लिंग सहलग्नता (Sex linkage)

यह एक विशेष प्रकार की सहलग्नता (Linkage) होती है, जो उन आनुवंशकों (Genes) के मध्य पाई जाती है जो कि लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes) में पाये जाते हैं। समपात एवं विषमपात (Homologous and non-homologous) X एवं Y क्रोमोसोम के खण्डों की स्थिति के अनुसार जीन विनिमय नहीं कर सकते हैं। यह स्थिति अपूर्ण रूप से जीन-लिंग सहलग्न (Sex-linked) माने जाते हैं। लिंग सहलग्नता को सर्वप्रथम मॉर्गन (Morgan) ने ड्रोसोफिला पर ज्ञात किया था।

लिंग सहलग्नता के प्रकार (Kinds of sex linkage)

X या Y क्रोमोसोम पर लिंग सहलग्न जीन्स के स्थित होने के आधार पर लिंग सहलग्न वंशागति निम्न प्रकार की होती है -

(i) होलोजेनिक (Hologenic) - इस प्रकार के लिंग सहलग्न जीन सीधे मादा से मादा में वंशानुगत होते हैं।

(ii) होलोऐन्ड्रिक (Holoandric) - इसमें Y क्रोमोसोम के असमजात भागों में पाये जाने वाले जीन्स पिता से पुत्र में वंशानुगत होते हैं।

(iii) डाइऐन्ड्रिक (Diandric) - मादा के दोनों X-क्रोमोसोम, समजात क्रोमोसोम के समान व्यवहार करते हैं तथा नर से प्राप्त X क्रोमोसोम को पुत्री में वंशानुगत कर देते हैं।

(iv) डाइजेनिक (Digenic) -
इस प्रकार में लिंग सहलग्न जीन्स गुणसूत्र के असमजात भाग में पाये जाते हैं। यह जीन्स पिता से F पीढ़ी की स्त्रियों के माध्यम से F पीढ़ी नर संतति में वंशानुगत होते हैं।

लिंग सहलग्न वंशागति (Sex linked inheritance)

मानव के लैंगिक लक्षणों के अलावा गैर लैंगिक या दैहिक (Somatic) लक्षणों के निर्धारण के लिए जीन्स लिंग गुणसूत्रों (Sex chromosomes) पर पाये जाते हैं। इन जीन्स को लिंग सहलग्न जीन्स तथा इनके लक्षणों को लिंग सहलग्न लक्षण कहते हैं। यद्यपि X और Y लिंग गुणसूत्र की रचना भिन्न होती है, पर गैमीटोजिनेसिस के दौरान मियोटिक विभाजन में इनमें युग्मन या सिनैप्सिस अन्य समजात (Homologous) जोड़ियों के गुणसूत्रों की तरह ही होता है। लिंग गुणसूत्रों की रचना में एक समजात खण्ड तथा असमजात खण्ड होता है, अतः हम लिंग सहलग्न लक्षणों को तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं -

(1) X-
लिंक्ड - वे लिंग सहलग्न लक्षण जिनके जीन्स X-गुणसूत्र के असमजात खण्ड पर होते हैं, ये पुत्रियों को माता और पिता दोनों में मिल सकते हैं, परन्तु पुत्रों को केवल माता से मिलते हैं।

(II) Y-लिंक्ड - वे जिनके जीन्स Y-क्रोमोसोम के नॉन-होमोलॉगस खण्ड पर होते हैं, अतः इनके ऐलील्स X-क्रोमोसोम पर नहीं होते, ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी से पुत्रों में ही जाते हैं, अतः इन्हें होलोऐण्ड्रिक जोन्स कहते हैं।

(III) XY-लिंक्ड - वे जिनके जीन X Y क्रोमोसोम के होमोलॉगस खण्डों पर ऐलील्स के रूप में होते हैं, अतः इनकी वंशागति सामान्य ऑटोसोमल लक्षणों की तरह होती है।

लिंग सहलग्न लक्षणों की वंशागति को लिंग सहलग्न कहते हैं। मानव के कुछ आनुवंशिक रोग के जीन मुख्य रूप से X-क्रोमोसोम में होते हैं। इनमें से अधिकांश रोगों के जीन रिसेसिव (अप्रभावी) होते हैं अर्थात् इन जीन्स के प्रभावी (Dominant) ऐलील सामान्य रोगहीन दशा स्थापित करते हैं, क्योंकि पुरुष में X-क्रोमोसोम केवल एक जबकि स्त्रियों में दो होते हैं अत: इन लक्षणों की वंशागति विशेष प्रकार की होती है। इन जीन्स के रिसेसिव होने के कारण ये रोग हेटरोजायगस स्त्रियों में नहीं होते, ये केवल होमोजायगस स्त्रियों में होते हैं, जिनमें दोनों X-क्रोमोसोमों में रोग के जीन्स होते हैं लेकिन पुरुषों में केवल एक X-गुणसूत्र होने के कारण रोग के लक्षण का केवल एक ही जीन उपस्थित हो सकते हैं, (Hemizygous condition)। अत: एक ही रिसेसिव जीन से रोग पैदा हो जाता है इसलिए आनुवंशिक रोगों के लक्षण प्रायः पुरुषों में अधिक पाये जाते हैं। दूसरी ओर इन लक्षणों की वंशागति से यह स्पष्ट हो जाता है कि पुत्रों को इन लक्षणों के जीन पिता से कभी नहीं मिलते क्योंकि पुरुष का अकेला 'X' क्रोमोसोम हमेशा पुत्रियों में जाता है। इन पुत्रियों से फिर यह जीन दूसरी पीढ़ी के पुत्रों (F2) में जाता है। अतः पुत्रियों की भूमिका प्राय: वाहक की होती है।

मनुष्य में X-लिंक्ड सुप्त लक्षणों में वर्णान्धता (Colour Blindness) तथा हीमोफीलिया (Haemophilia) के रोग बहुत प्रसिद्ध हैं, जिनकी वंशागति निम्न प्रकार से होती है -

(A) मनुष्य में वर्णांधता की वंशागति (Inheritance of colour blindness in man)

इस रोग से ग्रसित व्यक्ति लाल व हरे रंग में भेद नहीं कर पाता। इस रोग का सबसे पहले वर्णन होस्नर (1876) ने किया था। इसका जीन X-क्रोमोसोम पर स्थित होता है तथा रिसेसिव होता है। वर्णांधता की वंशागति निम्न दो उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है

1. वर्णांध पुरुष व सामान्य स्वी का विवाह (Colour blind man marry with normal woman) -
यदि एक सामान्य वर्णबोध वाली स्त्री का विवाह वर्णांध पुरुष के साथ होता है तो उसकी सभी संतानें सामान्य वर्णबोध वाली होती हैं। यद्यपि पुत्रियों में दृष्टि सामान्य होगी पर वे रोग की वाहक होंगी क्योंकि इन्हें एक X-क्रोमोसोम पिता से प्राप्त होता है, जिसमें वर्णांधता से सम्बन्धित जीन होता है। दूसरा X क्रोमोसोम माता से प्राप्त होता है, इनके पुत्रों में सामान्य वर्णबोध होगा।

अगर ऐसी वाहक (Carrier) पुत्री का विवाह किसी सामान्य वर्णबोध वाले पुरुष के साथ हो तो उसकी सभी पुत्रियों में सामान्य वर्णबोध होगा, किन्तु उनमें से 50% पुत्रियाँ वाहक होंगी क्योंकि उनमें एक जीन वर्णांधता के लिए दूसरा सामान्य वर्णबोध के लिए होगा तथा इनके पुत्रों में 50% पुत्र वर्णांध होंगे।

2. वर्णांध स्त्री व सामान्य पुरुष का विवाह (Colour blind woman marry with normal man ) -
यदि किसी वर्णांध स्त्री का विवाह एक सामान्य वर्णबोध वाले पुरुष के साथ होता है तो उसके सभी पुत्र वर्णांध होंगे, क्योंकि उन्हें X-क्रोमोसोम माता से प्राप्त होगा जिसमें इस रोग के जीन उपस्थित हैं। इसके विपरीत सभी पुत्रियाँ सामान्य वर्णबोध वाली होंगी यद्यपि वे इस रोग की वाहक होंगी, क्योंकि उनका एक X-क्रोमोसोम माता से तथा एक X-क्रोमोसोम पिता से प्राप्त होगा। पिता से प्राप्त होने वाले गुणसूत्र में सामान्य वर्णबोध के लिए जीन होगा जो कि वर्णांधता के जीन के प्रति प्रभावी होता है।

यदि ऐसी स्त्री (वाहक) का विवाह किसी वर्णांध पुरुष के साथ हो तो उसकी पुत्रियों में से 50% वर्णांध तथा 50% सामान्य, किन्तु वाहक होंगी। पुत्रों में भी 50% सामान्य तथा 50% वर्णांध होंगे। इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि स्त्रियों में वर्णांधता केवल तभी परिलक्षित होती है जब एक वाहक स्त्री का विवाह वर्णांध पुरुष के साथ हो।

(B) हीमोफीलिया की वंशागति (Inheritance of haemophilia)

इस रोग में थ्रॉम्बोप्लास्टिन की कमी के कारण चोट लगने पर मनुष्य में रुधिर का ठीक से थक्का नहीं बनता जिससे रक्त का बहना जारी रहता है इसलिए इसे ब्लीडर्स रोग (Bleeders disease) भी कहते हैं। इस रोग में रोगी के रुधिर में एण्टीहीमोफीलिक-ग्लोबिन प्रोटीन की अनुपस्थिति के कारण थ्रॉम्बोप्लास्टिन का निर्माण नहीं हो पाता। इस प्रोटीन का निर्माण X-क्रोमोसोम पर स्थित जीन द्वारा नियन्त्रित रहता है। इस रोग के बारे में सबसे पहले जॉन कोटो ने सन् 1803 में बताया। हीमोफीलिया रोग यूरोप के शाही खानदान में बहुत सामान्य था तथा इसकी शुरुआत महारानी विक्टोरिया से हुई।

यह रोग मुख्यत: पुरुषों में पाया जाता है क्योंकि इनमें केवल एक X-क्रोमोसोम होता है इसलिए रिसेसिव (अप्रभावी) होने पर भी यह अभिव्यक्त हो जाता है। स्त्रियों में यह रोग बहुत कम होता है क्योंकि इनमें इस रोग के होने के लिए दोनों क्रोमोसोम पर रिसेसिव लक्षण का जीन होना आवश्यक है। हीमोफीलिक स्त्रियों की प्रायः वयस्क होने से पूर्व ही मृत्यु हो जाती है।

हीमोफीलिया की वंशानुगति भी वर्णांधता की तरह ही होती है। यदि हीमोफीलिया रोग की वाहक स्त्री का विवाह एक सामान्य पुरुष के साथ हो जाता है तो उसकी सभी पुत्रियाँ सामान्य होंगी यद्यपि उसमें से 50% वाहक होंगी। पुत्रों में 50% हीमोफीलिया से ग्रसित होंगे।

यदि एक हीमोफीलिक पुरुष का विवाह सामान्य स्त्री से होता है तब उसकी सभी सन्तानें सामान्य होंगे। यद्यपि सभी पुत्रियाँ इस रोग की वाहक हॉगी, क्योंकि इनके एक गुणसूत्र (X) पर जो इन्हें माता से प्राप्त होगा, सामान्य प्रभावी जीन होगा तथा दूसरे X-गुणसूत्र पर जो इन्हें पिता से प्राप्त होगा, हीमोफीलिया से सम्बन्धित जीन होगा जो अप्रभावी (Recessive) होगा।


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