धान का बैक्टीरियल ब्लाइट रोग (Bacterial Blight Disease of Rice)

धान का पर्ण ब्लाइट रोग को सर्वप्रथम 1881 में जापान में देखा गया था।

भारतवर्ष में इस रोग का सर्वप्रथम सदाशिवन एवं उनके सहयोगियों के द्वारा सन् 1959 में महाराष्ट्र में पता चला। यह एक प्रारूपित संवहनी झुलसा रोग है। इस रोग से फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचता है तथा उत्पादन कम हो जाता है।

धान का बैक्टीरियल ब्लाइट रोग के लक्षण (Symptoms of Bacterial Blight Disease of Rice)

धान के बैक्टीरियल ब्लाइट में दो अवस्थाएँ (a) ब्लाइट या झुलसा एवं (b) म्लानि (Wilt) या क्रेसेक (Kresek) होती है। रोग के लक्षण संक्रमण की अवस्था एवं जलवायवीय दशाओं पर निर्भर करते हैं।

1. रोग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण पत्तियों का झुलस जाना है। रोग की इस अवस्था में पत्तियों के ऊपर रैखिक, पीले रंग की लहरदार मार्जिन तथा पट्टियाँ (Stripes) बन जाती है। पट्टियों का निर्माण प्रासः पत्तियों के ऊपरी सिरे से प्रारंभ होकर नीचे की ओर होता है।

2. पट्टियों के निर्माण के साथ-साथ पत्तियों के अग्र भाग मुड़ने लगते हैं तथा पत्तियाँ सम्पूर्ण लम्बाई में झुलसने लगती हैं।

3. नवोद्भिद पौधों की संक्रमित पत्तियाँ स्लेटी हरे रंग की हो जाती हैं तथा वे मुड़ (Roll up) जाती हैं।

4. पुराने पौधों की पत्तियों में पानी से भीगे (Water soaked) से पीले-नारंगी रंग की पट्टियाँ बन जाती हैं।

5. पत्तियों से झुलसन पर्ण आधार तथा तने की ओर बढ़ता है जिसके कारण संपूर्ण तने की मृत्यु हो जाती है।

6. शुष्क वातावरण में पत्तियों की सतह पर एक पारदर्शी (Opaque) एवं एक धुंधला (Turbie बैक्टीरियल ऊज (Bacterial ooze) की बूंद दिखाई देते हैं जो कि सूखकर पीले रंग की मणिकाओं (Beak में बदल जाते हैं। पानी बरसने पर ये बूँद धुल जाती है।

धान का बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का रोगजनक (Causal organism of Bacterial Blight Disease of Rice)

धान का बैक्टोरियल ब्लाइट रोग जैन्यामोनास कैम्पेस्ट्रिस pv, ओगाजी (Xanthomonas campestris pv. oryzae) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है।

धान का बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का इंटियोलॉजी (Etiology of Bacterial Blight Disease of Rice)

यह रोगजनक जीवाणु छड़ाकार होता है जिसका आकार 0.5-0.8x1-0 2-04 तक होता है। ये अकेले होते हैं तथा इसमें कैप्सूल नहीं बनता है। यह जीवाणु ग्राम ऋणात्मक एवं एक कशाभिका युक्त होता है।

धान का बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का रोग चक्र (Disease cycle of Bacterial Blight Disease of Rice)

धान के पौधों में जैन्थोमोनास जीवाणु का संक्रमण इनके रोगग्रस्त बीजों तनों, जड़ों तथा कटाई के बाद बचे भागों तथा एकान्तरित खरपतवारी पोषकों से होता है। संक्रमण के दौरान यह जीवाणु पादप शरीर में प्राकृतिक छिद्रों जैसे-रन्ध्र, जलरन्ध्रों अथवा पत्ती एवं जड़ों में लगी चोटों (Wounds) के माध्यम से होता है। रोगजनक जीवाणु पौधों में वृद्धि करके पत्तियों की शिराओं (Veins) तथा जाइलम में संक्रमण करके उनको अवरुद्ध कर देते हैं। पानी की आपूर्ति नहीं होने के कारण पौधे मुरझा जाते हैं। पत्तियों पर बने धब्बों से जीवाणु बाहर निकल आते हैं तथा वायु अथवा वर्षा के जल द्वारा वितरित हो जाते हैं।

पौधों में द्वितीयक संक्रमण वायु द्वारा प्रकीर्णित रेनड्रॉप स्प्लेशेस (Splashes), सिंचाई वाले पानी तथा संक्रमित खेतों से बहकर आने वाले पानी तथा स्वस्थ एवं रोगग्रस्त पौधों के आपस में संपर्क में आने के कारण होता है। लीफ हॉपर तथा ग्रास हॉपर अपने शरीर के द्वारा यांत्रिक रूप से जीवाणुओं को ट्रांसमिट करते हैं।

बैक्टीरियल ब्लाइट रोग का नियंत्रण (Control of bacterial blight disease)

इस रोग के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती है -

(i) सांस्कृतिक विधियाँ (Cultural methods)

1. रोगरहित बीजों का उपयोग बुआई में करना चाहिए।

2. खेतों में भरे जल को निकाल देना चाहिए।

3. एकान्तरित पोषक एवं खरपतवारी पोषकों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।

4. संक्रमित खेतों से बहकर आने वाले पानी को खेत में आने से रोक देना चाहिए।

(ii) रासायनिक विधियाँ (Chemical methods)

1. बीजों को बोने के पूर्व 0-025% एग्रीमाइसिन तथा 0-05% वेटेबल सेरेसैन (Wettable ceresan) से उपचारित करके 30 मिनट तक 52°C से 54°C तक गर्म जल में रखना चाहिए।

2. रोगी पौधों के ऊपर स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट एवं टेट्रासायक्लीन (300 gm) एवं कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (1.25 kg/hect.) के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।

3. क्रेसेक अवस्था में सिंचाई जल में 5kg/hect. की दर से ब्लीचिंग पाउडर मिलाना चाहिए। 4. पत्तियों पर कॉपर कवकनाशी का छिड़काव करने के पश्चात् द्वितीय संक्रमण रोकने हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन (250 ppm) का छिड़काव करना चाहिए।

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Bacterial blight disease of Rice in hindi
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