लीबिग का न्यूनतमता का नियम

जर्मन जीव-रसायनज्ञ जुस्टस वॉन लीबिग (Justus Von Liebig) ने सन् 1840 में सर्वप्रथम एक महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार जीवधारी आवश्यकताओं की पारिस्थितिकीय श्रृंखला (Ecologi cal chains) न सबस कमजार कड़ा द्वारा नियन्त्रित हो सकता है। लीबिग ने खनिज पोषकों का पौधों की वृद्धि से सम्बन्ध पता लगाया। उनके अनुसार पौधों की वृद्धि उन पोषक तत्वों या पदार्थों पर निर्भर करती है, जो आवश्यकतानुसार कम से कम मात्रा में उपस्थित होते हैं। इसी को लीबि का न्यूनतमता का सिद्धान्त कहते हैं।

ब्रिटिश वैज्ञानिक ब्लैकमैन (Blackman) ने न्यूनतमता के सिद्धान्त को दूसरे सीमाकारी कारकों के साथ जोड़ा है। दूसरे कारकों एवं अधिकतमता का सीमाकारी प्रभाव सहनशीलता के नियम में सम्मिलित किये गये। इस प्रकार न्यूनतमता का यह सिद्धान्त सीमाकारी कारकों की अवधारणाओं का एक दृष्टिकोण ही दर्शाता है। इन्होंने अध्ययन करके यह बताया कि प्रकाश-संश्लेषण की गति चरम तीव्रता से करने वाले कारक की सान्द्रता द्वारा नियन्त्रित होती है।

उदाहरण-पौधों की वृद्धि के सम्बन्ध में जल, कार्बन डाइऑक्साइड आदि कारक कितनी ही अधिक मात्रा में क्यों न उपलब्ध हों उनका पौधों की वृद्धि के लिए उपयोग बोरॉन जैसे अल्प कारक पर निर्भर करेगा, जो सदैव अल्प मात्रा में भूमि में पाये जाते हैं। लीबिग ने सीमाकारी कारकों का सिद्धान्त केवल पौधों के लिए दिया था, किन्तु टेलर (Taylor, 1934) ने इस सिद्धान्त को सभी जीवधारियों के लिए विस्तृत कर दिया और इसकी परिभाषा निम्नलिखित तरह से दिया -

"जीवधारियों की जैविक क्रियाएँ उन सार मूल वातावरणीय कारकों से प्रतिबन्धित रहती हैं, जो न्यूनतम मात्रा में उपलब्ध होते हैं।"


ओडम (Odum) के अनुसार, लीबिंग का न्यूनतमता का सिद्धान्त केवल उन रासायनिक कारकों तक ही सीमित माना जाना चाहिए, जो जीवधारियों की कार्यिकी के लिए आवश्यक है। अतः अन्य वातावरणीय कारकों पर शेल्फोर्ड का सहनशीलता का नियम लागू करना चाहिए।