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मेढक में तीन जनन स्तर तक बनने की क्रिया | Formation up to three reproductive levels in frog

मेढक में तीन जनन स्तर तक बनने की क्रिया

मेढक का अण्डा गोलाकार होता है। यह तीन झिल्लियों से घिरी होती है, जिन्हें अंदर से प्लाज्मा - झिल्ली, विटेलाइन झिल्ली तथा बाह्य जेली कोट कहते हैं। कोशिकाद्रव्य बाहरी कॉर्टेक्स तथा केन्द्रीय एण्डोप्लाज्म में बँटा रहता है। कॉर्टेक्स के भाग में गाढ़े भूरे तथा कार्टिकल ग्रेन्यूल्स पाये जाते हैं। अण्डे में प्राणी ध्रुव एवं वर्धी ध्रुव स्पष्ट होता है। नाभिक प्राणी ध्रुव की तरफ स्थित होता है। यह अण्डा मेगालेसिथल तथा टिलोलेसिथल प्रकार का होता है।


प्रारम्भिक विदलन (Early cleavage) - मेढक के भ्रूण में विभाजन बराबर एवं पूर्ण होता है। इसमें संपूर्ण अण्डा विभाजन में भाग लेता है। अतः विभाजन पूर्णभंजी प्रकार का होता है। प्रथम विभाजन रेखांशीय (meridional) होता है, जिससे जाइगोट दो भागों में बँट जाता है। यह विभाजन प्राणी ध्रुव से प्रारम्भ होकर ग्रे क्रीसेन्ट की मध्य रेखा के रूप में फैलता हुआ वेन्ट्रल सतह पर पूरा होता है। इसके एक घंटे बाद दूसरा विभाजन भी रेखांशीय परन्तु प्रथम विभाजन के समकोण पर होता है, जिससे अब अण्डा चार कोशिकाओं में बँट जाता है। इनका प्राणी ध्रुव वाला भाग काला तथा वर्धी ध्रुव वाला भाग पीतक व सफेद होता है। धूसर भाग केवल दो पृष्ठ कोरक-खण्डों में होता है। अतः ये समान नहीं होते हैं। इसके लगभग 2 घण्टे पश्चात् तीसरा विदलन होता है, जो कि अनुप्रस्थ तथा भ्रूण की भूमध्य रेखा से कुछ हटकर होता है, जिससे भ्रूण ऊपर की ओर 4 छोटे तथा नीचे की ओर 4 बड़े ब्लास्टोमीयर्स बन जाते हैं।

मॉरुला प्रावस्था (Morula Stage) - चतुर्थ विदलन दोहरा होता है, जिससे प्रत्येक ब्लास्टोमीयर्स दो भागों में बँट जाते हैं, जिससे 16 ब्लास्टोमीयर्स का निर्माण होता है, जिससे प्राणी ध्रुव पर आठ छोटे माइक्रोमीयर्स तथा वर्धी ध्रुव पर आठ मैक्रोमीयर्स बन जाते हैं। पाँचवें विभाजन के फलस्वरूप 32 कोशिकाओं का भ्रूण बनता है और इस अवस्था को मॉरुला कहते हैं।

ब्लास्टुला प्रावस्था (Blastula Stage) - मॉरुला बनने के बाद विभाजन अनियमित हो जाता है, जिससे माइक्रोमीयर्स तेजी से विभाजित होने लगते हैं, जबकि मैक्रोमीयर्स धीरे-धीरे विभाजित होते हैं। अब धीरे-धीरे छोटे एवं बड़े ब्लास्टोमीयर्स के बीच एक विखण्डन गुहा बनने लगती है जिसे, ब्लास्टोसील (blastocoel) कहते हैं। यह अकेन्द्रिक होती है, इसमें क्षारीय ऐल्बूमेन भरा रहता है। यह गुहा धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और प्राणी ध्रुव की खण्डों से बनी छत पतली होती है। यह प्रावस्था सीलो ब्लास्टुला कहलाती है।

संभावी क्षेत्र (Presumptive area) - मेढक के ब्लास्टुला की सम्पूर्ण सतह को तीन क्षेत्रों में विभाजित करते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में प्राणी के भविष्य के अंगों को पहचाना जा सकता है।

(i) प्राणी क्षेत्र (Animal region) - यह बड़ा, गहरा भूरा या काला ब्लास्टुला का भाग होता है, जो कि ध्रुव में होता है, इसमें दो भाग होते हैं

(1) सम्भावी एपिडर्मल एक्टोडर्म का क्षेत्र (Region of prospective epidermal ectoderm) - यह भ्रूण की त्वचा की एपिडर्मिस (Epidermis) में विकसित होती है।

(2) केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र का सम्भावी क्षेत्र (Region of prospective central nervous sys tem) - इसके अन्तर्गत मस्तिष्क (Brain), सुषुम्ना (Spinal cord) और उपक्षेत्र (Subareas) नेत्रों (Eyes), कान (Ears) एवं नाक (Nose) के लिए होता है।

(ii) परिधीय या मध्यस्थ क्षेत्र (Marginal or Intermediate zone) - इसके अन्तर्गत ग्रे क्रीसेण्ट (Grey crescent) क्षेत्र आता है, जो कि ब्लास्टुला के विषवत् क्षेत्र के चारों ओर होता है। 

इसमें निम्नलिखित क्षेत्र आते हैं -

(1) नोटोकॉर्ड क्षेत्र (Notochord region) - सम्भावी नोटोकॉर्ड क्षेत्र ब्लास्टुला के पृष्ठीय भाग पर होता है।

(2) प्रीकॉर्डल प्लेट (Prechordal plate) - ये नोटोकॉर्ड क्षेत्र के पीछे वर्धी ध्रुव की ओर स्थित होता है। यह भ्रूण के प्रीकॉर्डल संयोजी ऊतक (Connective tissue) में विकसित होता है।

(3) आहारनाल के अग्र भाग का क्षेत्र (Area for the anterior part of alimentary canal) - यह प्री-कार्डल क्षेत्र के नीचे स्थित होता है और मुख, क्लोम क्षेत्र (Gill region) एवं ग्रसनी (Pharynx) की एण्डोडर्मल स्तर को निर्मित करता है।

(4) खण्डीय पेशियों का क्षेत्र (Region of segment muscles) - यह नोटो-कॉर्ड के क्षेत्र के दोनों ओर पाया जाता है तथा धड़ की पेशियों में विकसित होता है।

(5) वर्धी क्षेत्र (Vegetal region) - यह भ्रूण के वर्धी अर्द्धांश (Vegetal half) में पाया जाता है। इसमें अवर्णकीय बड़े आकार के मैक्रोमीयर्स (Macromeres) होते हैं। यह क्षेत्र मध्यान्त्र (Mid gut) एवं पश्चान्त्र (Hind gut) में विकसित होता है।

गैस्ट्रूलेशन (Gastrulation) - गैस्ट्रूलेशन की क्रिया में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ होती हैं -

(i) कोशिकाओं का स्थानान्तरण (Migrations of cells) - सर्वप्रथम ब्लास्टुला की दीवार के धूसर भाग की गहराई में स्थित कोशिकाएँ सामने की ओर शुक्राणु प्रवेश भाग में चली जाती हैं, जिसमें ग्रे-क्रीसेण्ट (धूसर वाले भाग) की दीवार पतली हो जाती है।

(ii) परिवृद्धि (Epiboly) - प्राणी ध्रुव की कोशिकाएँ तेजी से विभाजित होकर वर्धी ध्रुव के ऊपर फैलने लगती हैं, इसे एपिबोली (Epiboly) कहते हैं। इसके कारण भ्रूण का अधिकांश भाग काला दिखाई पड़ता है। बाहर से देखने पर सीमान्त क्षेत्र का परिधीय व्यास कम हो जाता है तथा वर्धी गोलार्द्ध पर इतना दबाव बढ़ जाता है कि मैक्रोमीयर स्तर माइक्रोमीयर स्तर से थोड़ा हटकर ब्लास्टोसील गुहा की ओर झुक जाता है। अतः इन क्षेत्रों में मैक्रोमीयर्स तथा माइक्रोमीयर्स के बीच ब्लास्टोसील से जुड़ी एक गैस्टूलर दरार (Gastrular slit) बन जाती है।

(iii) अन्तर्वृद्धि (Emboly) - भ्रूण की मध्य रेखा के पीछे सम्भावी अन्तः स्तर की कुछ मैक्रोमीयर्स कोशिकाएँ भीतर की ओर धँसने लगती हैं। अत: यहाँ 'S' के आकार की एक दरार बन जाती है, इसी को अन्तर्वेशन (Invagination) कहते हैं तथा इससे बनी दरार की गुहा को आर्केण्ट्रॉन (Archenteron) तथा इसके द्वार को ब्लास्टोपोर (Blastopore) कहते हैं।

ब्लास्टोपोर का ऊपरी प्रीकॉर्डल प्लेट से लगा भाग पृष्ठ होंठ (Dorsal lip) कहलाता है।

(iv) अन्तर्वलन (Involution) - प्रीकॉर्डल प्लेट की कोशिकाएँ ब्लास्टोपोर के पृष्ठ होंठ पर घूमकर भीतर की ओर बढ़ने लगती हैं, जिससे आर्केण्ट्रॉन गहरी व ब्लास्टोसील सँकरी होने लगती है। बाहरी कोशिकाओं की इस प्रकार भीतर की ओर घूमकर बाहरी स्तर के नीचे फैलने की क्रिया को अन्तर्वलन कहते हैं। प्रीकॉर्डल प्लेट की कोशिकाओं के बाद संभावी पृष्ठ मेरुदण्ड (Presumptive vertebral column) की कोशिकाएँ भी इसी प्रकार नीचे फैलकर आर्केण्ट्रॉन की छत बनाती हैं। आर्केण्ट्रॉन की पार्श्व एवं अधर भित्तियों में वर्धी ध्रुव की मैक्रोमीयर्स होती हैं।

(v) भ्रूण का घूर्णन (Rotation) - आर्केण्ट्रॉन की गुहा के आयतन में परिवर्तन के कारण भ्रूण की गुरुत्वाकर्षी अक्ष (Gravitational axis) बदल जाती है। इसी के साथ भ्रूण भीतर ही भीतर अपनी पीत मेम्ब्रेन में एक बार पुन: 90° तक घूम जाती है। इस प्रकार भ्रूण की अक्ष खड़ी (Vertical) न रहकर सामान्य क्षैतिज (Horizontal) अवस्था में आ जाती है, जिससे प्राणी ध्रुव तथा ब्लास्टोपोर पीछे की ओर हो जाता है।

(vi) ब्लास्टोपोर का प्रसार (Expansion of blastopore) - अन्तर्वलन प्रारम्भ हो जाने के बाद भी मैक्रो तथा माइक्रोमीयर्स की परिवृद्धि जारी रहती है, जिससे अन्तर्वलयन के नये क्षेत्र ब्लास्टोपोर के पृष्ठ होंठ के अगल-बगल बनते हैं तथा वेण्ट्रल सतह पर भी फैल जाते हैं। इस प्रकार ब्लास्टोपोर के पार्श्व एवं वेण्ट्रल होंठ (Lateral and ventral lips) भी बन जाते हैं। ब्लास्टोपोर एक छिद्र के समान होता है।

(vii) ब्लास्टोपोर के होंठ का संकुचन (Contraction of blastoporal lips) - ब्लास्टोपोर गोल होने के साथ-साथ इसके होंठ में संकुचन होने से इसकी परिधि घटती जाती है, अत: इसके ऊपर की ढँकी मैक्रोमीयर्स का समूह कुछ बाहर की ओर उभरकर पीत प्लग (Yolk plug) बनाता है। इस प्रावस्था तक ब्लास्टुला गुहा समाप्त हो जाती है तथा आर्केण्ट्रॉन गुहा का विस्तार होता है। इसी के साथ गैस्ट्रूलेशन प्रावस्था पूर्ण हो जाती है।

तीन प्राथमिक जनन-स्तर (Three Primary Germinal Layers) - प्राणी ध्रुव की अधिकांश कोशिकाएँ भ्रूण के ऊपर फैलकर बहि:स्तर (Ectoderm) बनाती हैं। सम्भावी चेता पट्ट की कोशिकाएँ इसी स्तर की मध्य पृष्ठ रेखा पर एक लम्बी पट्टी के रूप में फैल जाती हैं। प्रीकॉर्डल प्लेट अन्तर्वलन में ब्लास्टोपोर के पृष्ठ होंठ पर भीतर की ओर घुसकर आर्केण्ट्रॉन की दीवार का निर्माण करती है। सम्भावी पृष्ठ मेरुदण्ड की कोशिकाएँ भीतर की ओर धँसकर आर्केण्ट्रॉन गुहा की दीवार का मध्य-पृष्ठ भाग बनाती हैं। ब्लास्टोपोर के पार्श्व तथा अधर होंठ की माइक्रोमीयर्स कोशिकाएँ सम्भावी पार्श्व पट्ट मीजोडर्म (Presumptive lateral plate mesoderm) बनाती हैं। बहि:स्तर (Ectoderm) आर्केण्ट्रॉन की दीवार के बीच पहले पार्श्वों में फिर आगे तथा अधर तल की ओर बढ़ती हुई प्रीकॉर्डल प्लेट तथा सम्भावी पृष्ठ मेरुदण्ड की कोशिकाओं से मिलकर मध्यस्तर (Mesoderm) बनाती हैं। पीतकयुक्त मैक्रोमीयर्स सम्भावी अन्त:स्तर (Endoderm) बनाती हैं।