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लिंग निर्धारण (Determination of sex in hindi)

लिंग निर्धारण (Determination of sex)

एकलिंगी जीवों में अण्डे उत्पन्न करने वाले जीवों को मादा तथा शुक्राणु उत्पन्न करने वाले जीवों को नर कहते हैं। अतः जिन प्रजातियों में नर तथा मादा अलग अलग होते हैं उनमें वे कारक जिसकी वजह से नर या मादा के रूप में विकसित होते हैं, इस प्रक्रिया को लिंग निर्धारण कहते हैं या लिंग निर्धारण, लिंग गुणसूत्रों की वजह से होता है। लिंग 

निर्धारण की विधियाँ (Method of sex determination)

(1) XX मादा तथा XY नर विधि - कोशिका के समस्त गुणसूत्रों में ऑटोसोम्स के अलावा एक जोड़ी लिंग गुणसूत्र भी होते हैं। इनको क्रमश: X तथा Y नाम से जाना जाता है। मनुष्य तथा ड्रोसोफिला में मादा में लिंग गुणसूत्रों की जोड़ी के दोनों गुणसूत्र समान लम्बाई तथा गुणों के होते हैं, इन्हें XX कहा जाता है, जबकि इनके नर की कोशिकाओं में लिंग गुणसूत्र की जोड़ी में असमान लम्बाई तथा गुणों वाले गुणसूत्र पाये जाते हैं, इनमें एक मादा के समान X-गुणसूत्र तथा दूसरा आकार में छोटा Y-गुणसूत्र होता है। चूँकि मादा में दोनों लिंग गुणसूत्र समान होते हैं, अतः अण्डे बनने की प्रक्रिया (Oogenesis) के अर्द्धसूत्री विभाजन में प्रत्येक जोड़ो के गुणसूत्र पृथक् युग्मक में जाते हैं, अत: एक ही प्रकार के युग्मक (अण्डे) बनते हैं जिनमें दोनों विभाजित कोशिकाओं में एक X-गुणसूत्र बाकी ऑटोसोम्स के साथ प्रवेश करता है। इस प्रकार के मादा जीवों को Homogametic Sex कहा जाता है।

जबकि नर में लिंग गुणसूत्रों की जोड़ी में पृथक् X तथा Y प्रकार के गुणसूत्र होते हैं तथा शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) के अर्द्धसूत्री विभाजन के समय बनी दो कोशिकाओं में ऑटोसोम्स के साथ एक में X तथा दूसरी कोशिका में Y-गुणसूत्र प्रवेश करता है अत: इस प्रकार बने शुक्राणुओं की कुल संख्या में आधे (50%) X-गुणसूत्र के साथ तथा आधे (50%) Y-गुणसूत्र के साथ पाये जाते हैं। अब निषेचन की प्रक्रिया में अण्डे का शुक्राणु के साथ युग्मन होकर निषेचित अण्ड (Zygote) बनता है अगर शुक्राणु X-गुणसूत्र वाला होगा तब यह मादा के अण्डे की कोशिका के X-गुणसूत्र के साथ XX अवस्था में मादा जीव को जन्म देगा, परन्तु यदि शुक्राणु Y-गुणसूत्र वाला होगा तो यह मादा के अण्ड कोशिका के X-गुणसूत्र के साथ XY अवस्था में नर जीव को जन्म देगा। भिन्न प्रकार के युग्मक उत्पन्न करने वाले नर जीवों को Heterogametic Sex कहा जाता है।

अधिकांश जीवों में लिंग निर्धारण की यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।

(2) लिंग निर्धारण की XX मादा तथा XY नर विधि के रूपान्तर -

(I) XX मादा तथा XO नर विधि - Anasa नामक कीट के मादा में 22 गुणसूत्र 20+ XX पाये जाते हैं, जबकि नर में केवल 21 गुणसूत्र 20 + X ही पाये जाते हैं। मादा एक ही प्रकार के 11 गुणसूत्र वाले अण्डाणु विकसित करती है, जबकि नर दो प्रकार के शुक्राणु जिसमें 50% 11 गुणसूत्र वाले तथा 50% 10 गुणसूत्र वाले होते हैं।

यह लिंग निर्धारण की XX-XO विधि है जो Y-गुणसूत्र के विलोपन के कारण उत्पन्न स्थिति है।

(ii) Xy मादा तथा XX
नर विधि - मादा विषमयुग्मकी (Heterogametic) अर्थात् XY या दो प्रकार के अण्डे विकसित करती है, जबकि नर XX समयुग्मकी (Homogametic) अर्थात् एक ही प्रकार के शुक्राणु विकसित करता है। अब यह शुक्राणु पर नहीं वरन् अण्डों पर निर्भर करता है कि लिंग मादा होगा अथवा नर।

लिंग निर्धारण का जीनी सन्तुलन सिद्धान्त - पैटरसन के अनुसार, ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण प्रक्रिया में Y-गुणसूत्र का कोई महत्व नहीं होता जबकि लिंग निर्धारण में X-गुणसूत्र तथा ऑटोसोम का अनुपात महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सामान्य द्विगुणित (Diploid) ड्रोसोफिला में X-गुणसूत्र की एकल मात्रा में नर तथा 2X-गुणसूत्र होने पर मादा जीव विकसित होता है।

ब्रिजेज के अनुसार, प्रत्येक जीव (नर एवं मादा) के जीनोटाइप में नर एवं मादा दोनों लक्षणों के जीन होते हैं। लिंग का निर्धारण उस लिंग विशेष के जीन की बहुलता पर निर्भर करता है। अतः मादा लिंग का निर्धारण करने वाले जीन्स की बहुलता होने पर मादा तथा नर जीन्स का अनुपात अधिक होने पर नर जीव विकसित होता है। ड्रोसोफिला में X-गुणसूत्र पर स्थित जीन्स मादा लक्षणों को तथा ऑटोसोम पर स्थित जीन्स नर लक्षणों को विकसित करते हैं।

उपर्युक्त परिणामों से ज्ञात होता है कि नर लक्षणों के जीन ऑटोसोम्स में तथा मादा के जीन X-गुणसूत्रों में होते हैं। सामान्य नर में X-गुणसूत्रों व ऑटोसोम्स का अनुपात 0.5 तथा मादा लिंग के लिए 1.0 होता है।

ड्रोसोफिला में कभी-कभी ऐसी मक्खियाँ भी उत्पन्न होती हैं जिनके शरीर के आधे भाग में नर तथा शेष आधे भाग में मादा के लक्षण दृष्टिगत होते हैं, ऐसे जीन गाइनेन्ड्रोमार्फ कहलाते हैं। इनका जन्म प्रायः भ्रूणीय परिवर्धन के समय प्रारम्भिक दो कोशिकाओं की अवस्था में X-लिंग गुणसूत्र का विलोपन हो जाने से होता है।

मनुष्य में लिंग निर्धारण (Sex determination in man) - ड्रोसोफिला की तरह मनुष्यों में भी XX XY क्रिया-विधि लिंग निर्धारित करती है। यहाँ पर 'X' गुणसूत्र पेटेंट होता है तथा मादा लक्षणों पर प्रभावी होता है, जिसके कारण 'Y' गुणसूत्र लिंग को निर्धारित करता है।

बार व एस्ट्रम ने बिल्ली की तंत्रिका कोशिकाओं में रहने वाली गुणसूत्र की काय देखी जिसको उन्होंने बार बॉडी (Bar Body) नाम दिया। इसी प्रकार की बार बॉडी मनुष्य की त्वचा कोशिकाओं में पायी जाती है, जिनको लिंग क्रोमैटिन (Sex chromatin) कहते हैं। ये क्रोमैटिन मादा की कोशिकाओं के केन्द्रक में अधिक तथा नर की कोशिकाओं के केन्द्रक में कम पायी जाती हैं।

(i) उपापचय नियन्त्रित लिंग निर्धारण (Metabolism controlled determination of sex) -
कुछ जीवों में उपापचय दर भी लिंग को निर्धारित करती है। जैसे- यदि उपापचय दर अधिक होती है, तो नर लिंग निर्धारित होता है तथा उपापचय दर कम होने पर मादा लिंग का निर्माण होता है। उदाहरणार्थ-रोटीफेरा, रोटीफेरा में उपापचय दर बढ़ने पर नर व उपापचय दर घटने पर मादा का विकास होता है।

(ii) हॉर्मोन द्वारा नियन्त्रित लिंग निर्धारण (Hormonal controlled determination of sex)
- कुछ जीवों में स्रावित होने वाले हॉर्मोन भी लिंग का निर्धारण करते हैं। जैसे-मुर्गी में केवल एक ही अण्डाशय क्रियाशील होता है जो मादा लिंग को निर्धारित करता है। यदि किसी कारण से अण्डाशय अक्रियाशील हो जाती है तो मुर्गी में कुछ हॉर्मोन का साव होने लगता है जो लिंग को परिवर्तित कर देते हैं तथा उसकी अक्रिय अण्डाशय वृषण में परिवर्तित होकर क्रियाशील हो जाती है।

(iii) वातावरण नियन्त्रित सिद्धान्त (Environmental controlled determination of sex)
- कुछ जीवों में वातावरण भी लिंग को निर्धारित करते हैं जैसे-बोनेलिया (Bonelia)। इनमें मादा बड़ी होती है तथा नर छोटा, जो मादा के अन्दर होता है। ये वातावरण लिंग को निर्धारित करता है। यदि कोई निषेचित अण्ड नीचे पानी में गिरता है तो वह मादा का निर्माण करता है। यदि निषेचित अण्ड मादा के अन्दर रहता है तो नर बनता है। यदि मादा के मुख पर चिपका रहता है तो वह इण्टरसेक्स (Intersex) का निर्माण करता है।


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