गन्ने का लाल गलन रोग (Red Rot Disease of Sugar Cane)

गन्ना भारत में महत्वपूर्ण व्यावसायिक नगदी फसलों (Commercial cash crops) में से एक है। भारत में गन्ना की खेती लगभग 4-2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है। प्रतिवर्ष इसकी उपज 277 मिलियन टन से भी अधिक है। भारत में गन्ना पूरे देश भर में उगाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा (60%) इसकी खेती होती है। बिहार, उड़ीसा, बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु में भी गन्ना उगाया जाता है। गन्ना 170 से भी अधिक प्रकार के विभिन्न रोगजनकों द्वारा संक्रमित होता है, जिनमें से लगभग 30 रोग अत्यधिक आर्थिक महत्व वाले रोग हैं। इनमें गन्ने का लाल सड़न या गलन रोग (Red rot disease) सबसे प्रमुख है।

रोग के लक्षण (Symptoms of disease)

1. तरुण पत्तियों में रंग पविर्तन होता है, पत्तियाँ हल्की हरी रंग की हो जाती है।

2. पत्तियों के किनारे टूटने-फूटने लगते हैं।

3. शीर्ष से तीसरी चौथी पत्ती मुरझाने लगती है।

4. प्रभावित गन्ने के केन (Cane) को काटकर देखने पर भीतर का भाग लाल रंग का दिखाई देने लगता है।

5. उग्र संक्रमण की स्थिति में संपूर्ण पादप 4 से 8 दिन में मर जाता है।

6. संक्रमित पत्तियों के मध्य शिरा क्षेत्र में गहरे लाल रंग का संक्रमित धब्या उपस्थित रहता है। बाद में यह धब्बा गहरे लाल रंग का हो जाता है।

7. पुराने धब्बों में अनेक काली-काली बिंदुनुमा रचनाएँ बन जाती हैं, इन्हें एसरवूली (Acervuli) कहते हैं।

8. प्रभावित गन्नों से दुर्गंध आती है तथा यह गुड़ बनाने के काम नहीं आता है।

9. गन्ने के तने में लाल रंग के लक्षण निरंतर नहीं होते हैं।

रोगजनक (Causal organism) - यह रोग कॉलेटोट्राइकम फैल्केटम (Colletotrichum falcatum) नामक कवक से होता है, यह इसका अलैंगिक अवस्था का नाम है। इसकी पर्फेक्ट अवस्था ग्लोमेरेल्ला टुकुमानेन्सिस (Glomerella tucumanensis) के नाम से जानी जाती है।

इटियोलॉजी (Etiology) - प्रकृति में कोनिडियल अवस्था ही सामान्यतः पायी जाती है। इसी अवस्था में यह संक्रमण एवं प्रसार करते हैं। कवक तन्तु आपस में मिलकर मोटी पर्पटी रचना बनाते हैं, इसे ऐसरवुलस (Acervulus) कहते हैं। इसमें हँसियाकार कोनिडिया पाये जाते हैं। ऐसरवुलस में काली लम्बी उभारयुक्त रचना पायी जाती है, जिसे स्फोटिकावृन्त (Setae) कहते हैं। प्रत्येक कोनिडियम के मध्य में ऑयल ग्लोब्यूल पाया जाता है। इसकी लैंगिक अवस्था कम देखने को मिलती है। पेरिथेसिया अवस्था को लैंगिक अवस्था कहते हैं। पेरिथेसिया गोलाकार होता है, इसमें अनेक ऐसाई (Asci) बनते हैं। प्रत्येक एस्कस (Ascus) में 8 अर्द्धपारदर्शक, सीधा, थोडा मुड़ा हुआ एवं अण्डाकार एस्कोबीजाणु बनते हैं।

रोगचक्र (Disease cycle) - रोग का आवर्तन खेत की मिट्टी द्वारा होता है। रोगजनक का कवकजाल मिट्टी में 4 से 5 माह तक जीवित रहता है। एक बार लाल सड़न रोग का प्रकोप हो जाने के बाद रोगजनक की उपस्थिति मिट्टी में स्थायी हो जाती है।

रोग नियंत्रण (Disease control ) -

1. सांस्कृतिक विधियाँ (Cultural methods) - रोगग्रस्त पौधों के अवशेष को एक जगह एकत्र करके जला देना चाहिए। रोग एक बार हो जाने पर 2-3 वर्ष गन्ने की फसल नहीं लेना चाहिए।

2. रासायनिक विधियाँ (Chemical methods) - रोगजनक को नष्ट करने के लिए पारायुक्त कवकनाशी का प्रयोग करना चाहिए।

3. रोगरोधी किस्में (Resistance varieties) - भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान कोयम्बटूर तथा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा अनेक रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया गया है। इन्हीं का प्रयोग इस रोग के निदान हेतु करना चाहिए।

Ganne ka laal galan rog in hindi
Red Rot Disease of Sugar Cane in Hindi
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