कायिक संकरण (Somatic Hybridization)

कुछ पौधों में लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) सम्भव नहीं होता है, अत: लैंगिक अनिषेच्यता (Sexual incompatibility) के गुण को धारण करने वाले पौधों में सामान्य प्रजनन विधियों द्वारा संकर (Hybrid) पौधों को उत्पन्न करना असम्भव होता है। असामान्य या असंवर्धित पौधों के संकर पौधे भी सामान्य विधियों द्वारा विकसित नहीं हो पाते हैं। उपर्युक्त वर्णित स्थितियों में कायिक संकरण विधि का उपयोग संकर पौधों (Hybrid plant) के निर्माण हेतु किया जाता है।

ऊतक संवर्धन की यह प्रक्रिया जिसमें संकर पौधों के निर्माण हेतु दो अलग-अलग पौधों के स्वतन्त्र कोशिकाओं को संयुग्मित कराकर द्विगुणित कायिक प्रोटोप्लास्ट वाली कोशिका प्राप्त की जाती हो तथा उससे नये द्विगुणित (Diploid) संकर पौधों को विकसित किया जाता हो तो उसे कायिक संकरण (Somatic hybridization) कहते हैं।

कायिक संकरण के चरण या क्रिया-विधि (Steps or Mechanism of Somatic Hybridization)

कायिक संकरण की क्रिया निम्न चरणों में पूर्ण होती हैं -

1. जीवद्रव्यों का पृथक्करण,
2. पृथक्कृत जीवद्रव्यों का संयुजन,
3. संकर जीवद्रव्य की पहचान एवं चयन,
4. संकर कोशिका का पोषक माध्यम पर संवर्धन,
5. सम्पूर्ण पादप पुनर्जनन


1. जीवद्रव्यों का पृथक्करण (Isolation of protoplasts)

1. पौधों के किसी भी भाग के जीवित कोशिकाओं से जीवद्रव्य (Protoplast) का पृथक्करण किया जा सकता है, लेकिन पत्तियों के मीजोफिल (Mesophyll) कोशिकाओं को आदर्श स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है।

2. यान्त्रिक विधि द्वारा पृथक्करण में प्लाज्मोलाइज्ड कोशिकाओं के भित्ति को काटकर जीवद्रव्य (Proto plast) को प्राप्त किया जाता है, लेकिन यह विधि काफी कठिन मानी जाती है।

3. क्रमबद्ध एंजाइमेटिक विधि (Sequential enzymatic method) में सेल्युलोज डिग्रेडिंग एन्जाइम (Cellulose degrading enzyme), हेमीसेल्युलोज डिग्रेडिंग एन्जाइम (Hemicellulose degrading a zyme), पेक्टिन डिग्रेडिंग एन्जाइम (Pectin degrading enzymes) द्वारा उपचारित कर कोशिका भित्ति को विघटित कर जीवद्रव्य (Protoplast) को पृथक्कृत किया जाता है।

2. पृथक्कृत जीवद्रव्यों का संयुजन (Fusion of isolated protoplasts)

1. दो अलग-अलग प्रकार के जीवद्रव्यों के संयुजन को यान्त्रिक रूप से माइक्रोपीपेट की सहायता से, विद्युत्-धारा के प्रवाह की सहायता से या रसायनों की सहायता से अभिप्रेरित किया जाता है।

2. प्रायः रासायनिक संयुजन ही उपयोग में लाया जाता है तथा प्रयुक्त होने वाले रसायन फ्यूसोजिन (Fusogen) कहलाते हैं एवं प्रक्रिया रासायनी संयुजन (Chemofusion) कहलाती है।

3. फ्यूसोजिन्स के रूप में पॉलिएथीलिन ग्लाइकॉल (Polyethylene Glycol = PEG) या सोडियम नाइट्रेट (NaNO) या पॉलिविनाइल ऐल्कोहॉल (Polyvinyl Alcohol = PVA) या Ca 2* का प्रयोग किया जाता है।

4. चयनित दो विभिन्न प्रकार के जीवद्रव्यों को एक साथ एक परखनली में लिया जाता है। तत्पश्चात् फ्यूसोजेन, जैसे—PEG को मिलाया जाता है। PEG (28% ) के साथ 10-5% डाइमिथाइल सल्फॉक्साइड (DMSO) को मिश्रित कर देने से प्रभावी ढंग से जीवद्रव्यों का संयुजन होता है।

5. जीवद्रव्य संयुजन से पहले समूहीकृत होते हैं, उसके बाद उनके प्लाज्मा झिल्लियों (Plasma mem branes) का संयुजन होता है। अन्त में दोनों केन्द्रकों का संयुजन (Fusion) होता है और अन्तत: कायिक संकर (Somatic hybrid) जीवद्रव्य का निर्माण होता है।

3. संकर जीवद्रव्यों की पहचान एवं चयन (Identification and selection of hybrid protoplast)

1. ऑक्जिन (Auxin) रहित पोषण माध्यम पर वे ही जीवद्रव्य वृद्धि कर पाते हैं, जो संकर होते हैं, बाकी सभी जीवद्रव्य समाप्त हो जाते हैं। अतएव ऐसे पोषण माध्यम पर संवर्धन कराये जाने के फलस्वरूप कायिक संकर जीवद्रव्यों की पहचान तथा चयन हो जाता है।

2. 5 मिथाइल ट्रीप्टोफैन (4-Methyl-tryptophan S-MT) तथा 5-2 ऐमीनो इथाइल सीस्टीन (Amino ethyl cysteine AEC) युक्त पोषण माध्यम पर निकोटियाना सिल्वस्ट्रीस के अन्तः प्रजाति (Interspecific) लक्षण पर संकर (Hybrid) कोशिका ही विकसित हो पाते हैं।

3. KaO (1977) नामक वैज्ञानिक महोदय ने सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अवलोकन करते हुए माइक्रोपीपेट द्वारा संकर जीवद्रव्यों को पृथक्कृत करने की तकनीक को विकसित किया है।

4. संकर जीवद्रव्य का पोषक माध्यम पर संवर्धन (Culture of hybrid protoplast on nutrient mediun)

1. उपयुक्त स्थिति तथा वातावरण की उपस्थिति में संकर जीवद्रव्य (Hybrid protoplast) अपने चारों ओर नयी कोशिका भित्ति का निर्माण करता है।

2. कोशिका भित्ति के निर्माण के पश्चात् कायिक संकरण कोशिका एकल कोशिका की तरह कार्य करती है तथा संवर्धन माध्यम पर कैलस का निर्माण करती है।

5. सम्पूर्ण पादप पुनर्जनन (Regeneration of new plant)

1. कैलस (Callus) को विशिष्ट प्रकार के पोषण माध्यम पर स्थानान्तरित (Subculturing) कर दिया जाता है।

2. जहाँ आर्गेनोजेनेसिस की क्रिया के फलस्वरूप कैलस से मूल तथा प्ररोह विकसित होता है। मूल तथा प्ररोह का विकास ऑक्जिन एवं सायटोकायनिन के अनुपात में यथोचित परिवर्तन पर निर्भर करता है।

3. उपर्युक्त विधि से बने नये पौधिका को नियन्त्रित कक्ष में वृद्धि करने दिया जाता है तथा फिर प्राकृतिक वातावरण में स्थानान्तरित करते हैं।

4. कैलस में एम्ब्रायोजिनेसिस (Embryogenesis) की क्रिया के फलस्वरूप एम्ब्रायड (Embryoid) भी बन सकते हैं, उस स्थिति में एम्ब्रायड के संवर्धन से नये पौधे को पुनरुत्पादित किया जाता है।

कायिक संकरण की सीमाएँ (Limitations of Somatic Hybridization)

1. संकर कोशिकाओं में गुणसूत्रीय अस्थिरता पायी जाती है, क्योंकि कुछ गुणसूत्र समाप्त हो जाते हैं।

2. कायिक संकर कोशिकाओं (Somatic hybrid cells) के निर्माण का दर अत्यधिक धीमा होता है।

3. कायिक संकरण कुछ ही कुल के सदस्यों में आसानी से हो पाता है, कायिक संकरण को इच्छानुसार सम्भव बनाना काफी कठिन होता है।

4. कुछ पौधों के पृथक्कृत जीवद्रव्यों में संयुजन विशिष्ट रसायन की उपस्थिति होने पर होती है, अन्यथा नहीं।

5. कायिक संकरण के विभिन्न चरणों, जैसे पृथक्करण, पहचान, चुनाव हेतु सभी पौधों के लिए एक मानक विधि का अभाव है।

कायिक संकरण का महत्व (Importance of Somatic Hybridization)

1. कायिक संकरण की सहायता से किसी पौधे में कुछ प्रक्रियाओं के लाभदायक जीन्स (Genes) जैसे-नाइट्रोजन स्थिरीकरण के जीन, रोगरोधीपन के जीन, प्रोटीन-गुण (Protein quality) एक पौधा से दूसरे

2. आनुवंशिक विभिन्नताओं में वृद्धि कायिक संकरण की सहायता से अभिप्रेरित किया जा सकता है तथा पौधा में स्थानान्तरित किया जा सकता है। फसलों की पैदावार बढ़ायी जा सकती है।

3. केवल वर्धी प्रजनन की क्षमता वाले पौधों में कायिक संकरण द्वारा नयी-नयी वेराइटी उत्पन्न करायी जा सकती है।

4. इसकी सहायता से लैंगिक अनिषेच्यताओं (Sexual incompatibility) को समाप्त किया जा सकता है।
 

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