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अनुवाद: परिभाषा, महत्व और प्रकार का विश्लेषण

अनुवाद शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी के कहने के बाद कहना है। वर्तमान परिपेक्ष्य में एक भाषा में कही हुई बात को दूसरी भाषा में कहना या बताना अनुवाद कहलाता है। अनुवाद शब्द के प्रयोग के साथ ही कम-से-कम दो भाषाओं की बात सर्वप्रथम सामने आती है। अनुवाद से तात्पर्य एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में समग्रतः प्रस्तुत करना है। अंग्रेजी में इसे ट्रांसलेशन (Translation) कहते हैं।

भाषा विचार विनिमय का माध्यम है। विश्व में कई भाषाएँ प्रचलित हैं। हमें एक-दूसरे के विचारों और भावों को समझना भी आवश्यक है। ये विभिन्न भाषाएँ इसमें बाधा उत्पन्न करती हैं। इस बाधा को दूर करने का कार्य अनुवाद द्वारा किया जाता है। अनुवाद के द्वारा एक भाषा बोलने और जानने वाले व्यक्ति, दूसरी भाषा बोलने और जानने वालों तक अपने विचार और भावों का सम्प्रेषण सरलता से कर सकते हैं।

एक भाषा में कथित बात को दूसरी भाषा में व्यक्त करना ही अनुवाद कहलाता है। इसमें दो भाषाओं का होना आवश्यक है। वह भाषा जिसके कथन का अनुवाद करना है, उसे स्त्रोत भाषा कहते हैं तथा जिस भाषा में अनुवाद किया जाना है, उसे लक्ष्य भाषा कहते हैं। तात्पर्य यह है कि स्रोत भाषा कि किसी पाठ्य सामग्री को लक्ष्य भाषा में समग्रतः प्रस्तुत करना ही अनुवाद कहलाता है।

अनुवाद के प्रकार

(1) शब्दानुवाद - शब्दानुवाद में स्रोत से लक्ष्य भाषा में अनुवाद करने पर शब्दों का यथावत अनुवाद कर दिया जाता है। शब्दानुवाद में भावना इत्यादि को कोई महत्व नहीं दिया जाता। शब्द के स्थान पर समानार्थी शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है। इसे शाब्दिक अनुवाद भी कहा जाता है।

(2) भावानुवाद - भावानुवाद में स्रोत भाषा व लक्ष्य भाषा की परम्परा का ध्यान रखते हुए कथ्य या विषय-वस्तु के भावों का अनुवाद किया जाता है। इसमें लक्ष्य भाषा की भाषिक संरचना का ध्यान रखते हुए वाक्यों में निहित मूल भाव पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसे छायानुवाद भी कहते हैं।

(3) रूपान्तरण- इसमें स्रोत भाषा के कथ्य भाषा में रूपान्तरण करते समय अनुवादक कथ्य को रूपान्तरित कर देता है। अर्थात् आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन कर देता है। इसमें वैयक्तिकता की सम्भावना बढ़ जाती है। अनुवाद मूल रूप में न होकर कुछ परिवर्तन रूप में होता है।