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मनुष्य में रोग फैलाने वाले वाहक कीट (disease-carrying insect in human in hindi)

वाहक कीट (Vector insects)

मनुष्य और कीटों का घनिष्ट सम्बन्ध होता है। मनुष्य अपने बौद्धिक विकास तथा कीट अपनी विविधता और अधिक संख्या के कारण जीवन संघर्ष हेतु प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे कीटों द्वारा अनेक प्रकार के रोग मनुष्यों में फैलते हैं और उन्हें हानि होती है, लेकिन दूसरी ओर कुछ कीट ऐसे होते हैं, जो मनुष्यों को लाभ पहुंचाते हैं, जैसे- मधुमक्खी, रेशम कीट, लाख कोट आदि। अनेक कीट मनुष्यों और जानवरों में विभिन्न प्रकार के रोग फैलाते हैं। ये कीट रोग कम पैदा करते हैं, लेकिन रोग वाहक का कार्य ज्यादा करते हैं और रोगाणुओं को एक पोषक से दूसरे पोषक में पहुंचाते हैं।

रोग फैलाने वाले कीटों को हम निम्नानुसार विभाजित कर सकते हैं -

1. जहरीले कीट (Poisonous insects) - कुछ कीट तथा उसके लार्वा, जैसे-ततैया, मधुमक्खी वर्ग, खटमल, मच्छर, चीटियाँ आदि मनुष्य तथा उसके आर्थिक महत्व के कीट को काटकर और उनके शरीर में जहरीला द्रव पहुँचाकर खुजली, जलन और त्वचीय रोग उत्पन्न करते हैं।

2. परजीवी कीट (Parasite insects) -
ये कीट मनुष्य तथा अन्य जन्तुओं में परजीवी के रूप में रहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं -

(i) बाह्य परजीवी (Ectoparasite) - शरीर के बाहर रहकर रक्त चूसते हैं और रोग फैलाते हैं, जैसे जू (Ppediculus), पिस्सू (Xynopsylla), खटमल (Cimex) आदि।

(ii) अन्तः परजीवी (Endoparasite) -
कुछ कीट मनुष्य तथा अन्य पशुओं की त्वचा में घुसकर घाव बनाते हैं।

3. रोगवाहक कीट (Disease carrier insect) -
अनेक कीट रोगजनक प्रोटोजोअन जीवाणु आदि के जीवन-चक्र में मध्यस्थ पोषक का कार्य करते हैं और उनको मनुष्य तथा अन्य पोषक में पहुँचाने का कार्य करते हैं, जो उनमें विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।

(1) मक्खी (House fly) - मक्खी मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यद्यपि यह स्वयं जहरीली नहीं होती, किन्तु अपने खाने-पीने की आदतों और कहीं भी मल त्याग देने के कारण वह अनेक प्रकार की बीमारियों को फैलाती है। यह तीन प्रकार के रोग फैलाती है -

(i) यह बीमारी उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवियों, जैसे-हुकवर्म (Hookworm), गोलकृमि (Round worm), फ्लेटवर्म (Flatworm) के अण्डों और लार्वा को मनुष्य की खाने की वस्तुओं में एकत्रित कर देती है, जिससे अनेक प्रकार के रोग फैलते हैं।

(ii) मक्खी के द्वारा हैजा (Cholera), अतिसार (Diorrhea), पेचिश (Dysentery), टाइफाइड (Typhoid), पैराटाइफाइड (Paratyphoid), तपेदिक (T. B.), सुजाक (Gonorrhea), गैगेरिन (Gagarin) तथा आप्थैल्मिया (Opthalmia) आदि बीमारी के रोगाणुओं को फैलाती है।

(iii) मक्खियाँ सड़े-गले फलों और सब्जियों में अपने अण्डे देती हैं। इसे खाने से मनुष्यों में अतिसार (Diorrhea) होता है। मक्खी रोग वाहक का कार्य भी करती है। यह दो प्रकार के रोगाणुओं को फैलाती है -

(a) मक्खी मल-मूत्र को खाती है। इसमें उपस्थित रोगाणु मक्खी के आहार नाल में पहुंच जाते हैं। जब मक्खी हमारे भोजन पर बैठकर मल त्याग या उल्टी करती है, तो ये रोगाणु भोजन में आ जाते हैं। ऐसे दूषित भोजन से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।

(b) मक्खी जब किसी रोगी के घाव, जख्मों, मल-मूत्रों, चूक आदि पर बैठती है, तो 'मक्खी' के टाँगों में हजारों रोगाणु चिपक कर भोजन व खाने-पीने की वस्तुओं तक पहुँच जाते हैं, जिसे ग्रहण करने से बीमारी उत्पन्न होती है।

(2) मच्छर (Mosquito) -
मच्छर की विभिन्न जातियाँ अनेक प्रकार के रोगजनक प्रोटोजोअन के वाहक होती हैं, जो मनुष्य तथा अन्य पशु-पक्षियों में संक्रामक रोग उत्पन्न करते हैं -

(i) पीत ज्वर (Yellow fever)
- यह रोग सामान्यतः दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में होता है। इस रोग के वाहक एडीस (Ades) मच्छर होते हैं। यह मच्छर मनुष्य को काटते समय पीत ज्वर जीवाणु को रक्त में पहुँचा देते हैं, जिससे चेहरे पर सूजन, हड्डियों में दर्द और बुखार होता है। कुछ समय बाद रक्त और पित्त की उल्टी के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है।

(ii) मलेरिया (Malaria) – यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से मनुष्य में फैलता है। काटते समय मच्छर प्लाज्मोडियम को लार के साथ मनुष्य के रक्त में छोड़ देता है, जिससे कँपकँपी के साथ तेज बुखार आता है। मलेरिया परजीवी की कई जातियाँ होती हैं। प्रत्येक के द्वारा अलग-अलग अवधि का ज्वर होता है।

(iii) डेंगू ज्वर (Dengu fever) - यह एडीस (Ades) और क्यूलैक्स जातियों द्वारा संक्रमित होता है। इस रोग में तेज बुखार, सिर, आँख व पेशियों में दर्द होता है। यह छूत की तरह फैलता है। यह गर्म जलवायु वाले प्रदेशों में होता है।

(iv) फाइलेरियेसिस (Filariasis) - यह एडीस, क्यूलैक्स और एनोफिलीज की जातियों द्वारा संक्रमित होती हैं। मच्छर के काटते ही परजीवी के लार्वा मनुष्य के रक्त में पहुँच जाते हैं। रक्त से लसीका ग्रन्थियाँ तथा हाथ, पैर की पेशियों में पहुँचने पर सूजन आ जाती है। ये लिम्फ वाहिनियों को बन्द कर देते हैं, जिससे भुजाएँ, टोंगे, वृषण कोष, स्तन ग्रन्थियाँ फूल जाती हैं। इस रोग को 'पीलपाव' (Elephantasis) भी कहते हैं।

(3) टेबेनस फ्लाई (Tabunus fly) -
घोड़ों, ऊँटों आदि कटिबन्धीय जन्तुओं में सुर्य (Sura) रोग फैलाते हैं।

(4) टीसी-टीसी फ्लाई (Tso-tse fly) -
यह ट्रिपैनोसोमा की वाहक कीट है, जो मनुष्य में अफ्रीकी निद्रा रोग (Sleeping Sickness) उत्पन्न करता है।

(5) सैण्ड फ्लाई (Sand fly)
- मनुष्य में काला-अजार (Kala azar) रोग फैलाता है।

(6) खटमल (Bod bug) - यह मनुष्य में यइकस रिलैप्सिंग ज्वर तथा कोढ़ (Leprosy) फैलाता है।

(7) जूँ (Louse) - मनुष्य में यइफस (Typhus) रोग फैलाता है।

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मनुष्य मे रोग फैलाने वाले वाहक कीट कौन कौन से हैं?
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मनुष्य में रोग फैलाने वाले कीटो के लक्षण क्या क्या है?