जीन विनिमय (Crossing over)

एक जोड़ी समजात गुणसूत्र के क्रोमैटिड्स के संगत खण्डों में जीन विनिमय के फलस्वरूप सहलग्न जीन्स में पुनः संयोग की प्रक्रिया को जीन विनिमय (Crossing over) कहते हैं।

मॉर्गन (Morgan) के अनुसार, सहलग्न जीन वंशागति के समय F, पीढ़ी से केवल पैतृक संयोग ही बनाते हैं तथा गुणसूत्र पर उपस्थित सभी जीन पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक समूह में वंशागत होते हैं, परन्तु कुछ संतति जीवों में जीन्स के नये संयोग भी देखने को मिलते हैं अर्थात् यहाँ सहलग्न जीन्स पृथक् हो गये हैं और इनके स्थान पर युग्मविकल्पी जीन्स के नये संयोग बने हैं।

उदाहरण- 1. ड्रोसोफिला में पुनः संयोग-धूसर (Grey) शरीर तथा लुप्तावशेपी (Vestigial) पंखों वाली मक्खी (BBvw) तथा काले (Black) शरीर व लम्बे (Long) पंखों वाली मक्खी (bbVV) के संकरण से F, पीढ़ी में उत्पन्न सभी मक्खियाँ धूसर (Grey) शरीर लम्बे पंखों वाली (BbVv) होंगी, इन F पीढ़ी की मक्खियों का काले शरीर व लुप्तावशेषी पंखों वाली अप्रभावी (Recessive) मक्खियों (bbvv) से परीक्षार्थ संकरण (Test cross) करने पर चार प्रकार की संतति मक्खियाँ मिलेंगी।

जीन विनिमय की विधि (Methods of crossing over)

(1) युग्मन (Synapsis) - अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रथम अवस्था प्रोफेज-I की जायगोटीन उपावस्था में दोनों जनकों के गुणसूत्र एक-दूसरे के निकट आकर लम्बाई में जोड़ियाँ बना लेते हैं, यह प्रक्रिया गुणसूत्र के एक सिरे से शुरू होकर जिप की तरह से दूसरे सिरे तक चलता है, इसे Synapsis कहा जाता है। गुणसूत्रों की यह अवस्था बाईवेलेंट कहलाती है।

(2) द्विगुणन (Duplication) - प्रोफेज-I की पैकिटीन उपावस्था में बाईवेलेंट का प्रत्येक गुणसूत्र सेण्ट्रोमीयर के अलावा सम्पूर्ण लम्बाई में दो क्रोमैटिडों में बँट जाता है। अब प्रत्येक बाईवेलेंट चार क्रोमैटिडों वाला बन जाता है, इसे टेट्राड कहते हैं। इनमें एक ही गुणसूत्र के क्रोमैटिड Sister chromatid कहलाते हैं तथा बाईवेलेंट के अलग-अलग गुणसूत्रों के क्रोमैटिड्स को Non-sister chromatid कहा जाता है।

(3) जीन विनिमय (Crossing over) - प्रोफेज-I की डिप्लोटीन (Diplotene) अवस्था में जब युग्मित गुणसूत्र अलग होना प्रारम्भ करते हैं तब भीतरी क्रोमैटिड कहीं-कहीं पर एक-दूसरे को क्रॉस (Cross) करते हैं।

इन क्रॉस वाले बिन्दुओं पर क्रोमॅटिड के टुकड़ों में विनिमय होता है जिससे बाईवेलेंट गुणसूत्रों के चारों क्रोमैटिड में से अन्दर वाले Non-sister chromatid के बीच उनके कुछ भागों की अदला-बदली हो जाती है, इस क्रिया को जीन विनिमय कहते हैं जबकि दोनों बाहरी Non-sister chromatid अपनी मूल अवस्था में रहते हैं।

जीन विनिमय का महत्व (Significance of crossing over)

(1) चार क्रोमैटिडों में केवल दो में Crossing over होगा तथा शेष दो अपना वास्तविक रूप बनाए रखेंगे।

(2) बाईवेलेंट के सिर्फ Non-sister क्रोमैटिडों में Crossing over होगा। एक ही गुणसूत्र के क्रोमैटिडों में क्रॉसिंग ओवर नहीं होगा।

(3) कियाज्मेटा की संख्या बाईवेलेंट की लम्बाई पर निर्भर होगी अर्थात् गुणसूत्र जितने लम्बे होंगे उतनी ही अधिक कियाज्मेटा बनने की सम्भावना होगी।

(4) गुणसूत्रों पर जीन्स जितनी दूरी पर स्थित होंगे उतनी उनकी क्रॉसिंग ओवर के द्वारा पृथक् हो जाने की सम्भावना अधिक होगी।

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