वनो का सरंक्षण (Conservation of Forest)

सितम्बर 1985 से भारत सरकार ने पर्यावरण विभाग, वन तथा वन्य जीवन में एकीकरण किया है। इसके अंतर्गत् केन्द्रीय सरकार द्वारा पर्यावरण तथा वनों के कार्यक्रमों का नियोजन करना, समन्वय करना तथा संबंधित प्रशासनिक ढाँचे को विकसित करना है। पर्यावरण मंत्रालय ने, वनों के संरक्षण हेतु, निम्नलिखित उपाय सुझाये हैं -

  • 15 फीट चढ़ाई के ऊपर फसलों की पैदावार रोकना।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में उन उद्योगों की अनुमति नहीं देना जिनसे धूल और घूँआ उत्पन्न हो.
  • भूस्खलन और बाढ़ से बचने के लिये बनाई गई नीति के क्रियान्वयन हेतु स्थानीय लोगों का सहयोग लेना।
  • वनोपज पर, वनवासियों को अच्छी आय देकर उनका जीवन स्तर सुधारने का प्रयत्न करना।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों को रोजगार प्रधान वन-रोपण तथा पर्यावरण विकास कार्यक्रमों से जोड़ा जाना ।
  • प्रत्येक प्रदेश में एक प्रादेशिक वन अनुसंधान केन्द्र की स्थापना कर जनता को वनों के महत्व से परिचित करवाना।
  • वनों पर दबाव कम करने के लिये, धुँआ रहित चूल्हा, सौर ऊर्जा, बायो गैस आदि के प्रयोग को बढ़ावा देना।
  • वातावरण के प्रतिकूल वृक्षों का चयन, प्राकृतिक विरोध का कारण बन सकती है, अतः वृक्षारोपण के पूर्व यह जानना आवश्यक है कि किस क्षेत्र के लिये कौन सा वृक्ष उत्तम होगा।
  • सारे देश में व्यापक पैमाने पर विद्युत शवदाह गृह निर्मित कर "बायो मास" की बचत करना ।
  • एक स्थान से जितने वृक्ष कटे हैं उतने ही वहाँ रोपित किये जायें, इस योजना पर अमल करना।
  • नगर-वानिकी कार्यक्रम (Urban Forestry Programme) के तहत् सड़कों के किनारे, सार्वजनिक स्थानों पर, घरों में, सजावटी, छायादार और फलदार वृक्ष लगाना चाहिये ।
  • भारतीय संस्कृति में अनेक वृक्ष पूज्य रहे हैं तथा धार्मिक कार्यों से जुड़े माने जाते हैं। बस्तरांचल में महुआ, सेमल, आम को पूज्यनीय माना गया। विवाह मंडप पर महुए की टहनी स्थापित की जाती है। कलश में आम के पत्ते रखते हैं और सेमल वृक्ष को मुड़िया जाति का घोटुल प्रतिष्ठान, पवित्र मानता है। इनके पीछे भी वनस्पतियों के संरक्षण की भावना ही है।
  • हरे भरे वृक्षों की कटाई को कानून बनाकर, नियंत्रित किया जा रहा है। अब किसी वृक्ष कटाई के लिये संबंधित अधिकारी से अनुमति लेना आवश्यक होता है।
जनता में वन के महत्व के प्रति जागरूकता का एक जीता-जागता उदाहरण है -

“चिपको आन्दोलन" जो 1973 में उत्तर प्रदेश के चामोली जिले में प्रारम्भ हुआ। श्री सुन्दरलाल बहुगुणा के प्रकृति प्रेम ने, ग्रामीण लोगों में एक ऐसी भावना का जागरण किया कि शासकीय ठेकों के अंतर्गत वनों की कटाई के लिये आये लोगों को रोकने के लिये वहाँ की स्थानीय जनता, खासकर महिलाएँ और बच्चे एक-एक पेड़ से चिपक कर खड़े हो गये, कि पहले हमें मारो फिर पेड़ काटो। धीरे-धीरे यह आन्दोलन देशव्यापी हो गया और इसने कई वृक्षों को कटने से बचाया तथा बचा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य के वन विभाग द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन के तहत ७८८७ ग्रामों में संयुक्त वन प्रबंधन समितियां गठित कि गई हैं जिन्हें ३३१९० वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र के देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। संयुक्त वन प्रबंधन योजना के अंतर्गत वन क्षेत्रों में उत्पादित वनोपज में समितियों की हिस्सेदारी का प्रावधान है । इस राशि से समितियां अपने गावों में मूलभूत सुविधाओं के विकास तथा क्षमता विकास के कार्य करती है। छत्तीसगढ़ राज्य में २७ लाख से अधिक वनवासी, वनों की रक्षा संपूर्ण जिम्मेदारी से कर रहे हैं ।

छत्तीसगढ़ में कटते वनों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण वन क्रमशः घटते जा रहे हैं, वनों की कमी से औसत वर्षा भी कम हुई है, परिणाम स्वरुप भूमि का जलस्तर भी कम हो रहा है। एक अध्ययन के अनुसार कांकेर में २९ वर्ग किलोमीटर, बस्तर में २३ वर्ग किलोमीटर, जशपुर में ९ वर्ग किलोमीटर और रायपुर में 10 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कम हुए हैं। वनों की कमी से जलवायु में भी परिवर्तन हो रहा है।