सारांश - एक भरे पूरे परिवार में बेला नाम की युवती छोटी बहू के रूप में आती है। वह आधुनिक शिक्षा प्राप्त स्नातक है। उसका पति नायब तहसीलदार के रूप में उसी कस्बे में पदस्थ है।
उसके विचार उस परिवार के लोगों से मेल नहीं खाते हैं परिणामस्वरूप परिवार में एक हलचल सी मच जाती है। उक्त परिवार के मुखिया दादा मूलराज एक आदर्शवादी व्यक्ति हैं। वे प्राचीन भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति हैं। उनकी दृष्टि में परिवार एक वटवृक्ष के समान होता है। जैसे वटुवृक्ष की प्रत्येक शाखा, डोली, पत्ता और पुष्प महत्वपूर्ण होता है, ठीक उसी प्रकार परिवार का प्रत्येक सदस्य महत्वपूर्ण है। बेला अपने ससुराल में सबसे छोटी है। वहाँ का प्रत्येक व्यक्ति उससे सम्मान की अपेक्षा करता है। उसे अपनी पढ़ाई, मायके तथा तहसीलदार पति का अहंकार है। वह ससुराल की सभी बातों की आलोचना करती रहती है और मायके की बात-बात में प्रशंसा करती रहती है। इसका सबसे अधिक विरोध इन्दु, उसकी ननद करती है। वह प्राइमरी शिक्षा पूरी कर इस परिवार की सबसे अधिक शिक्षित कन्या है।
उसका रोब-दाब अधिक रहा है। अतः ननद भाभी में टक्कर हो जाती है।इस एकांकी में बेला नामक सुशिक्षित युवती को प्रतिकूल वातावरण में रखकर उसकी मानसिक व्यथाओं का स्पष्टीकरण किया गया है। बेला पर नागरिक संस्कृति, नारी की स्वतंत्र भावना तथा अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव है और वह पुराने ढंग के जीवन से समझौता नहीं कर पाती। उसे अपनी पितृकुल की नागरिक संस्कृति का अभिमान है। परिवार की वधुएँ जब-तब दूसरों का परिहास करते हुए अट्टाहस करती हैं तो बेला उस सरल हास्य में उपहास का अनुमान लगाती है। इस कारण वह सदा खिन्न रहती है और समय-समय पर पति को व्यंग्य बाणों से बेधती रहती है। उसका पति घर की पुरानी मान्यताओं और पत्नी की नवीन धारणाओं के बीच पिसता दिखाई पड़ता है। बेला का मानसिक संघर्ष जब तीव्र रूप धारण करता है तो वह नौकरानी पर बरस पड़ती है। बेला का पति परेश, परेशान होकर दादा मूलराज से अलग रहने की अनुमति माँगता है। दादा उसका कारण जानना चाहते हैं। झिझकते-झिझकते वह सारी बातें बताता है। सब कुछ सुनकर दादा उसे समझाने की कोशिश करते हैं और भविष्य में बेला के लिए उसे सुझाव देते हैं। साथ ही परिवार के सभी बड़े-छोटे सदस्यों को विशेष सुझाव देते हैं। इन्दु को विशेष रूप से सलाह देते हैं। वे सबको वचनबद्ध करते हैं कि कोई अपने कार्यों, विचारों और बातों से छोटी बहू को दुःख न पहुँचाये। सभी लोग उसे पढ़ने का अवसर दें, उसका आदर करें, उसका सब काम करें। घर का वातावरण ही बदल जाता है अब बेला को बड़ा अजीब लगता है। बड़े-बूढ़े सभी उसका आदर करते हैं कुछ काम नहीं करने देते, उसके सामने खड़े रहते हैं। एक दिन बातों-बातों में इन्दु ने बेला को बताया कि यह सब दादाजी के निर्देश पर हो रहा है। सुनकर बेला को बहुत आश्चर्य हुआ। वह स्वयं इस व्यवस्था का विरोध करती है। दादा से निवेदन करती है कि उसे परिवार का एक सक्रिय सदस्य माना जाए। भावनात्मक रूप से परिवार से जुड़ने दिया जाए। उसके साथ उचित व्यवहार किया जाए। यदि ऐसा न हुआ तो वह उस डाली के समान सूख जायेगी जो पेड़ से जुड़ी होकर भी निष्प्राण रहती है। इसका अर्थ यह है कि वह सबके साथ काम करके ही प्रसन्न रह सकती है। यदि ऐसा करने से उसे रोका गया तो परिवार रूपी वृक्ष से सम्बद्ध रहकर भी उसका जीवन रस सूख जाएगा।