आनुवंशिक रोग (Genetic disease)

शरीर की सामान्य क्रियाओं में होने वाली अनियमितताओं को रोग कहते हैं। इस अवस्था में जीव संरचनात्मक एवं कार्यात्मक रूप से विकृत या अनियमित हो जाता है। मानव शरीर की आन्तरिक क्रियाओं एवं वातावरण के बीच असंतुलन की अवस्था उत्पन्न होती है। मनुष्य रोगी हो जाता है अर्थात् "किसी भी कारणवश शरीर की क्रियाशीलता में परिवर्तन होना ही रोग या बीमारी (Disease) कहलाता है।"

रोगों को दो समूहों में विभाजित किया गया है -

(i) पैतृक रोग या जन्मजात रोग (Congenital disease),

(ii) अर्जित रोग (Acquired disease),


पैतृक रोग मनुष्य के जन्म के समय से ही उसके शरीर में होते हैं, जबकि अर्जित रोग मनुष्य में जन्म के पश्चात् विभिन्न कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं। आनुवंशिक रोग (Genetic diseases), पैतृक रोग (Congenital diseases) के अन्तर्गत आती हैं। मनुष्य में अनेक रोग आनुवंशिक आधार पर होते हैं। मनुष्य में यह रोग आनुवंशिक लक्षणों (Genetic characters) के समान ही वंशागत होते हैं इन्हें आनुवंशिक या पैतृक रोग (Genetic or Congenital Diseases) कहते हैं।

गुणसूत्रीय विसंगतियाँ (Chromosomal disorders) -
मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है, लेकिन गुणसूत्रों में संख्यात्मक परिवर्तनों के कारण कभी कभी गुणसूत्र प्रारूप में अनेक असमानताएँ (Abnormalitics) विकसित हो जाती हैं। इन असमानताओं को सामान्यत: गुणसूत्रीय असामान्यताएँ कहते हैं, ये असामान्यताएँ अधिकतर मनुष्य में, जीवों में अभिव्यक्त होती हैं। इन असामान्यताओं के कारण मनुष्य में विभिन्न रोगों के लक्षण उत्पन्न होते हैं, जिनको सिन्ड्रोम (Syndrome) कहते हैं। असामान्यताएँ अलिंग गुणसूत्रीय (Autosomal) या फिर लिंग गुणसूत्रीय (Sex chromosomal) हो सकती हैं -

(1) ऑटोसोमल असामान्यताएँ (Autosomal abnormalitics) –
इस क्रिया को समझने के लिए मनुष्य का उदाहरण लिया जा सकता है। मनुष्य में 22 जोड़ी ऑटोसोम (Autosome) पाये जाते हैं। इनमें से किसी एक जोड़े में अनियमितता या परिवर्तन के कारण विसंगितयाँ उत्पन्न होती हैं। ये निम्न प्रकार की होती हैं -

(i) रचना सम्बन्धी ऑटोसोमल विसंगतियाँ (Structural autosomal disorders) -
यह गुणसूत्रों की संरचना में विसंगति के कारण निर्मित होती है। यह निम्न प्रकार की हो सकती है-

(अ) स्थानान्तरण (Translocation) -
इस क्रिया में गुणसूत्र का कोई एक खण्ड टूटकर किसी अन्य असमजात क्रोमोसोम से जुड़ जाता है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशानुगत होता है। इसका उदाहरण मंगोल बच्चों में दिखाई देता है।

(ब) जीन विलोपन (Deletion of gene) -
किसी गुणसूत्र में स्थित किसी जीन का विलोपन होने से यह अवस्था निर्मित होती है। इसका प्रभाव उस भाग में स्थित जीन्स के ऊपर निर्भर करता है।

उदाहरण - केट-क्राई-सिण्ड्रोम (Cat-cry-Syndrome), रक्त कैंसर ल्यूकेमिया (Blood Cancer Leukemia) आदि ।

(ii) संख्या सम्बन्धी ऑटोसोमल विसंगतियाँ (Numerical autosomal disorders) -
मनुष्य में ऑटोसोमल विसंगति के अन्तर्गत ऑटोसोमल क्रोमोसोम की संख्या में विसंगति पाई जाती है। जब गुणसूत्र की संख्या में परिवर्तन मूल संख्या के गुणन में होती है तब उसे बहुगुणिता (Polyploidy) कहते हैं, जैसे ट्रिप्लॉयड-3n, पेंटाप्लॉयड 5n आदि। इसी तरह से जब किसी प्राणी में उसकी द्विगुणित गुणसूत्रों की कुल संख्या में से एक अथवा अधिक गुणसूत्रों की कमी अथवा वृद्धि हो तो इस अवस्था को एन्यूप्लॉयडी (Aneuploidy) कहते हैं। गुणसूत्रों की वृद्धि को हाइपरप्लॉयडी (Hyperploidy) तथा एक गुणसूत्र की कमी को मोनोसोमी(Monosomy) कहते हैं।

(2) लिंग गुणसूत्रीय असामान्यताएँ (Sex chromosomal abnormalities) -
जब किसी जीव की लिंग गुणसूत्र में विसंगतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ये विसंगतियाँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं -

(1) टर्नर्स सिन्ड्रोम (Turner's Syndrome) –
इसमें क्रोमोसोम की संख्या (44+XO) होती है। यह • एक प्रकार की न्यूनसूत्रता (Monosomy) है। यह X-क्रोमोसोम की आंशिक या पूर्ण न्यूनसूत्रता है। इस सिन्ड्रोम से ग्रसित मनुष्य में दो के स्थान पर केवल एक लिंग गुणसूत्र पाया जाता है।

(ii) क्लाइन फिल्टर सिन्ड्रोम (Klinefelter's syndrome) –
इसमें क्रोमोसोम की संख्या (44 + XXY) होती है। कभी-कभी युग्मक के निर्माण के समय होने वाले अर्द्धसूत्री विभाजन (Meosis) के समय लिंग गुणसूत्रों के वितरण में कुछ असामान्यताएँ उत्पन्न हो जाती हैं और इसमें वृषण (Testes) की वृद्धि आनुपातिक नहीं होती है।

(iii) ट्रिप्लोफीमेल (Triplofemale) -
इस स्थिति में स्त्रियों में सामान्य दो लिंग गुणसूत्रों के स्थान पर तीन X लिंग गुणसूत्र पाये जाते हैं (XCXCX)। (iv) द्विलिंगता (Hermaphroditism)—इसमें अण्डाशय एवं वृपण (Ovary and Testes) एक ही मनुष्य में पाया जा सकता है।

एकल जीन विसंगतियाँ (Single gene disorders)

प्रत्येक जीन एक विशिष्ट गुणसूत्र में एक विशिष्ट स्थान पर स्थित होता है, इसे बिन्दुपथ (Locus) कहते हैं। जीन्स गुणसूत्रों पर एक रैखिक क्रम (Linear arrangement) में स्थित होते हैं। एक जीन किसी एन्जाइम या प्रोटीन के पूर्ण अणु का संश्लेषण न करके केवल एक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला (Polypeptide chain) के संश्लेषण को नियंत्रित करता है। प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया में DNA कोडॉन पर स्थित आनुवंशिक सूचनाएँ - RNA पर अनुलेखित (Transcribed) होती हैं, जो कि नाभिक के बाहर आकर आनुवादित होकर 1-RNA की अनेक शृंखलाओं के द्वारा ऐच्छिक प्रोटीन्स को निर्मित करते हैं। उपर्युक्त चरणों में से किसी एक में विसंगति के परिणामस्वरूप आनुवंशिक रोग (Genetic disease) होते हैं। यह रोग गुणसूत्रीय (Chromosomal), एकल जीन विसंगति (Single gene disorders) या पॉलिजीनिक बहुकारकीय विसंगतियाँ हो सकती हैं।

एकल जीन विसंगतियाँ (Single Gene disorders) मुख्य रूप से अप्रभावी होती हैं। एकल जीन विसंगतियों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं -
(i) सिकल सेल एनीमिया,
(ii) एल्कैप्टोन्यूरिया,
(iii) एल्बीनिज्म,
(iv) थैलेसिमिया (Thalassemia)
(v) सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis) आदि ।