सिरका उत्पादन

सूक्ष्मजीवों के उपयोग से आर्थिक महत्व के उत्पाद (Product) या सेवा की प्राप्ति को औद्योगिक सूक्ष्मजैविकी कहते हैं। सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से कई महत्वपूर्ण उत्पाद बनाये जाते हैं, जैसे- दवाएँ, अमीनो अम्ल, एन्जाइम, ऐल्कोहॉल, संश्लेषित ईंधन तथा कार्बनिक विलायक आदि। सूक्ष्मजीवों का उपयोग शराब, डबलरोटी आदि बनाने में हजारों वर्षों से हो रहा है, लेकिन औद्योगिक सूक्ष्मजैविकी का इतिहास लगभग 150 वर्ष पुराना है।

औद्योगिक सूक्ष्मजैविकी के विभिन्न उपयोग होते हैं। कुछ मुख्य अनुप्रयोग का वर्णन किया जा रहा है -

(1) औद्योगिक ऐल्कोहॉल (Industrial alcohol) -इस उद्योग में कई यीस्टों का उपयोग होता है, जैसे सैकेरोमाइसिस सेरेविसी, सैकेरोमाइसिस कैरिस्बजेंसिस आदि। इसके अतिरिक्त कई तरह के एन्जाइमों का उपयोग भी इन उद्योग में होता है। औद्योगिक ऐल्कोहॉल में मुख्य रूप से बीयर का उत्पादन होता है। विधि निम्नानुसार है -

(a) बीयर (Beer)


जल एक ऐल्कोहॉल का मादक पदार्थ है, जो कि जौ (Barley) के किण्वन द्वारा तैयार की जाती है। शीर्ष किण्वनीय यीस्ट सैकेरोमाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae) होती है। यीस्ट की उन जातियों का चयन किया जाता है, जो कम तापक्रम को सह सकती है। कम तापक्रम यीस्ट की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। सभी प्रकार की बीयर (Beer) सैकेरोमायसीस सेरेविसी (Saccharomyces cervisiae) के द्वारा ही निर्मित नहीं होती है। सकेरोमाइसिस कार्लबर्जेन्सिस (Saccharomyces carlberensis) एवं सैकेरोमाइसिस मोनासेन्सिस (Saccharomyces monacensis) यीस्ट का उपयोग हॉलैण्ड में होता है।

चरण-I (Step-I) - बीयर के उत्पादन के प्रारम्भिक चरण में जौ (Barley) को नियन्त्रित अंकुरण के द्वारा माल्ट मिश्रण किया जाता है। इसके पश्चात् अनाज को 2 से 3 दिन तक धोया एवं आचूषित/सराबोर कर भ्रूण के विकास के लिए उत्प्रेरित किया जाता है। इसके पश्चात् पानी को निथारकर बीजों को अंकुरण के लिए रखा जाता है। भ्रूण की वृद्धि को तब तक होने दिया जाता है, जब तक प्रांकुर (Plumule) की लम्बाई लगभग गुदा/गिरी (Kernel) की लम्बाई 3/4 लम्बाई तक हो जाये। इसके पश्चात् इसको सूखाया जाता है, जिससे कि वृद्धि रुक जाये। अंकुरण की छोटी अवधि में भ्रूण अनेक प्रकार के पाचक एन्जाइम को उत्पन्न करता है, जो बीज के आहार भण्डार को जल-अपघटित (hydrolyze) करते हैं तथा एमाइलेज (Amylase) स्वर्च को डेक्सस्ट्रिन (Dextrin) एवं माल्टोज (Maltose) में तथा कुछ ग्लूकोज (Glucose) में परिवर्तित करता है।

चरण-II (Step-II) - दूसरे चरण में बीयर का उत्पादन होता है, जिसको मैशिंग/मिश्रण बनाना (Mashing) कहते हैं। सूखे हुए माल्ट (Malt) को पीसकर गर्म पानी के साथ मिश्रित किया जाता है। मिश्रण बनाते समय ही (mashing) एमाइलेज (Amylase) एन्जाइम के द्वारा स्यर्च (Starch) को माल्टोज (Maltose) में परिवर्तित करता है। यह दो घण्टे में पूर्ण होता है। जलीय सार (Aqueous extract) अघुलनशील पदार्थों एवं भूसी (Husks) से पृथक् किया जाता है, इसके पश्चात् हॉप पादप के मादा पुष्प मादा समूह (Inflorescence) के साथ उबाला जाता है।

चरण-III ( Step-III) - 8°C से 16°C के बीच जलीय सार (Aqueous extract) को ठण्डा किया जाता है। यीस्ट की चयनित जाति को इसमें मिलाया जाता है। मुख्य रूप से सैकेरोमाइसीस कार्लबर्जेन्सिस (Saccharomyces carlbergensis) के द्वारा अधिक बीयर की मात्रा को उत्पादित किया जाता है। सैकेरोमाइसीस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae) के द्वारा माल्ट की शराब या अधिक शर्करा वाली बीयर का उत्पादन करता है। किण्वन विधि की 5-14 दिन की अवधि में शर्करा ऐल्कोहॉल में परिवर्तित हो जाती है। यीस्ट पात्र की सतह पर स्थिर हो जाता है और बीयर की अत्यधिक मात्रा उत्पन्न होती है। पात्र की ऊपरी सतह पर CO, के बुलबुले दिखाई देते हैं। झागदार मल को अन्ततल से हय दिया जाता है। जब किण्वन अवधि समाप्त हो जाती है, तब नई बनी हुई बीयर को कुछ दिनों तक स्थिर रखा जाता है। प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidant) को मिलाया जाता है, क्योंकि बीयर का स्वाद ऑक्सीकरण के कारण परिवर्तित हो जाता है। CO2 को मिलाया जाता है। इसके पश्चात् बीयर को बोतल में बन्द कर दिया जाता है।

(b) सिरका (Vinegar)


औद्योगिक रूप से सिरके का निर्माण फलों के रस, माल्ट या अन्य ऐल्कोहॉली पेय, जैसे—मदिरा, बीयर इत्यादि से किया जाता है। सबसे पहले फलों के रस का किण्वन यीस्ट (yeast) सैकेरोमाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae) द्वारा ऐल्कोहॉल की सान्द्रता 2% होने तक किया जाता है। किण्वित रस (Fermented juice) को फुहार बनाकर ऐसे टैंकों में डाला जाता है, जिसमें लकड़ी की छीलन, बजरी तथा अन्य सब्स्ट्रेट (Substrate) की सतह पर ऐसीटोबैक्टर ऐसीटी (Acetobacter acetti) जीवाणु वृद्धि कर रहे होते हैं। जीवाणु ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऐल्कोहॉल को ऑक्सीकृत करके पहले ऐसीटैल्डिहाइड (Acetaldehyde) में तथा बाद में ऐसीटिक अम्ल (Acetic acid) में बदल देते हैं। यह क्रिया बारम्बार दोहरायी जाती है। ऐल्कोहॉली द्रव का विभिन्न विधियों द्वारा वातन (Acration) किया जाता है। आजकल सिरके के निर्माण के लिए सबमर्ज्ड कल्चर रिएक्टर (Submerged culture reactors) का प्रयोग होता है।

सिरका में ऐसीटिक अम्ल के अतिरिक्त एथिल ऐल्कोहॉल, ग्लिसरॉल, एस्टर एवं लवण भी थोड़ी मात्रा में होते हैं। प्राकृतिक सिरके की गंध उसमें उपस्थित अनेक एस्टर (Ester) के कारण होती है।

(2) एन्जाइम (Enzyme) -
एन्जाइमों का औद्योगिक उत्पादन सन् 1894 में शुरू हुआ था, जब फफूँद टाका-डाइएस्टेज (Fungal taka-diastase) का विपणन शुरू हुआ था। प्रारम्भ में एन्जाइम ठोस अवस्था किण्वन (Solid phase fermentation) द्वारा उत्पादित होते थे। आजकल इनका उत्पादन सबमर्जंडू कल्चरों (Sub merged cultures) में होता है। इन कल्चरों की ऑक्सीजन की आवश्यकता बहुधा ऐण्टिवॉयोटिक उत्पादन जितनी होती है। अधिकांश औद्योगिक महत्व के एन्जाइम कोशिका बाह्य (Extracellular) होते हैं, जिससे उनकी प्राप्ति सरलता से होती है। औद्योगिक स्तर पर उत्पादित होने वाले एन्जाइमों में बैसिलस प्रोटीएज (Protease), ग्लूकोऐमाइलेज (Glucoamylase) एवं ऐमाइलेज (Amylase) सबसे अधिक मात्रा में उत्पादित होते हैं। सूक्ष्मजीवों द्वारा एन्जाइम उत्पादन की प्रक्रिया सरल रेखाचित्र द्वारा समझायी गयी है।