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भारी धातु विषाक्तता पर टिप्पणी (Comments on heavy metal poisoning, BSC final year zoology)

भारी धातु (Heavy metals)

हमारे दैनिक जीवन एवं उद्योगों में विभिन्न धातुओं के बढ़ते हुए प्रयोग से टॉक्सिक धातुओं के प्रदूषण से गंभीर समस्या पैदा हो गई है। जीवों के कोशिकीय ढाँचे के प्रोटीन, एन्जाइम व कलाओं के साथ धातुओं के आयनों द्वारा रासायनिक प्रतिक्रिया के कारण धात्विक विषाक्तता विकसित होती है। अधिकांश भारी धातु या अकेले या कुछ यौगिकों के रूप में प्राणियों एवं मनुष्य पर घातक प्रभाव डालते हैं। पारा, लँड, कैडमियम, आर्सेनिक व निकल आदि धातु मनुष्य के लिए हानिकारक होते हैं। इन धातुओं से निर्मित पेस्टिसाइड या यह धातु, मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं में तीव्र एवं दीर्घकालिक विषाक्तता उत्पन्न करती है। मुख्यतः भारी धातुओं एवं उनके पेस्टिसाइड के विषाक्तता एवं प्रभाव का वर्णन निम्नलिखित हैं -

1. पारा (Mercury) - पारा मुख्य रूप से अनेक वैज्ञानिक एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों, कास्टिक सोडा व क्लोरीन बनाने वाले कारखानों, हर्बिसाइड, फल्गीसाइड, विस्फोटक पदार्थों तथा फार्माकोलॉजी में काम आता है। अपशिष्ट पदार्थों का पारा बैक्टीरिया द्वारा मेथिल व एथिल Hg में बदल दिया जाता है, जो कि अत्यधिक विषैले होते हैं। यह मरक्यूरिक क्लोराइड, मरक्यूरिक सायनाइड, मरक्यूरिक सल्फाइड, नाइट्रेट के रूप में पाया जाता है।

अवशोषण एवं वितरण (Absorption and Distribution)

पारा सामान्य ताप पर वाष्पीकृत हो जाता है तथा साँस के साथ व त्वचा द्वारा शरीर में प्रवेश करता है। यह रुधिर द्वारा ऑक्साइड के रूप में शरीर में परिवहन करता है। यह मस्तिष्क में विशेष रूप से संचित रहता है। पारे के यौगिक आहार नाल व त्वचा द्वारा सरलता से अवशोषित हो जाते हैं। कार्बनिक पारा फेफड़ों व त्वचा द्वारा अवशोषित होता है।

टॉक्सिसिटी (Toxicity) - धात्विक पारा तीव्र टॉक्सिसिटी (Acute toxicity) विकसित करता है, जिसके कारण उल्टी होने लगती है। निर्जलीकरण (Dehydration) के कारण रोगी मूर्छित होकर मर जाता है।

अकार्बनिक रूप में पारे की टॉक्सिसिटी (Toxicity) होने पर अत्यधिक लार बहने लगती है तथा डायरिया हो जाता है। चिरकालिक टॉक्सिसिटी (Chronic toxicity) होने पर व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। उसमें सोचने विचारने की शक्ति क्षीण हो जाती है और वह सदैव मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है।

पारे के कार्बनिक यौगिकों द्वारा मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है, दृष्टि क्षीण होने लगती है तथा पक्षाघात हो जाता है और रोगी कोमा की स्थिति में आ जाता है। इस प्रकार के यौगिकों से गर्भ गिर जाता है तथा टेरेटोजेनेसिस (Teratogenesis) विकसित हो जाती है।

2. आर्सेनिक (Arsenic) - आर्सेनिक सस्ता होने के कारण आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसमें गंध एवं स्वाद नहीं होता है। आर्सेनिक के सभी यौगिक प्राणियों, कीटों एवं स्तनधारियों के लिए अति विषैले आंतरिक विष होते हैं। इसमें लेड आर्सिनेट, कॉपर आर्सेनाइट, आर्सेनिक ऑक्साइड, सोडियम आर्सिनाइड, जिंक आनाइट, जिंक आर्सेनेट एवं आर्सेनुरेटेड हाइड्रोजन गैस मुख्य यौगिक होते हैं। आर्सेनिक यौगिक की विषाक्तता तीक्ष्ण या दीर्घकालिक हो सकती है।

तीक्ष्ण विषाक्तता (Acute poisoning) - लक्षण, मात्रा एवं रूप पर आधारित होते हैं तथा भोजन के साथ या बिना भोजन के लिया गया है, इस पर निर्भर करता है। इसके लेने के एक घण्टे के अन्दर -

(1) रोगी मूर्च्छा आने की शिकायत करता है।
(ii) गले एवं आमाशय के जलनयुक्त दर्द।
(iii) लार सावण की अधिकता, अधिक प्यास लगना और अत्यधिक उल्टी होना।
(iv) उल्टी में पित्त एवं रक्त के थक्के एवं श्लेष्म पाया जाता है।
(v) उदर शूल (Abdominal colic) के साथ पानी समान मल, जिसमें रक्त एवं श्लेष्म पाया जाता है। बाद में मल रंगहीन हो जाता है। मल चावल के पानी के समान होता है।
(vi) मूत्र (Urine) कम मात्रा में तथा मूत्र में लाल रक्त कणिकाएँ एवं ऐल्ब्यूमिन पाया जाता है।
(vii) निर्जलीकरण (Dehydration) के साथ पिण्डलियों की पेशियों (Calf muscles) में ऐंठन होती है।
(viii) नब्ज (Pulse) तीव्र हो जाती है, शिथिल, अनियमित होती है। त्वचा ठण्डी एवं ऐंठन, चिरनिद्रा तथा मृत्यु हो जाती है।

विषैली गैस (Poisonous gas) - आर्सेनुरेटेड हाइड्रोजन (Arsenureted hydrogen) को यदि सूंघ लिया जाता है तो परिणामस्वरूप लाल रक्त कणिकाओं का परिगलन होता है। साथ ही साथ हीमोग्लोबिननूरिया और इसके पश्चात् पीलिया एवं रक्तक्षीणता होती है।

वृक्क (Kidney) के द्वारा हीमोग्लोबिन को उत्सर्जित किया जाता है, जिसके कारण वृक्क नलिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और मूत्र लाल गहरे रंग का आता है।

उपचार (Treatment) - विष को तुरंत वामक औषधि (Emetic) या जठरीय धुलाई/ वस्ति क्रिया (Gastric lavage) के द्वारा बाहर निकालना चाहिए। जल की अत्यधिक मात्रा, जिसमें ताजा बना हुआ हाइड्रेटेड फेरिक ऑक्साइड (Hydrated ferric oxide) मिला होता है, को आमाशय में पहुंचाना चाहिए, जो कि आर्सेनियस अम्ल (Arsenius acid) को हानिकारक अघुलनशील फेरिक आर्सेनाइट (Ferric arsenite) में परिवर्तित करता है।

सघन अन्तरापेशीय डाइमरकेपरॉल (Dimercaprol = BAL) के इन्जेक्शन को 2-5 से 3 mg/kg शरीर भार के प्रथम दो दिन तक 4 घण्टे के अन्तराल से लगाना चाहिए। इसके पश्चात् 10 दिन तक कभी-कभी लगाना चाहिए।

दीर्घकालिक विषाक्तता (Chromic toxicity) - जब आर्सेनिक को लम्बे समय तक थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लिया जाये या उद्योगों (Industries) में जैसे कच्ची धातु (Oro) के प्रगलन/प्रद्रावण/पिघलाने (Smelt ing), परिष्करण/परिष्कृत (Refining) करने या फिर हत्या सम्बन्ध में (Homicidal) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उपयोग होता है, तब दीर्घकालिक आर्सेनिक विषाक्तता विकसित होती है। परिणामस्वरूप तीक्ष्ण विषाक्तता (Acute toxicity) के लक्षणों के पश्चात् दीर्घकालिक विषाक्तता के लक्षण पाये जायेंगे।

लक्षण (Symptoms)

(i) शरीर भार में कमी, भूख नहीं लगना, डायरिया (Diorrhea), उदर शूल (Colicky pain), उल्टी (Vomiting), कब्ज (Constipation), घना आवरणित जीभ (Congested coated tongue)।

(ii) त्वचा से स्थानबद्ध वर्णकता (Pigmentation), सम्पूर्ण शरीर में दिखाई देती है।

(iii) त्वचा में एक्जिमा (Eczema), अपपत्रिक डर्मेटाइटिस (Exfoliate dermatitis) एवं एपिथीलियोमा (Epithelioma) विकसित होते हैं।

(iv) नाखून खुरदुरे, टूटने वाले, भुरभुरे हो जाते हैं तथा बाल (Hairs) गिरने/ झड़ने लगते हैं। दर्द रहित नासिका पट्ट (Nasal septum) में छिद्र हो जाते हैं।

(v) अस्थि मजा की कमी एवं रक्तक्षीणता (Anaemia) पायी जाती है।

(vi) जड़ीभूत होना / सुन्न होना (Numbness), झनझनाहट/ टनटनाहट (Tingling), गतिभ्रंश (Ataxia), कंपकंपाना (Tremors), पेशियों की शिथिलता, तन्त्रिका शोथ (Neuritis) इसके पश्चात् मृत्यु (Death) हो जाती है।

(vii) निरन्तर आर्सेनिक धूल (Arsenic dust) के उद्घासन (Exposure) के कारण लैरिंक्स (Larynx) एवं ब्रोन्काई (Bronchi) में नजला / जुकाम / प्रतिश्याय (Catarrh) के परिणामस्वरूप दीर्घकालिक कफ / खाँसी, रक्तयुक्त थूक (Sputum) घरघराहट वाली आवाज पायी जाती है।

 (viii) नेत्रों में कन्जक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) रोग होता है।

उपचार (Treatment) – विषाक्तता वाले स्थान से रोगी को हटाना चाहिए। पोषणयुक्त भोजन उपयोगी सिद्ध होता है। उद्योगों में दीर्घकालिक विषाक्तता को रोकने के लिए उपयुक्त उपचार होना चाहिए।


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