सर्प विष (Snake venom)

सर्प के विषग्रंथियों में तैयार होने वाला द्रव पदार्थ सर्प विष (Snake venom) कहलाता है। यह एक जटिल कार्बनिक यौगिक (Organic compound) होता है। विष एक स्वच्छ, चिपचिपा, पीले रंग का द्रव पदार्थ होता है, जो कि रंगहीन एवं गंधहीन होता है तथा शरीर के टूटे-फूटे भाग पर ही क्रिया करता है। इसका संगठन देखने पर पता चलता है कि सर्प विष में 30-35% एक विषैली प्रोटीन्स होती है। यह प्रोटीन्स पानी में घुलनशील होते हैं और शरीर के अंदर रक्त में घुलने पर ही प्राण घातक होती है। सर्प विष को सिल्वर नाइट्रेट (Silver nitrate) एवं पोटैशियम परमैंगनेट (Potassium perman ganate) के घोल द्वारा अवक्षेपित (Precipitated) किया जा सकता है। किसी व्यक्ति पर सर्प के विष का प्रभाव सर्प के प्रकार तथा विष की मात्रा पर निर्भर करता है। भारत वर्ष में पाए जाने वाले तीन प्रमुख सर्पों के विष की तीव्रता उसके प्रभाव तथा विष के लक्षण उसके उपचार का वर्णन नीचे दिया जा रहा है।

1. क्रेट के विष के लक्षण (Symptoms of Krait venom) - क्रेट अत्यधिक विषैला सर्प है और इसके काटने से प्राणी के शरीर में कोबरा की तुलना में तीन गुना विष रोगी के शरीर में पहुंचता है। विष जैसे ही शरीर के अंदर पेट में पहुंचता है, तो वहाँ अत्यधिक पीड़ा होती है। आमाशय एवं छोटी आंत में आंतरिक रक्त रखाव प्रारंभ हो जाता है साथ ही रक्त की लाल रक्त कणिकाएँ (R.B.Cs.) टूटने लग जाती है। शरीर के कई भागों में लकवा की स्थिति निर्मित हो जाती है। 6-24 घंटे के अंदर विष के प्रभाव से रोगी की मृत्यु हो जाती है।

2. कोबरा के विष के लक्षण (Symptoms of Cobra venom) - कोबरा का विष न्यूरोटॉक्सिक (Neurotoxic) होता है, जो कि प्राणी के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे श्वसन तंत्र की पेशियाँ लकवाग्रस्त (Paralyse) हो जाती हैं। विप के प्रभाव से रोगी को जलन, झनझनाहट होती है। साथ ही जिस भाग में कोबरा ने काटा है, वह भाग सुन्न हो जाता है। इसके बाद उस भाग में सूजन आ जाती है तथा रक्त बहने लगता है। रोगी को नशा होने लगता है, रोगी कमजोर एवं शिथिल हो जाता है। टाँगों की गतिविधि कमजोर होकर सुन्न हो जाती है और रोगी बैठ नहीं सकता है। शरीर से पसीना निकलने लगता है। शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है। काटने के समय से 10 मिनट से 2 घंटे के पश्चात् असर दिखाई देता है तथा 5-12 घंटे के बीच रोगी की मृत्यु हो जाती है।

3. वाइपर के विष के लक्षण (Symptoms of Viper venom) - वाइपर एक विपैला सर्प है एवं इसके काटने पर रोगी के शरीर में काटे हुए स्थान पर सूजन हो जाती है तथा अत्यधिक दर्द होने लगता है। विष की मात्रा अत्यधिक होने पर जल्द ही मृत्यु हो जाती है। विष की मात्रा कम होने पर रोगी का जी मिचलाने लगता है, उल्टियाँ होती हैं तथा निकलने वाला पसीना ठंडा होता है। ऊतक की नुकसान के कारण रक्त वाहिनियों एवं कोशिकाओं की एण्डोथिलियम (Endothelium) नष्ट हो जाती है, जिससे आंतरिक अंगों से भी रक्तस्राव होने लगता है। कुछ घंटों से लेकर एक दो हफ्ते पश्चात् रोगी की मृत्यु हो जाती है।

सर्पदंश से सुरक्षात्मक उपाय (Preventive measures of snake bite)

सर्प दंश से बचने के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए -

1. सर्प से बचाव के लिए कुत्ते एवं बिल्ली पालना चाहिए।
2. जमीन पर सोने से बचना चाहिए।
3. अंधेरे में विचरण नहीं करना चाहिए एवं प्रकाश की व्यवस्था से चलना चाहिए।
4. आवासीय स्थानों के चारों ओर घास, झाड़ नहीं होना चाहिए बल्कि साफ-सुथरा होना चाहिए।
5. जंगल में जाते समय लंबे जूतों का उपयोग करना चाहिए।
6. सर्प पाए जाने वाले स्थानों से दूर रहना चाहिए।

सर्पदंश का उपचार (Treatment of snake bite)

सर्प के काटने पर निम्नलिखित प्राथमिक उपचार करना चाहिए -

1. सर्प काटने के स्थान के ऊपर वाले भाग को रस्सी से बाँध देना चाहिए, जिससे उस भाग के रक्त का प्रवाह हृदय की ओर न हो सके।

2. काटे हुए भाग पर चीरा लगाकर, वहाँ के दूषित रक्त को चूपक यंत्र से बाहर निकाल देना चाहिए।

3. घाव पर बर्फ रखकर उस भाग को ठंडा करना चाहिए तथा पोटैशियम परमैंगनेट (Potassium permangnate) को भर देना चाहिए।

4. तुरंत ही विष प्रतिरोधी (Antivenom) का इंजेक्शन दिलवाना चाहिए, क्योंकि यह सर्प विष का सबसे अच्छा उपचार है।

5. रोगी को काफी पिलाकर आराम करने देना चाहिए।

6, रोगी को उत्तेजित होने से बचाना चाहिए तथा उसे सांत्वना देते रहना चाहिए।


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