दूध का पाश्चुरीकरण (Pasteurization of milk)
पाश्चुरीकरण एक विधि होती है जिसमें दूध को 62°C के तापक्रम पर 30 मिनट तक गर्म किया जाता है जिससे दूध में पाये जाने वाले जीवाणु नष्ट हो जाये इसकी निम्न विधि है(A) कम तापक्रम का प्रभाव (Low temperature holding) - इसमें दूध को 62°C पर तीस मिनट तक गर्म करते हैं। दूध को बड़े बन्द बर्तन में भाप कुण्डलों (Steam coils) के साथ गर्म करते हैं तथा बंद बर्तन के चारों ओर गर्म पानी की निरंतर फुहार करते रहते
(B) उच्च तापक्रम प्रभाव (High temperature holding) - यह साधारण विधि है जो काफी कम समय में समाप्त हो जाती है। इस विधि में दूध को 15 सेकेंड तक 72°C तक गर्म किया जाता है। दूध को बिजली या गर्म पानी के द्वारा गर्म किया जाता है। इस विधि में ताप का आदान-प्रदान होता है जो कि कच्चे दूध को गर्म करता है और गर्म पाश्चुरीकृत दूध को ठण्डा करता है।
(iv) दूध में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव (Micro-organisms found in milk)
सामान्यतः गाय का दूध, दूध नलिकाओं या थन तक पहुँचने के पूर्व रोगाणु रहित रहता है थन की दूध की नलिकाओं में जीवाणु एवं विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवी उपस्थित रहते हैं। इस कारण पहले दोहन के समय से ही सूक्ष्मजीवी दूध में रहते हैं इनकी संख्या कम होती है। परंतु जैसे-जैसे दूध को बाल्टी, फिर बर्तनों में फिर डिब्बे द्वारा घरों में पहुँचाया जाता हैं वैसे-वैसे सूक्ष्मजीवी की संख्या बढ़ती जाती है। दूध में निम्न सूक्ष्मजीव पाये जाते हैं- स्ट्रेप्टोकोकाई, लेक्टोबेसिली, माइक्रोबैक्टीरिया, कॉलिफार्म्स, माईक्रोकोकाई, प्रोटियस जातियाँ आदि।
वर्तमान समय में अनेक प्रकार के रोग दूध द्वारा ही उत्पन्न होते हैं। रोगजनक कारक के स्रोत दूध में पायी जाती है। गाय के दूध में यदि संक्रमण होता है तो निम्न रोग हो सकते हैं। जैसे- क्षयरोग (T.B), स्तनशोथ (Mastitis), टायफाइड, ज्वर, डिफ्थीरिया, पेचिश आदि हो सकते हैं। परन्तु कुछ सूक्ष्मजीवी लाभदायक भी होते हैं जो दूध के विभिन्न रूप बनाने में मदद करते हैं बिना सूक्ष्मजीवी के हम दूध से दही, पनीर आदि नहीं बना सकते हैं।
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