन द्वारा इस पर पहल की जा रही है कि लाउड स्पीकर का प्रयोग कम से कम हो

6. वाहनों के हॉर्न की ध्वनि नियन्त्रित की जानी चाहिये।

7. कुछ पौधे, शोर-प्रदूषण को नियन्त्रित कर सकते हैं, अत: इस प्रकार के पौधों का रोपण करना चाहिये।

8. घर में दूरदर्शन का प्रयोग ध्वनि उत्पन्न करे, शोर नहीं, इसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।