जीन सहलग्नता (Genetic Linkage)
जीन आनुवंशिक पदार्थ होते हैं, जो लक्षणों को निर्धारित करते हैं तथा ये जीन गुणसूत्र के ऊपर स्थित होते हैं। किसी जाति में गुणसूत्र की संख्या कम होती है, जबकि जीन की संख्या बहुत अधिक होती है, जिसके कारण एक गुणसूत्र पर एक से अधिक जीन उपस्थित होते हैं। इस प्रकार एक ही लक्षण को निर्धारित करने वाले जीन एक ही गुणसूत्र पर भी स्थित हो सकते हैं या अलग-अलग गुणसूत्र पर भी स्थित हो सकते हैं। यदि दोनों जीन एक ही गुणसूत्र पर स्थित होते हैं, तो अगली पीढ़ी में एक साथ आने की कोशिश करते हैं, इस क्रिया को सहलग्नता (Linkage) कहते हैं। सहलग्नता में अनुपात 9: 3:3:1 के बदले 7:1:17 या 1:7:7:1 आता है।बेटसन तथा पुनेट (Bateson and Punnet) ने पैतृक संयोगों की अधिकता को देखकर यह निष्कर्ष निकाला कि एक ही पैतृक पौधे से आने वाले समस्त गुणों के युग्मविकल्पियों (Alleles) में एक साथ ही युग्मक में आने की प्रवृत्ति होती है तथा ये नयी पीढ़ियों में एक साथ ही वंशागत होते हैं। इसी प्रकार दो भिन्न-भिन्न पैतृक पौधों से आने वाले गुणों के युग्मविकल्पियों की प्रवृत्ति अलग-अलग युग्मकों में पहुँचने की होती है। अत: ये नयी पीढ़ियों में स्वतन्त्रतापूर्वक अलग-अलग वंशागत होते हैं। युग्मविकल्पियों की प्रथम विशेषता को संलग्नता (Coupling) तथा दूसरी विशेषता को विलग्नता (Repulsion) कहा गया है। मॉर्गन (Morgan) के अनुसार, संलग्नता तथा विलग्नता एक क्रिया के दो पहलू हैं तथा यह सहलग्नता (Linkage) कहलाती है।
द्विसंकर में पैतृक संयोगों की अधिकता का विवेचन करने के लिए अनेक प्रयत्न किये गये हैं। बेटसन (Bateson, 1980) ने यह माना कि पैतृक एवं अप्रैतृक संयोगों की संख्या में भिन्नता युग्मकों की गुणन दर में भिन्नता के कारण होता है। पैतृक संयोगों वाले युग्मकों में तेजी से गुणन होता है, जबकि अपैतृक संयोगों वाले युग्मकों का गुणन अपेक्षाकृत धीमी गति से होता है। लेकिन बेटसन का यह सिद्धांत उचित नहीं है, क्योंकि युग्मकों में कोई गुणन क्रिया नहीं होती। मॉर्गन ने कहा है कि पैतृक संयोग जीन्स के एक ही गुणसूत्र पर स्थित होने के कारण होते हैं तथा जीन्स के अपैतृक या नये संयोग गुणसूत्रों के टूटने एवं टूटे हुए टुकड़ों के पुनः मिलने के कारण होते हैं।
सहलग्नता की यथार्थता (Strength of linkage) के आधार पर सहलग्नता दो प्रकार की होती है -
1. पूर्ण सहलग्नता (Complete linkage) – यह केवल उन्हीं परिस्थितियों में होती है, जब सहलग्न जीन्स बहुत समीप स्थित होते हैं। समीप स्थित होने के कारण इनके अलग होने की सम्भावनाएँ कम हो जाती है।
पूर्ण सहलग्नता का उदाहरण नीचे दिया गया है -
ड्रोसोफिला (Drosophila) - स्लेटी रंग के शरीर तथा अल्पविकसित पंख वाली जंगली ड्रोसोफिला का मैथुन जब काले शरीर तथा लम्बे पंखों वाला ड्रोसोफिला के साथ किया गया तो F1 पीढ़ी के समस्त जन्तुओं का शरीर स्लेटी रंग का तथा उनके पंख लम्बे पूर्ण विकसित थे। जब यह F1 पीढ़ी का नर संकर ड्रोसोफिला अप्रभावी मादा के साथ संकरण करता है तो दो प्रकार के जन्तु बराबर संख्या में बनते हैं। इस संकरण में केवल पैतृक संयोग बनते हैं और जीन्स अलग नहीं होते, अतः पूर्ण सहलग्नता कहलाती है।
2. अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete linkage) - अपूर्ण सहलग्नता उन्हीं स्थितियों में सम्भव होती है जब सहलग्न जीन्स युग्मक बनते समय गुणसूत्रों के टूटने के कारण अलग हो जाते हैं और इन टुकड़ों के विनिमय (Exchange) के फलस्वरूप नये संयोग बनकर युग्मकों में पहुँचते हैं, किन्तु इस विनिमय की सम्भावनाएँ कम होती हैं। इसी कारण पैतृक संयोगों की संख्या अपैतृक संयोगों की अपेक्षा अधिक होती है।
मक्का (Maize) – जब रंगीन तथा पूरी तरह भरे हुए बीजों वाले मक्का के पौधों एवं रंगहीन तथा संकुचित बीजों वाले पौधों में संकरण किया जाता है तो F, पीढ़ी में केवल रंगीन तथा भरे हुए बीज वाले पौधे बनते हैं। इस पीढ़ी के मादा संकर पौधों को जब रंगहीन तथा संकुचित बीज वाले पौधों के परागकोर्षों से निषेचन किया जाता है तो चार प्रकार के बीजों वाले पौधे बनते हैं, जो इस प्रकार हैं -
(1) रंगीन तथा भरे हुए (Coloured and full) बीजों वाले पौधे
(2) रंगहीन तथा संकुचित (Colourless and shrunken) बीजों वाले पौधे
96.4%
(3) रंगीन तथा संकुचित (Coloured and shrunken)
(4) रंगहीन तथा भरे हुए (Colourless and fully
3-6%
प्रयोगों से यह ज्ञात होता है कि पैतृक संयोग 96-4% बने तथा अपैतृक केवल 3.6% ही थे। ये नये अपैतृक संयोग इसलिए सम्भव हुए क्योंकि कुछ युग्मकों में इन गुणों के जीन्स एक-दूसरे से अलग हो गये, अतः ये अपूर्ण सहलग्नता प्रदर्शित करते हैं।
सहलग्नता का समसूत्री सिद्धान्त (Mitosis Principles of Linkage)
इस सिद्धान्त के अनुसार,(1) सहलग्न गुणों (Linkage character) के जीन्स एक ही जोड़े के गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं।
(2) जीन्स की सहलग्नता रैखिक (Linear) होती है।
(3) गुणसूत्रों पर आस-पास जीन्स में सहलग्नता अधिक होती है तथा जैसे-जैसे उनकी दूरी बढ़ती जाती है, उनकी सहलग्नता कम हो जाती है।
सहलग्नता को स्पष्ट करने के लिए कई वैज्ञानिकों ने अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये थे, परन्तु साक्ष्य के अभाव एवं अन्य कारणों से उन्हें अमान्य कर दिया गया है। कुछ मुख्य सिद्धान्तों में सटन की परिकल्पना (Su- tton's Hypothesis), बेटसन एवं पुनेट (Bateson and Punnet) 1906 की परिकल्पना, मॉर्गन (Morgun) की परिकल्पना आदि हैं। सन् 1930 में बेटसन ने विभेदीय बहुगुणन सिद्धान्त (Differential multiplication Theory) प्रस्तुत किया जिसके अनुसार, "सहलग्नता कोशिकाओं के विभेदीय बहुगुणन के द्वारा होती है"।
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