पारिस्थितिक अनुक्रमण (Ecological succession) अथवा समुदाय का विकास (Growth of community)

यह किसी समुदाय के परिवर्तित होने की क्रमिक विधि है अथवा यह विभिन्न समुदायों का क्रम है, जो कि किसी क्षेत्र में एक के बाद एक पायी जाती है। अंतिम अथवा स्थिर समुदाय को चरम अवस्था (Climax stage) कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है -

प्राथमिक अनुक्रमण (Primary succession) – भूमि खोदकर नये तालाब के बनाने पर उत्पन्न विभिन्न समुदाय प्राथमिक अनुक्रमण को प्रदर्शित करती हैं।

भूमि खोदकर बनाये गये तालाब में पानी भरने पर सर्वप्रथम एल्गी एवं अकोशिकीय जीवधारी उत्पन्न होते हैं। फिर तालाब के चारों ओर वनस्पतियाँ उग आती हैं और उससे तालाब का क्षेत्र छोटा हो जाता है। इस समय तालाब में कुछ कीड़े एवं गैस्ट्रोपोड्स पैदा हो जाते हैं। कई वर्षों बाद जब तालाब में खूब पानी तथा वनस्पतियाँ होती हैं तब उसमें मछलियाँ, मेढक, सर्प आदि उत्पन्न हो जाते हैं। इसी समय तालाब के तल में मसल्स (Mussels), वॉर्म्स (Worms) और तल पर रहने वाली मछलियाँ पैदा हो जाती हैं।

इस प्रकार विकसित समुदाय तालाब समुदाय (Pond community) का क्लाइमैक्स बनाती है।

द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary succession) - 
उपर्युक्त प्रकार से बने तालाब में यदि धीरे-धीरे कई वर्षों में वर्षा के जल के साथ मिट्टी आती जाती है तथा यह पूरी तरह भर कर पहले दलदली भूमि तथा फिर यह भूमि में परिवर्तित हो जाता है। इस स्थल पर अब स्थलीय समुदाय (Terrestrial community) उत्पन्न हो जाती है।

अतः यह स्पष्ट है कि प्रत्येक स्थिर समुदाय के पीछे एक लम्बा इतिहास है तथा यह क्रमिक विकास के बाद बनी है।

विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक अनुक्रम (DIFFERENT TYPES OF ECOLOGICAL SUCCESSION)

1. मरुक्रमक (Xerosere) - यह अनुक्रम उन स्थानों पर मिलता है जहाँ पानी की बहुत कमी होती है। जैसे- रेगिस्तान, ढलानें, नग्न पहाड़ियाँ, रेतीले मैदान आदि होते हैं। इस अनुक्रम में निम्नांकित अवस्थाएँ होती हैं -

(a) क्रस्टोज लाइकेन अवस्था (Crustose lichen stage) - रेगिस्तान में अधिक ताप एवं जल की कमी के कारण मृदा में झमस नहीं होती। क्रस्टोज लाइकेन (Crustose lichen) वर्षा ऋतु में अपने अन्दर काफी मात्रा में जल संचित कर लेते हैं, जिसकी मदद से ये फलते-फूलते हैं। इन लाइकेन के उदाहरण राइजोकार्पन (Rhizocarpon) एवं राइनोडिना हैं। ये अम्ल स्रावित करते हैं, जिससे चट्टानों में विघटन हो जाता है। ये लाइकेन जब मर जाते हैं, तो इन मृत लाइकेन तथा चट्टानों के धूल के कणों से मिलकर कुछ ऐसे कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते हैं, जो उच्च लाइकेनों के उगने एवं वृद्धि करने के लिए अनुकूल होते हैं।

(b) फोलियोज लाइकेन (Foliose lichen) - क्रस्येज लाइकेन के बाद डर्मेटोकार्पोन (Dermatocarpon), पार्मेलिया (Parmelia), अम्बिलिकाना आदि उच्च लाइकेन उग आते हैं। चट्टानों की दरारों में कुछ मकड़ी एवं माइट्स (mites) भी पैदा हो जाती हैं। चट्टानों के कण, धूल के कण तथा उच्च श्रेणी के लाइकेन के मृत शरीर से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ तीनों मिलकर ह्यूमस का निर्माण करते हैं, जो एक पर्त के रूप में चट्टान पर जम जाती है। इस मृदा की पर्त में उचित मात्रा में नमी रहती है।

(c) मॉस अवस्था (Moss stage) - हामस की पर्त में पहले टार्टुला (Tortula), ग्रिमिया (Grimia), ब्रियम (Brium), बाफुंला (Barjula) आदि पौधे उगते हैं उसके पश्चात् कुछ मॉस (Moss) इस पर्त में उग आते हैं जिनमें पॉलिट्राइकस (Polytrichus), फ्यूनेरिया (Funaria), स्फैग्नम (Sphagnum) आदि माँस उग आते हैं।

इस पौधों के साथ-साथ कुछ स्प्रिंग टेल्स (Spring tails), मकड़ियाँ (Spiders) एवं माइट्स (Mites) भी उत्पन्न हो जाते हैं।

(d) शाकीय अवस्था (Herbaceous stage) - मॉस के पौधों द्वारा और अधिक चट्टानें विखण्डित होती हैं, जिससे टूटे हुए चट्टानों के कण, धूल के कण तथा मृत पौधों के शरीर आदि मिलकर मिट्टी की कई मोटी पर्त बनाती हैं। यह मिट्टी शाकीय पौधों के लिये विकसित होने के लिये अनुकूलतम होती है। यहाँ एण्ड्रोपोगॉन (Andropogon) तथा ब्रूम सेज (Broom sedge) नामक घास प्रमुख रूप से उगती हैं। इन घासों की जड़ों द्वारा भी चट्टानों का विखण्डन होता रहता है, जिससे लगातार ह्यूमस की परतें बनती रहती हैं।

(e) क्षुप अवस्था (Shrub stage) - ह्यूमस की कई परतें बन जाने के बाद मिट्टी इस योग्य हो जाती है, कि उसमें झाड़ियाँ उग सकें। अतः इस मिट्टी में झाड़ियाँ उग आती हैं, जो 'मुख्यत:' प्रोजोपिस (Projopis), कैपारिस (Capparis), जिजिफस (Zixyphus) तथा अकेशिया (Acasia) आदि होती हैं। इन वनस्पतियों के साथ-साथ कुछ कीट, एरक्निड्स, रैप्टाइल्स एवं मैमल्स भी झाड़ियों में रहने लगते हैं।

(f) चरम अवस्था (Climax stage) - झाड़ियों के उगने के साथ-साथ मृदा में ह्यूमस की मात्रा और अधिक बढ़ जाती है तथा वह काफी मोटी हो जाती है। ऐसी मिट्टी काष्ठीय वृक्षों के उगने के लिये बहुत उपयोगी होती है। अतः अब इस मिट्टी में पहले दूर-दूर छितरे हुए वृक्ष उगते हैं तथा फिर वे घने वनों का रूप ले लेते हैं। यह इस अनुक्रम की अन्तिम अवस्था है।

2. जलक्रमण (Hydrosere) - यह अनुक्रम तालाब, झील एवं समुद्र तट पर मिलता है। यहाँ इस अनुक्रम की व्याख्या नये तालाब बनने का उदाहरण लेकर कर रहे हैं। इसमें निम्नलिखित अवस्थाएँ हैं -

(i) हाइड्रोसीरीज (Hydroseries) - तालाब बनने की शुरुआत में जल पोषक तत्वों की कमी होने के कारण उसमें कोई भी जीवधारी नहीं पाया जाता। सर्वप्रथम कुछ फाइटोप्लॅक्टॉन्स (Phytoplanktons) उत्पन्न होते हैं, जो तालाब की ऊपरी सतह पर पूरी सतह पर फैल जाते हैं। ये फाइटोप्लैक्टॉन्स प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं। फाइटोप्लैक्टॉन्स उत्पन्न होने के साथ-साथ ही तालाब के जल की सतह पर जूप्लैक्टॉन्स (Zooplanktons) भी उत्पन्न होने लगते हैं। प्लैक्टॉन्स के मरने पर उनका मृत शरीर तालाब के तल पर बैठ जाता है, जिससे तालाब के तल पर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे तालाब के तल में कुछ जलीय पौधे उग जाते हैं। ये पौधे प्रमुख रूप से सेरेटोफाइलम (Ceratophyllhum) पोटेमोजिटॉन (Potamogeton), वैलिसनेरिया (Vallisneria) यूट्रिकुलेरिया (Utricularia) आदि होते हैं। प्लॅक्टॉन्स एवं जलीय पौधों के मरने से तालाब में निरन्तर पोषक पदार्थ बढ़ते रहते हैं और ताल उथला हो जाता है।

(II) फ्लोटिंग अवस्था (Floating stage)- जब तालाब में लगभग 6-7 फीट पानी हो जाता है, तब कुछ ऐसे पौधे उग आते हैं, जिसकी जड़ें कीचड़ में धँसी रहती हैं तथा शेष भाग पानी में तैरता रहता है। जैसे ट्रापा (Trapa), निलम्बियम (Nelumbium), मोनोकेरिया आदि। कुछ दिनों बाद वोल्फिया (Wolffia), एजोला (Azolla), लेम्ना (Lemma) आदि स्वतन्त्र रूप से जल की सतह पर तैरने वाले पौधे तालाब में उग आते हैं।

(iii) रोड स्वैम्प अवस्था ( Reed swamp stage) - तालाब के पानी के वाष्पीकरण, रेत, मिट्टी, नष्ट हुए कार्बनिक पदार्थों (Dead organic matter) आदि के लगातार जमा होते रहने से तालाब का तल उथला हो जाता है तथा इसमें रीड स्वैम्प (Reed swamp) पौधे, जैसे- सैजिटेरिया (Saggitaira), रुमैक्स (Rumex), टाइफा (Typha) आदि उग आते हैं तथा सतह पर तैरने वाले तथा दलदल में धँसे हुए पौधे नष्ट हो जाते हैं। कई जन्तु, जैसे कस्तूरी उन्दुर (Mustrants), बीवर (Bevers) आदि विभिन्न प्रकार के पदार्थों को इस तालाब में ले आते हैं, जिससे तालाब में बहुत सारी गाद इकट्ठी होने लगती है और विभिन्न स्थानों पर टापू बनने लगते हैं।

(iv) मार्श-मीडो अवस्था (Marsh meadow stage) - उपर्युक्त अवस्था के बाद तालाब धीरे-धीरे दलदल में परिवर्तित हो जाता है। अब इस तालाब में दलदल में उगने वाले पौधे [सेजेज (Sedges) और रशेज (Rushes)] उग आते हैं। पानी के और अधिक वाष्पीकरण से मार्शी-मीडो (Marshy-meadow) तालाब में बन जाता है। कुछ दिनों बाद दलदली पौधे नष्ट हो जाते हैं तथा हरी एवं काँटेदार झाड़ियाँ उग आती हैं।

(v) वनस्थली अवस्था (Woodland stage) - यह इस अनुक्रम की अन्तिम अवस्था है, जिसमें भूमि और अधिक कठोर एवं सूखी हो जाती है। विभिन्न रासायनिक परिवर्तनों के बाद मृदा भी काफी मात्रा में बन जाती है, जिसमें छोटे-छोटे पेड़ उग आते हैं। वृक्षों की वृद्धि होने पर पूर्ण विकसित वन बन जाता है। जैसे-जैसे वनस्पतियाँ बदलती हैं, वैसे-वैसे जलीय जन्तुओं का स्थान स्थलीय और पृष्ठवंशी जन्तु ले लेते हैं।

3. मीजोसीयर या मध्यक्रमक (Mesosere) - यह अनुक्रमक जीरोसीयर (Xerosere) तथा हाइड्रोसीयर (Hydrosere) मध्य की अवस्था है। यह बहुत ही छोटी अनुक्रम है। इस अनुक्रम के जीवों को जल के आधिक्य अथवा अभाव का सामना नहीं करना पड़ता उन्हें जल उचित मात्रा में मिलता रहता है।

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