भूमि या मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)
भूमि के विकृत होने को भूमि प्रदूषण कहते हैं, जो मुख्यत: बाहरी पदार्थों के मिलने से होता है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ भोजन की आवश्यकता भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिसके कारण पैदावार को बढ़ाने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, कीटनाशियों (Insecticides), घासनाशियों (Weedicides), शाकनाशियों (Herbicides) का प्रयोग किया जाता है। ये सभी रासायनिक पदार्थ हैं, जो भूमि में मिलकर भूमि को प्रदूषित करते हैं, भले ही तात्कालिक लाभ देते हों, लेकिन इनका दूरगामी परिणाम हानिकारक ही होता है। ये सभी पदार्थ धीरे-धीरे भूमि की उर्वरा शक्ति को कम करते हैं तथा पौधों के द्वारा खाद्य श्रृंखला (Food) chain) में प्रवेश करके खाद्य श्रृंखला के सभी जीवों को प्रभावित करते हैं। इस प्रदूषण को रोकने के लिए सरल पदार्थों का प्रयोग किया जा सकता है, जिससे वे अपना कार्य करने के बाद जल्दी से जल्दी अपघटित हो जायें। इन पदार्थों का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए।भूमि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Soil Pollution)
1. अम्ल वर्षा के घटक मृदा को प्रदूषित करते हैं।2. अवांछित कूड़ा-करकट, जैसे-पॉलीथिन, घरेलू अपमार्जक (Domestic detergent) आदि मृदा को प्रदूषित करते हैं।
3. उर्वरकों, कौटनाशियों, शाकनाशियों का अन्धाधुन्ध उपयोग मृदा की प्राकृतिक संरचना को परिवर्तित करता है।
4. औद्योगिक अपशिष्ट निकिल, आर्सेनिक, कैडमियम मृदा प्रदूषण पैदा कर जीव-जन्तुओं को प्रभावित करते हैं।
5. मृदा की लवणता (Salinity), अनियन्त्रित फसल उत्पादन, अनियन्त्रित मल-विसर्जन, अनियन्त्रित चराई इत्यादि कार्य मृदा को प्रदूषित करते हैं।
6. D.D.T जैसे कोटनाशकों का उपयोग मृदा को प्रदूषित करता है, क्योंकि ये पदार्थ बहुत दिनों तक अपघटित न होकर जन्तुओं को खाद्य श्रृंखला द्वारा हमारे शरीर तक पहुँच जाते हैं।
मृदा प्रदूषण का नियन्त्रण (Control of Soil Pollution)
1. ठोस तथा अनिम्नीकरण योग्य पदार्थों, जैसे-लोहा, ताँबा, काँच, पॉलिथिन को मिट्टी में नहीं दबाना चाहिए।2. ठोस पदार्थों को गलाकर इनके चक्रीकरण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
3. रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशियों, शाकनाशियों का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए।
4. कीटनाशियों के स्थान पर जैव कीटनाशियों के प्रयोग पर बल देना चाहिए।
5. गोवर, मानव मल मूत्र के बायोगैस के रूप में प्रयोग पर बल देना चाहिए।
6. अपशिष्ट पदार्थों के लिए खोखले बन्द स्थानों का प्रयोग करना चाहिए।
7. मृदा अपरदन (Soil erosion) को रोकने की विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
8. भूमि प्रबन्धन (Land management) को अपनाना चाहिए।
9. जैव उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।
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