जल,
वस्त्र, भोजन और आवास, ये चार मानव की प्राथमिक आवश्यकताऐं हैं, जिसमें जल सबसे
प्रमुख है। जल ही जीवन है और बिना जल के इस धरा पर जीवधारियों का जीवन संभव नहीं
है।
धरती
का दो तिहाई हिस्सा जल से घिरा हुआ है, किन्तु 97.5% जल खारा है, जो हमारे किसी
काम का नहीं है। सिर्फ 2.5% जल ही पीने योग्य है, इसका भी 2/ 3 भाग, बर्फ के रूप
में, पहाड़ों और झीलों पर जमा हुआ है। हमारे लिये केवल 0.8% जल ही शेष रह जाता है।
इसका भी कुछ हिस्सा दूर-दराज की नदियों और तालाबों में कैद है, अर्थात् धरती पर
उपलब्ध जल का एक बहुत छोटा अंश ही हमारे उपयोग का है। मनुष्य एक प्रकार से अपनी
जरूरतों के लिये, भूमिगत जल पर ही निर्भर होकर रह गया है, पर एक क्षमता से अधिक इस
जल का दोहन भी नहीं किया जा सकता है।
पृथ्वी
पर जल की उत्पत्ति कैसे हुई, यह स्पष्ट नहीं है। अनुमान यही है कि प्रारम्भ में
पृथ्वी पर कोई सागर नहीं था, पृथ्वी तल में उपस्थित, वाष्पशील ज्वालामुखी गर्म जल
स्त्रोतों के कारण बाहर फूट पड़ते हैं, इन्हीं के संघनन से समुद्र और वायुमंडल का
निर्माण हुआ और इसी प्रकार हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के विशिष्ट संयोजन से जल का
निर्माण हुआ।
पृथ्वी
पर, जल की पुनः वापसी वर्षा के रूप में होती है। भारत में औसतन 1,170 मि.मी. वर्षा
होती है जबकि मध्य-पश्चिमी यूनाइटेड स्टेट्स में प्रतिवर्ष औसतन 200 मिलीमीटर
वर्षा ही होती है, अतः वर्षा की दृष्टि से हमारा देश भाग्यशाली है।
दुर्भाग्य
यह है, कि जितना जल मिलता है, देश उसका सही उपयोग नहीं कर पाता।
एक समय
था, जब तालाब जल के प्रमुख स्त्रोत थे। उत्तर भारत में ग्रामीण • अपने घरों की
दीवारों को लीपने के लिये तालाब की मिट्टी का प्रयोग करते थे। बंगाल में, घर बनाने
के लिये तालाब की मिट्टी प्रयोग में लाई जाती थी और ग्रामीण अंचल के हर घर में,
तालाब का होना धनाड्य का सूचक होता था। जैविक पदार्थ तथा सड़ी हुई वनस्पति के
मिश्रण के कारण, दक्षिण भारत में इस मिट्टी का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता
था।
भारतीय
जल नीति, बड़े-बड़े बाँध, जलाशयों तथा नहर व्यवस्था तक ही केन्द्रित रही है तथा
ट्यूब-वेल, कुँआ और तालाब जैसी कम लागत वाली छोटी परियोजनाओं की हमेशा उपेक्षा
होती रही है, शायद यही कारण है कि आज तालाबों को पाटकर उस पर कॉलोनी बसाई जा रही
है। भविष्य में शायद ऐसा हो, कि आने वाली पीढ़ीयाँ, केवल किस्से-कहानियों में ही
तालाबों का वर्णन पढ़ें।
जल की
आवश्यकता एवं उपयोग
सभी
जीवों के जैविक क्रियाओं हेतु जल अनिवार्य है। जीवों के शरीर का आवश्यक
घटक-जीवद्रव्य में, 85% जल ही होता है। जल के बिना, बीजों का अंकुरण असंभव है।
जल न
केवल प्यास बुझाता है, अपितु खाद्य सामग्री की आपूर्ति में भी सहायक है। प्रकाश
संश्लेषण की क्रिया में जल एक अति आवश्यक कच्चा पदार्थ है, जिसकी सहायता से ही हरे
पौधे भोजन बनाते हैं।
प्राचीन
काल से ही, नदियों के आसपास के उपजाऊ मैदान, जनसंख्या का केन्द्र रहे हैं तथा
सभ्यता का पोषण करते आये हैं। नील नदी के उपजाऊ मैदानों पर ही