पाइला एक जल-स्थलचर जन्तु है। अतः यह जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार का श्वसन करता है। जलीय श्वसन के लिए टीनिडियम या गिल तथा स्थलीय श्वसन के लिए पल्मोनरी कोष पाया जाता है। इसके अतिरिक्त एक जोड़ी न्यूरल लोब्स भी सहायक श्वसन अंगों का कार्य करते हैं। 

श्वसन अंग (Respiratory Organ)

1. टीनिडियम या गिल - पाइला में केवल एक लम्बा कंघी की तरह या मोनोपेक्टिनेट गिल होता है। यह मेण्टल गुहा के ब्रैंकियल चेम्बर में दाहिनी ओर छत की पृष्ठ पार्श्व (dorsolateral) भित्ति से लटका होता है। पाइला में गिल निम्नलिखित भागों का बना होता है

(a) टीनिडियल अक्ष - गिल में एक लम्बी अक्ष होती है, जिसे टीनिडियल अक्ष कहते हैं, जिसके द्वारा टीनिडिया बैंकियल कक्ष की छत से जुड़े रहते हैं। इस अक्ष की सम्पूर्ण लम्बाई में एक अभिवाही तथा एक अपवाही रुधिर वाहिनियाँ फैली होती हैं। अभिवाही (Afferent) वाहिनी गिल में अशुद्ध या अनॉक्सीकृत रक्त लाती है, जबकि अपवाही (Efferent) वाहिनी गिल से शुद्ध या ऑक्सीकृत रक्त को हृदय में पहुँचाती है।

(b) गिल-लैमिली - टीनिडियल अक्ष पर एक पंक्ति में (Monopactinate) चपटी पत्ती के आकार की रचनाएँ जुड़ी रहती हैं, जिन्हें गिल लैमिली कहते हैं। ये पत्ती के समान चपटी त्रिभुजाकार रचनाएँ होती और अपने चौड़े आधार के द्वारा टौनिडियल अक्ष से लम्बरूप स्थिति में जुड़ी रहती हैं तथा इनका स्वतन्त्र नुकीला निरा बैंकियल चैम्बर में लटकी रहती हैं। ये सभी लैमिला आकार में समान नहीं होते। गिल के मध्य में स्थित लैमिली सबसे बड़ी होती है तथा दोनों सिरों की ओर धीरे-धीरे इनका आकार घटता जाता है। लैमिला के दोनों स्वतन्त्र किनारे एक से न होकर असमान होते हैं। प्रत्येक लैमिला का दाहिना किनारा जो एफरेण्ट किनारा कहलाता है जो छोटी होती है तथा बड़ा बाँया किनारा इफरेण्ट किनारा कहलाती है। प्रत्येक सैमिला के अगले तथा पिछले तलों पर अनुप्रस्थ उभार होते हैं, जिन्हें प्लीट्स कहते हैं, इनमें रुधिर वाहिनियों की अनेक शाखाएँ होती हैं, जिनसे होकर रुधिर एफरेण्ट से इफरेण्ट वाहिनी में बहता रहता है।

अनुप्रस्थ कार में प्रत्येक लैमिला एपिथीलियम के दो स्तरों का बना होता है, जो बहुत सँकरी गुड़ा के द्वारा अलग रहते हैं। लैमिला में प्रत्येक ओर के एपिथीलियम स्तर में तीन प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं -

1 नॉन-सिलियेटेड स्तम्भी (Columnar) कौशिकाएँ, 2. सिलियेटेड स्तम्भी कोशिकाएँ तथा 3 ग्रन्थिल कोशिकाएँ। ये एपिथीलियम स्तर के नीचे एक बेसमेण्ट मेम्ब्रेन पर आधारित होती है।

2. पल्मोनरी सैक - यह एक थैले के समान रचना होती है, जो मैण्टल की भित्ति से बनती है तथा बड़े पल्मोनरी कक्ष की छत से जुड़ा रहता है। पल्मोनरी सैक एक बड़े तिरछे पल्मोनरी छिद्र के द्वारा पल्मोनरी कक्ष या भैण्टल गुहा के बायीं ओर खुलता है। इसकी पृष्ठ भित्ति पिगमेण्टेड तथा अधर भित्ति क्रीम रंग की होती है। इस सैक की भित्ति पर रक्त वाहिनियों का जाल फैला होता है।

3. न्यूकल लोब्स - ये मैण्टल के मांसल एवं बहुत संकुचनशील प्रवर्ध हैं, जो सिरे के दोनों ओर एक एक पायी जाती हैं। बाय न्यूकल लोब्स दाहिनी की अपेक्षा बड़ी होती है। दोनों न्यूकल लोब्स श्वसन के समय साइफन या नली की तरह रचनाएँ बनाती हैं, जिससे होकर पानी मैण्टल गुहा में प्रवेश करता है व बाहर निकलता है।

श्वसन विधि

पाइला में श्वसन दो विधियों के द्वारा होता है -

1. जलीय या बँकियल श्वसन - पाइला में जलीय श्वसन उस समय होता है, जब यह जल की तली में या बीच में पानी में लटका होता है। इस समय यह जल में घुली ऑक्सीजन का उपयोग करता है। जलीय श्वसन के समय पाइला अपने सिर और फुट को कवच से बाहर निकालकर पूर्णत: फैला देता है। दोनों न्यूकल लोब फैलकर साइफन की तरह रचनाएँ बना लेती हैं। बायाँ न्यूकल लोब की नली से जल की धारा मेण्टल गुहा में प्रवेश करती है तथा ऑस्फ्रेडियम के नीचे से होकर पल्मोनरी कक्ष के पिछले भाग में पहुँचती है तथा एपिटीनिया (epitaenia) के ऊपर से गुजर कर बँकियल कक्ष में प्रवेश करती है और सम्पूर्ण गिल या टीनिडियम को लम्बाई में भिगोती हुई दाहिने न्यूकल लोब की नलिका के द्वारा बाहर निकल जाती है। गिल जलधारा से ऑक्सीजन को ग्रहण कर लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड को जल में डाल देते हैं।

2. स्थलीय श्वसन - इस समय पाइला बाय न्यूकल लोब को साइफन को पानी के बाहर निकाल देता है। पल्मोनरी कक्ष फैलकर बड़ा व बँकियल कक्ष से अलग हो जाता है। वायु साइफन से होकर पल्मोनरी सैक में पल्मोनरी छिद्र के द्वारा जाती है तथा सैक के संकुचन के द्वारा वायु अन्दर व बाहर आती जाती रहती है। पेशियों के सिकुड़ने पर आयतन बढ़ जाता है व हवा खींच ली जाती है जबकि पेशियों के फैलने पर आयतन घट जाता है तथा हवा बाहर निकल जाती है।