सूक्ष्मजैविकी (Microbiology)

सूक्ष्मजैविकी जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें सूक्ष्मदर्शीय जीवों का अध्ययन किया जाता है। ये ऐसे जीव जो एककोशीय होते हैं एवं केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखे जाते हैं सूक्ष्मदर्शीय जीव कहलाते हैं, जैसे-जीवाणु, विषाणु, शैवाल, प्रोटोजोआ आदि। सूक्ष्मजीव सम्पूर्ण जीवमण्डल (Biosphere), थलमण्डल (Lithosphere), जलमण्डल (Hydrosphere) एवं वायुमण्डल (Atmosphere) में फैले रहते हैं। सूक्ष्मजीव मनुष्य के स्वास्थ्य एवं कल्याण से अधिक सम्बन्धित होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव लाभकारी होते हैं तो कुछ सूक्ष्मजीव हानिकारक भी होते हैं।

घरेलू उपयोग के जल को स्वादहीन, रंगहीन तथा स्वच्छ होना चाहिए। यह रसायनों एवं रोगाणुओं से मुक्त होना चाहिए। प्राकृतिक जल स्रोत में, जो प्रदूषित नहीं है, प्राय: कुछ सैप्रोफिटिक बैक्टीरिया (Saprophytic bacteria), जैसे—स्यूडोमोनास (Pseudomonas), सेरेटिया (Serratia), फ्लैवोबैक्टीरियम (Flavobacterium), क्रोमोबैक्टीरिया (Chromobacteria), ऐसिनेटोबैक्टर (Acinetobactor) तथा ऐल्कालीजीन (Alcaligenes) पाये जाते हैं। कुछ मृदा बैक्टीरिया (Soil bacteria) जैसे-एन्टेरोबैक्टर (Enterobacter) आदि भी पानी में घुलकर पहुँच जाते हैं। उपर्युक्त वर्णित बैक्टीरिया हानिरहित होते हैं। इनके अलावा कुछ अन्य जीवाणु तथा सूक्ष्मजीव भी स्वच्छ जल में पाये जाते हैं, जैसे-ऐक्टिनोमाइसीटीस (Actino mycetes), यीस्ट (Yeast), बैसिलस स्पोर्स (Bacillus spores), क्लॉस्ट्रिडियम स्पोर्स (Clostridium spores), सेल्यूलोज डाइजेस्टर्स (Cellulose digesters), ऑटोट्राफिक बैक्टीरिया (Autotrophic bacte ria), यूग्लीना (Euglena), पैरामीशियम (Paramoecium) आदि।

इसके विपरीत दूषित जल में कार्बनिक पदार्थ (Organic matter) की अधिकता होती है, जो सीवेज, मल तथा फैक्टूिरियों से आता है। इसमें पाये जाने वाले जीव हेटेरोट्रॉफिक (Heterotrophic) होते हैं। मौजूद कार्बनिक पदार्थ का इन जीवों द्वारा अधूरा पाचन (Incompelete digestion) किया जाता है, जिससे जल में ऐसिड (Acid), क्षार (Bases), ऐल्कोहॉल (Alcohol) तथा गैसें इकट्ठा हो जाती हैं। मुख्यत: कोलिफॉर्म बैक्टीरिया (Coliform bacteria) दूषित जल में पाये जाते हैं। ये लैक्टोज (Lactose) को ऐसिड (Acid) तथा गैस (Gas) में बदल देते हैं। इस समूह में मुख्यतः ई. कोलाई (E. coll) तथा एन्टेरोबैक्टर (Enterobacter) प्रजाति (Spocies) के जीवाणु पाये जाते हैं। स्ट्रेप्टोकॉकस (Streptococcus), प्रोटीयस (Proteus) तथा स्यूडोमोनास (Pseudomonas) भी पाये जाते हैं, जो कोलिफॉर्म समूह के नहीं है।

कभी-कभी दूषित करने वाले जीव (Polluting organism) तेजी से गुणित (Multiply) होते हैं और उपस्थित ऑक्सीजन खत्म कर देते हैं। जैसे- यदि अचानक पानी में न्यूट्रिएन्ट (Nutrient) पहुँच जायें (सीवेज या औद्योगिक क्षेत्र के कचरे द्वारा) तो पानी में शैवालों (Algae) की संख्या तेजी से बढ़ती है, जिससे ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है और प्रोटोजोआ, मछलियों, पौधों आदि को ऑक्सीजन कम पड़ने लगती है। अतः ये मरने लगते हैं तथा ऐसे मृत जीव जन्तुओं की एक परत, कीचड़ के रूप में पानी के तले में इकट्ठा हो जाती है। इस कीचड़ में अवायवीय जाति (Anacrobic species) की क्लॉस्ट्रिडियम (Clostridium), डीसल्फोविनियो (Desulfovibrio) आदि तेजी से गुणित होने लगते हैं। ये यहाँ गैसों का उत्पादन करते हैं जिसमें से एक गैस HoS, लेड (Lead) या आयरन (Iron) से क्रिया करके कीचड़ को काला तथा जल को विषैला बना देते हैं। धीरे-धीरे ऑक्सीजन के सम्पूर्ण रूप से समाप्त होने पर बैक्टीरिया अपने ही मल (Water product) में मृत होते जाते हैं। इस प्रकार जल में जीवन का निशान मिट जाता है। ऐसी नदी या तालाब को मृत नदी या तालाब कहते हैं।

जल का उपचार (Treatment of water)

जल उपचार के दो तरीके हो सकते हैं। पहला जल में उपस्थित रोगाणुओं एवं जीवाणुओं को समाप्त करके तथा दूसरा जल के शुद्धिकरण तथा सीवेज डिस्पोजल द्वारा।

जल का शुद्धीकरण

यह तीन चरणों में की जाती है -

(i) सेडिमेन्टेशन (Sedimentation) - इसका मुख्य उद्देश्य पत्ती, बालू, कंकड़ तथा अन्य बहने वाले पदार्थों को जल से अलग करना है। यह बड़े-बड़े टैंकों में किया जाता है, इन्हें सेटलिंग टैंक (Settling tank) कहते हैं।

ऐल्युिमिनियम सल्फेट (एलम) (Aluminium sulphate) या आयरन सल्फेट (Iron sulphate), सेडिमेन्टेशन (Sedimentation) क्रिया को तीव्र करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इन पदार्थों को मिक्सिंग चेम्बर (Mixing chamber) में मिलाया जाता है, जिससे एक जेली की तरह का पदार्थ स्कन्दन (Coagulation) क्रिया के बाद बनता है, जो जल से जीवाणु व कार्बनिक कणों (Organic particles) को अपने साथ टैंक की तली में इकट्ठा कर देते हैं। सेटलिंग टैंक के तल में इकट्ठा इस पदार्थ को फ्लॉक (Flocs) कहते हैं तथा इसके निर्माण की प्रक्रिया को फ्लॉकुलेशन (Flocculation) कहते हैं।

(ii) फिल्ट्रेशन (Filtration) - इस क्रिया के द्वारा जल में बचे हुए सूक्ष्मजीवों को पूरी तरह से हय दिया जाता है। इस क्रिया के लिए साधारणत: सैण्ड (Sand) तथा ग्रैवेल (Gravel) का उपयोग किया जाता है। फिल्टर दो तरह के हो सकते हैं, स्लो सैण्ड फिल्टर (Slow sand filter), जिसमें बारीक सैण्ड के कणों की गहरी परत बनायी जाती है, दूसरा रैपिड सैण्ड फिल्टर (Rapid sand filter) जिसमें सैण्ड के कुछ बड़े कणों की परत बनायी जाती है।

(iii) क्लोरिनेशन (Chlorination) - यह अन्तिम चरण है, जिसमें क्लोरीन गैस मिलायी जाती है। यह गैस क्रियाशील ऑक्सीकारक होती है, जो जल में कार्बनिक पदार्थों (Organic matter) से क्रिया करती है।

अपशिष्ट जल उपचार (Waste Water Treatment)

मानव सभ्यता के रम्भिक काल में जल प्रदूषण की कोई विशेष समस्या नहीं थी, क्योंकि मनुष्य छोटे-छोटे समूहों में वास करते थे और कच्चे अपशिष्टों को नदियों, तालाबों में बहा दिया जाता था अथवा जमीन में गाड़ दिया जाता था, जहाँ इनका जीवाणु-अभिक्रिया के फलस्वरूप स्वाभाविक रूप से विखण्डन हो जाता था तथा मनुष्य को अपेक्षाकृत कम प्रदूषित जल उपलब्ध होता था। जनसंख्या वृद्धि, महानगरों के बनने तथा औद्योगीकरण से जल प्रदूषण की समस्या गम्भीर हो गयी, क्योंकि मानव द्वारा उत्पादित विभिन्न अनुपयोगी एवं अनावश्यक उत्पादों, जैसे- मल (Fecal matter) रासायनिक उत्पाद, खाद्य उत्पादों के फेकने एवं विखण्डन के उचित साधन नहीं जुट पाये हैं। वातावरण के अन्य घटकों के साथ जल स्रोत भी बुरी तरह प्रदूषित हुए हैं, क्योंकि अनावश्यक कार्बनिक उत्पाद इन्हीं स्रोतों में डाले या बहाये जाते हैं। इस अपशिष्ट-उत्पाद युक्त जलीय द्रव्य अर्थात् अपशिष्ट जल को मल-जल अथवा सीवेज (Sewage) कहते हैं। सीवेज को जल स्रोत में डालने तथा जमीन में गाड़ने से पीने योग्य जल के प्रदूषण का भय बना रहता है। अत: सीवेज उपचार (Sewage treatment) द्वारा सीवेज का उपयुक्त तरीके से डिस्पोजल (Disposal) किया जाता है। उपचार के अन्तर्गत प्रदूषण रोकने के अतिरिक्त सीवेज से उपयोग हेतु जल की पुनः प्राप्ति के साथ ऊर्जा के स्रोत लाभदायक कार्बनिक पदार्थों की प्राप्ति होती है।

सीवेज उपचार (Sewage treatment)

छोटे पैमाने पर घरों तथा बड़े पैमाने पर नगर पालिकाओं द्वारा किया जाता है। छोटे पैमाने पर सीवेज उपचार सेमयूल द्वारा सैप्टिक टैंक का निर्माण करके किया जाता है, जबकि बड़े पैमाने पर उपचार के लिए पूरे नगर के सीवेज को एक मशीनीकृत सिस्टम के आधार पर बड़े पैमाने पर करती है। यह पूरी प्रक्रिया प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक उपचार की प्रक्रिया द्वारा पूर्ण की जाती है।



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सूक्ष्मजैविकी क्या होता है तथा इस पर टिप्पणी.
Microbiology in hindi