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पनीर उत्पादन की विधि का वर्णन (Description of the method of cheese production in hindi, BSC zoology)

पनीर उत्पादन की विधि

दूध शाकाहारी भोजन का एक मुख्य भाग है। दूध एक सम्पूर्ण भोजन माना जाता है। यह प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट के साथ कई खनिज तथा विटामिन का विलयन है। इसका pH 7.0 होता है। दूध एवं उसके उत्पाद सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के लिए उपयुक्त होते हैं।

दुधारू पशु के धन से निकला दूध प्रायः जीवाणुविहीन होता है, किन्तु वातावरण में पहुँचत ही उसमें विभिन्न प्रकार के जीवों का संचरण होने लगता है। इससे स्कन्दन (Coagulation) एवं खट्टापन (Souring) उत्पन्न होने लगता है। शर्करा की उचित मात्रा होने के कारण दूध अनेक जीवाणुओं के लिए एक अत्यन्त उपयुक्त वृद्धि माध्यम है। मवेशियों के धनों पर लैक्टिक अम्ल बैक्टीरिया पाया जाता है, जो कि दूध में वृद्धि करने के लिए अनुकूल होते हैं। दूध के विभिन्न उत्पादों का औद्योगिक निर्माण के लिए इन्हीं बैक्टीरिया की श्रेणियों के विशिष्ट उपभेदों का व्यापारिक उपयोग होता है। डेयरी उद्योग में सबसे अधिक लैक्टोबैसिलस एवं स्ट्रेप्टोकोकस की विभिन्न जातियों एवं उपभेदों का उपयोग विभिन्न पदार्थों के निर्माण में किया जाता है।

दूध के कुछ प्रमुख उत्पाद एवं उसके सूक्ष्मजैविकी का वर्णन निम्नलिखित हैं -


(1) मक्खन (Butter)
- सबसे पहले दूध की मलाई या क्रीम (Cream) में उपस्थित सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने के लिए उसे 70°C पर आधे घण्टे के लिए गर्म करते हैं। उसके बाद ठण्डा करके इसमें किण्वन (Fermentation) हेतु आरम्भिक मिलाया जाता है। आरम्भिक में ल्यूकोनॉस्टॉक सिट्रोवोरम (Leuconostoe citrovorum) नामक सूक्ष्मजीव उपस्थित होता है, जो मक्खन में विशेष गन्ध उत्पन्न करता है। स्ट्रेप्टोकोकस क्रीमोरिस (Streptococcus cremoris) या स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus lactis) किण्वन द्वारा शीघ्रतापूर्वक लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) उत्पन्न करते हैं। यदि उच्च अम्लता (pH 4-5) शीघ्र ही उत्पन्न नहीं होती, तब असंख्य अवांछित संदूषक (Contaminants) उत्पन्न हो सकते हैं। pH 4-3 तक पहुँचने पर ल्यूकोनॉस्टॉक (Luconostoc) की वृद्धि रुक जाती है, परन्तु इसके एन्जाइम द्वारा दूध के साइट्रिक अम्ल (Citric acid) से डाइऐसीटिल (Diacetyl) उत्पन्न हो जाता है, जो मक्खन को उसकी गन्ध एवं स्वाद (Flavour) प्रदान करता है।

(2) दही (Curd) - दही के निर्माण के लिए पाश्चुराइण्ड दूध में स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilus) एवं लैक्टोबैसिलस बल्गेरिकस (Lactobacillus bulgaricus) के मिश्रण का इनॉकुलेशन (Inoculation) किया जाता है तथा इसका इन्क्यूबेशन (Incubation) 40°C पर करके लैक्टोज (Lactose) का किण्वन (Fermentation) किया जाता है। जीवाणुओं द्वारा उत्पादित लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) एवं ऐसीटैल्डिहाइड (Acetaldehyde) के कारण ही दही में विशिष्ट स्वाद आता है। लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) ही दूध का स्कन्दन कर उसे जमे हुए दही में परिवर्तित करता है।

(3) किण्वन दूध के पेय (Baverages of fermented milk) -
स्ट्रेप्टोकोकाई (Streptococci), यीस्ट (Yeast) तथा लैक्टोबैसिली (Lactobacilli) के मिश्रण का प्रयोग करके विभिन्न प्रकार के किण्वित (fermented) दुग्ध पेय तैयार किये जाते हैं -

(a) केफिर (Kefir) -
केफिर (Kefir) के दानों को दूध में मिलाकर कुछ दिनों के लिए रख देते हैं। इन दानों में लैक्टोबैसिलस ब्रीविस (Lactobacillus brevis), स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus lactis) जीवाणु तथा यीस्ट (Yeast) होते हैं। इस वजह से दूध से किण्वन (Fermentation) आरम्भ होता है और दूध खट्टा हो जाता है।

(b) योगहट (Yoghurt) -
इसको बनाने के लिए पहले दूध को उबालकर अथवा दूध का पावडर मिलाकर गाढ़ा कर लिया जाता है। इस दूध में स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophillus) तथा लैक्टोबैसिलस बलोरिकस (Lactobacillus bulgaricus) आरम्भक के रूप में मिलाये जाते हैं। किण्वन क्रिया के फलस्वरूप दूध खट्टा हो जाता है तथा अर्द्ध-तरल अवस्था या जेली के रूप में बदल जाता है। इनका प्रयोग अधिकतर पूर्वी मध्य यूरोपवासी करते हैं।

(c) लेवेन (Leben) -
यह गाय तथा बकरी के दूध से बनाया जाता है तथा अधिकतर उत्तरी अफ्रीका (मिस्र देश) के निवासियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह एक अर्द्ध-तरल पेय है। लैक्टोबैसिलस (Lacto bacillus) बैक्टीरिया लॅक्टिक अम्ल (Lactic acid) का तथा यीस्ट (Yeast) ऐल्कोहॉल (Alcohol) का उत्पादन करते हैं।

(d) मट्ठा (Butter milk)
- यह पाश्चुराइज्ड (Pasteurized) मलाईयुक्त खट्टा दूध है। स्ट्रेप्टोकोकस कीमोरिस (Streptococcus cremoris) तथा ल्यूकोनॉस्टॉक सिटोवोरम (Lauconostoc citrovorum) का मिश्रण मिलाने से दूध खट्टा हो जाता है, जिसे फेंटकर एक क्रीमयुक्त पेय तैयार किया जाता है। इसमें 0-5% साइट्रिक अम्ल (Citric acid) मिलाने से ल्यूकोनॉस्टॉक सिट्रोवोरम (Leuconostoc citrovorum) द्वारा उत्पादन साइट्रिक अम्ल (Citric acid) उत्पन्न के कारण इसका फ्लेवर (Flavour) बढ़ जाता है।

(4) पनीर उत्पादन (Production of Paneer)–


पनीर उत्पादन के निम्नलिखित तीन मुख्य चरण हैं -

(i) स्कन्द बनाना (Coagulum formation),
(ii) कर्ड का विलगन (Separation of curd),
(iii) पनीर का पक्चन (Ripening of Paneer)।


(i) स्कन्द बनाना (Coagulum formation) -
  इसमें दूध से स्कन्द बनाने में दो क्रियाएँ प्रमुख होती हैं -

(a)
बैक्टीरिया कल्चरों से संरोपण - इसमें स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus lactis) या स्ट्रेप्टोकोकस क्रीमोरिस (Streptococcus cremoris) को 31°C पर इन्क्यूबेट (Incubate) करते हैं। कभी कभी संरोपण के लिए स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilus) के साथ लैक्टोबैसिलस लैक्टिस (Lactobacillus lactis), लैक्टोबैसिलस बल्गेरिकस (Lactobacillus bulgaricus) या लैक्टोबैसिलस हेल्वेटिकस (Lctobacillus helveticus) का प्रयोग करते हैं। इनका इन्क्यूबेशन (Incuba tion) 50°C पर करते हैं। ये जीवाणु लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) में परिवर्तित कर देते हैं, जिसके कारण दूध का pH घटकर 4-5 हो जाता है।

(b)
रेनेट से ऊष्मायन - रेनेट के साथ ऊष्मायन से k केसीन, पैरा-k-केसीन तथा केसीनों मैक्रोपेप्टाइड में विघटित हो जाता है। इसके कारण तथा B केसीनों वk-केसीन के जल-अपघटनी उत्पादों का अवक्षेपण हो जाता है। स्कंदन के लिए Cat अनिवार्य होता है और यह संक्रिया काफी हद तक ताप पर निर्भर होती है।

(ii) कर्ड का विलगन (Separation of curd) -
स्कन्द (Coagulum) को 31°C तक गर्म करते हैं। इस ताप पर रेनेट (Renet) निष्क्रिय हो जाता है और छेने का पानी कुछ हद तक कर्ड (Curd) से अलग हो जाता है। पानी को अलग कर देते हैं। शेष कर्ड का लवणन (Salting) करने के बाद उसमें प्रोटीएज (Protease) एवं लाइपेज (Lipase) मिला देते हैं। कभी-कभी इन एन्जाइमों की जगह इष्टिकाय पनीर (Brick paneer) को फफूँद (Fungi) के विशिष्ट विभेदों से संरोपित करते हैं। जैसे—पेनिसिलियम रॉकेफोटाई (Penicillium roquefortii), पेनिसिलियम कैमेम्बर्टाई (Penicillium camembertii) आदि। इष्टिकाय पनीर (Brick paneer) को दवाये रखते हैं, जिससे उसमें से अतिरिक्त नमी निकल जाये।

(iil) पनीर का पक्वन (Ripening of Paneer) -
पनीर में संरोपित किये गये फफूँदों द्वारा उत्पादित लाइपेज (Lipase) व प्रोटीएज (Protease) अथवा मिलाये गये शुद्ध लाइपेज व प्रोटीएज पनीर में फ्लेवर (Flavour) उत्पन्न करते हैं एवं उसके गठन में परिवर्तन करते हैं, इसे पक्वन (Ripening) कहते हैं। चेडर पनीर में फ्लेवर उत्पन्न करने के लिए बेसिलस ऐमाइलोलिक्वेफेसिएंस (Bacillus amyloliquefaciens) से प्राप्त प्रोटीएज का उपयोग करते हैं। प्रोटीन जल-अपघटन के द्वारा उत्पादित पेप्टाइड (Peptide) मधुर या कड़वा फ्लेवर उत्पन्न करते हैं। अतः प्रोटीन जल-अपघटन के स्तर को नियंत्रित करने से पनीर के फ्लेवर का नियंत्रण किया जा सकता है।

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