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मधुमक्खी की विषाक्तता और उपचार (Toxicity of Honeybee and Treatment)

मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of honey bee)

भारतवर्ष में मधुमक्खियों की पाँच जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें एपिस डॉसेंटा (Apis dorsata), एपिस इंडिका (A. indica), एपिस फ्लोरिया (A. florea), मेलिपोना इरिडिपेनिस (Melipona indipennis) तथा एपिस मेलिफेरा (A. mellifera) | इन मधुमक्खिय में बहुरूपता (Polymorphism) एवं श्रम विभाजन (Division of labour) स्पष्ट एवं अच्छी विकसित अवस्था में पाया जाता है। बहुरूपी प्रकारों की रानी (Queen) एवं श्रमिक (Worker) मधुमक्खियों में दंशक उपकरण (Sting apparatus) पाया जाता है। देश उपकरण में एक जोड़ी अम्लीय विष ग्रंथियाँ (Acid venom gland), एक क्षारीय ग्रंथि (Alkaline gland), एक मजबूत पेशीय बल्ब तथा काइटिन युक्त डंक (Chitinized sting) पाए जाते हैं।

मधुमक्खी विष (Honeybee poison) - मधुमक्खी के विष में हिस्टामिन (Histamine) एवं मेलिटिन (Mellitine) नामक विशिष्ट प्रोटीन पाए जाते हैं। इन प्रोटीन्स के अतिरिक्त हायलूरोनाइडेज (Hyluronidase), फॉस्फोलाइपेज (Phospholipase), ए एवं बी ऐपामिन (Apamin) एवं पेप्टाइडेज (Peptidase) पाए जाते हैं।

विष के लक्षण (Symptoms of venom) - मधुमक्खी एवं वर्ग कीट जब किसी भी मनुष्य को काटते हैं तब डंक की सहायता से वह घाव बनाता है और घाव के अंदर गहराई तक जाकर यह डंक विप को अंदर पहुँचाने में सहायता करता है।

विष के शरीर में प्रवेश करने पर निम्नलिखित लक्षण परिलक्षित होते हैं -

(1) काटने वाले भाग में दर्द, लालिमा तथा सूजन दिखाई देता है।
(ii) दर्दयुक्त एवं कभी-कभी घातक अभिक्रियाएँ होती हैं। (iii) मुख, गले, चेहरे, गर्दन या भुजाओं पर, लेरिंग्स (Larynx) या ग्रसनी (Pharynx) का सूजन तथा अवरोध निर्मित हो जाता है।


मक्खियों के द्वारा अनेकों डंक के प्रहार से पेट में विसंगति एवं उल्टी होना तथा डायरिया के साथ मूर्च्छा होने की क्रिया दिखाई देती है। यदि दंश घातक नहीं होता है, तब इसका प्रभाव 24 घंटे तक रहता है। तीव्र अभिक्रियाओं की स्थिति से 2-15 मिनट में मृत्यु हो सकती है।

उपचार (Treatment)

1. डंक को शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए तथा वहाँ पर चीरा लगाकर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए

2. स्थानीय भाग में देश पर एवं चारों ओर एन्टीहिस्टामिन (Antihistamine) औषधि का उपयोग करना चाहिए।

3. बहुगुणित डंक दंश में हाइड्रोकार्टिसोन (Hydrocortisone) को अंतः शिरायी (Intravenously) रूप से देने से लाभ होता है।

4. पित्ती एवं सूजन में कैल्सियम को अंतःशिरायी रूप (Intravemously) देने से लाभ होता है।


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