(1) हिन्दी भाषा में विधिसूचक वाक्यों में 'चाहिए' क्रिया का प्रयोग होता है। चाहिए क्रिया की विशेषता है कि यह सदैव एक-सी रहती है। लिंग, वचन, पुरुष आदि से प्रभावित नहीं होती।
(2) इसमें चाहिए क्रिया के पूर्व 'ना' का प्रयोग होता है।
(3) ये वाक्य विध्यर्थक, आदेशात्मक, इच्छात्मक, सम्भावनार्थक एवं शक्यार्थक होते हैं।
(4) इसमें अर्थ की दृष्टि से वाक्य विधान करते हैं कि 'ऐसा हो', किन्तु इसमें बाध्यता का भाव नहीं रहता।
(5) को, में, से आदि कारक चिह्नों का प्रयोग रहता है।
(6) 'चाहिए' क्रिया लिंग वचन, पुरुष के अनुसार नहीं बदलती।
(7) गा, गे, गी आदि का भी प्रयोग होता है।
8) चाहिए क्रिया के पूर्व प्रयुक्त होने वाली क्रिया ना रूप वाली होती है जैसे - अध्यापक को पढ़ाना चाहिए, जानवरों पर दया करनी चाहिए।
(9) विधि वाचक वाक्यों में क्रिया सदैव एक वचन पुल्लिंग में ही रहती है। विभिन्न कारक या परसर्ग के प्रयोग के कारण 'चाहिए' क्रिया स्थिर रहती है, अतः विभिन्न परसर्ग लगाकर विधिवाचक वाक्यों का निर्माण किया जाता है। चाहिए के पूर्व प्रयुक्त होने वाली क्रिया लिंग, वचन, कारक से प्रभावित होती है जैसे - दुष्टों पर क्रोध करना चाहिए, दुःखियों पर दया करनी चाहिए।
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