Full Width CSS

प्लाज्मिड की संरचना - Structure of Plasmid in Hindi

प्लाज्मिड (Plasmid)

सामान्यतः कोशिकाओं में DNA आनुवंशिक पदार्थ के रूप में पाया जाता है। कुछ जीवों में उसके सामान्य DNA के अतिरिक्त भी एक छोटा DNA कोशिकाद्रव्य में पाया जाता है, जिसे प्लाज्मिड कहते हैं। उदाहरण- जीवाणु, यीस्ट (Yeast) आदि। सामान्यत: प्लाज्मिड जीवाणु में पाये जाते हैं, लेकिन ये यीस्ट (कवक) तथा मटर के अपरिपक्व (Young) मूल कोशिकाओं (Root cells) में भी पाये गये हैं। (क्रीमर एवं वॉन हॉफ, 1983)। प्लाज्मिड कोशिकाओं में प्रायः अतिरिक्त गुणसूत्रीय (Extra chromo somal) एवं बाह्यनाभिकीय (Extranuclear) DNA के रूप में पाया जाता है, जो कि द्विसूत्री (Double stranded) एवं वलयाकार (Circular) होता है। इन्हें निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है

“प्लाज्मिड गुणसूत्ररहित (Chromosome less), बाह्य नाभिकीय (Extranuclear), स्वतः द्विगुणित होने वाले (Self replicating), सहसंयोजी रूप से बन्द (Covalently closed) वलयाकार (Circular), द्विसूत्री DNA अणु हैं, जो कि प्रायः सभी जीवाणु कोशिकाओं में पाये जाते हैं।" इन्हें आनुवंशिक कारक (Genetic factor) भी कहा जाता है।

प्लाज्मिड्स में कोशिका के गुणसूत्रीय DNA से जीनों को लेकर उसे अन्य कोशिका में स्थानान्तरित करने की क्षमता पायी जाती है। अत: इनका उपयोग आनुवंशिक अभियांत्रिकी में जीन वेक्टर (Gene Vector) के रूप में किया जाता है।

सामान्यतः एक जीवाणु कोशिका में प्लाज्मिड्स की संख्या 1 से लेकर 1000 या इससे अधिक हो सकती है। एक प्लाज्मिड में 5 से 100 जीन पाये जाते हैं, जो कि बहुत से जैविक कार्यों का निर्धारण करते हैं। यद्यपि कुछ प्लाज्मिड जीवाणु कोशिका को जीवित रखने में सहायक होते हैं, फिर भी प्राय: यह देखा गया है कि प्लाज्मिड के बिना भी जीवाणु कोशिका जीवित रहने में सक्षम होती हैं।

प्लाज्मिड की संरचना (Structure of Plasmid )

प्लाज्मिड वलयाकार (Circular) DNA अणु होते हैं, परन्तु विश्रामावस्था में इसकी कुण्डली (Helix) त्येक 400 से 600 क्षारक युग्मों, पश्चात् दाहिनी ओर मुड़कर सुपर कुण्डली (Super coils) बना लेते हैं। इस •NA के दोनों सूत्र सहसंयोजी रूप से बन्द (Covalently closed) होते हैं। इस प्रकार के व्यावर्तित संरूपण Twisted configuration) से निर्मित DNA को सहसंयोजकीय बन्द वृत्ताकार DNA (Covalently closed fircular DNA = CCC DNA) कहते हैं। उलझाव (Twisting) के समाप्त होने पर यह वृत्ताकार द्विसूत्री DNA पणु के रूप में दिखाई देता है।

प्लामिड्स की विशेषताएँ (Characteristics of Plasmid)

1. ब्राडबरी एवं सहयोगियों (Bradburry etal, 1981) के अनुसार, प्लाज्मिड दो स्ट्रैण्ड वाले अतिरिक्त गुणसूत्रीय DNA (Double stranded extrachromosomal DNA) हैं, जिनका आकार गुणसूत्रीय DNA की अपेक्षा छोटा होता है।

2. इनमें स्वयं द्विगुणन (Self replication) को क्षमता पायी जाती है और ये स्वतंत्र (Free) एवं संयुक्त (Integrated) दोनों ही अवस्थाओं में पाये जाते हैं। जब ये किन्हीं परिस्थितियों में गुणसूत्रीय DNA से संयुग्मित हो जाते हैं, तब इन्हें एपिसोम्स (Episomes) कहते हैं।

3. प्रत्येक प्लाज्मिड में अन्य DNA के साथ जुड़ने (Integration) की क्षमता पायी जाती है।

4. जीवाणुविक संयुग्मन (Bacterial conjugation) के समय ये एक कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित हो जाते हैं, परन्तु यह स्थानान्तरण हमेशा एकदिशिक (Unidirectional) होता है।

5. प्लाज्मिड DNA, जीवाणुविक DNA से छोटे, स्वतंत्र तथा गुणसूत्र से पृथक् अवयव के रूप में उपस्थित होते हैं।

6. कोशिका के बाहर प्लाज्मिड का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

7. प्लामिड कोशिकाओं के लक्षण प्रारूप (Phenotype) को प्रभावित करते हैं।

8. कुछ प्लाज्मिड, जीवाणुओं में भी संयुग्मन (Conjugation) की प्रक्रिया पर भी नियंत्रण रखते हैं।

प्लाजिमडों के प्रकार (Types of Plasmid)

(1) F-प्लाज्मिड या लिंग कारक (F-plasmid or sex fector) - लेडरबर्ग एवं टाटम (Lederburg and Tatum) के अनुसार, जीवाणुओं में संयुग्मन (Conjugation) क्रिया के समय जब दो विभिन्न विभेद (Strains) के जीवाणु आपस में संयुग्मन करते हैं, तब इस क्रिया के दौरान दाता कोशिका (Donar cell) से ग्राह्य

कोशिका (Recipient cell) की ओर एक DNA या कारक (Factor) का स्थानान्तरण होता है, इसे ही F कारक या लिंग कारक (Sex factor) कहते हैं। F कारक का यह स्थानान्तरण (Transfer) हमेशा एकदिशीय (Unidi rectional) होता है। जिन जीवाणुओं में यह कारक उपस्थित अथवा अनुपस्थित होते हैं, उन्हें क्रमश: F" तथा F विभेद (Strain) कहते हैं। लिंग कारक दो स्ट्रैण्ड वाले DNA का बना होता है तथा इसकी लम्बाई सम्पूर्ण जीनोम की लम्बाई की लगभग 2% होती है। यह उर्वरता कारक (Fertility factor) F स्वतंत्र रूप में कोशिकाद्रव्यों में संचरण करता है और इसे प्लाज्मिड के रूप में माना गया है।

कभी-कभी F कारक जीवाण्विक गुणसूत्र के किसी भाग से जुड़कर एक HFR (High frequency recombinant) का निर्माण करता है। इस बनी हुई, सम्पूर्ण संरचना को एपिसोम (Episome) कहते हैं। इसमें जीवाणुविक DNA एवं प्लाज्मिड DNA दोनों पाये जाते हैं।

(2) R-प्लामिड या औषधि प्रतिरोधक फैक्टर (R-plasmid or Drug Resistance Factor) - इस फैक्टर का पता जापान में, जीवाणु शिगैला डिसेन्टेरी (Shigella dysenteriae) के माध्यम से लगा। यह जीवाणु मनुष्य में पेचिश (Dysentry) रोग का कारक होता है। इस जीवाणु पर अनेक औषधियों के सन्दर्भ में प्रयोग किये गये और यह देखा गया कि ये जीवाणु चार एण्टिबॉयोटिक्स के प्रति एक साथ या पृथक् रूप से प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। इस प्रभावकारी औषधि प्रतिरोध का कारण उन जीन्स में निहित पाया गया जो जीवाणु में विद्यमान प्लाज्मिड्स या R-फैक्टर पर पाये जाते हैं। अलग-अलग प्रकार के R-प्लाज्मिों में विभिन्न प्रकार के प्रतिरोधी जीन पाये जाते हैं।

R- फैक्टर प्लामिड जब जीवाणु में होता है, तो वह जीवाणु ऐण्टिबॉयोटिक्स जैसे- स्ट्रेप्टोमाइसिन (Streptomycin), टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline), क्लोरेम्फेनिकोल (Chloremphenicol) तथा सल्फोनामाइड (Sulphonamide) आदि के प्रति प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। प्रयोगों से यह भी स्पष्ट हुआ कि एक जीवाणु के प्रभेद (Strain) से प्रतिरोधकता दूसरे जीवाणु में स्थानान्तरित हो जाती है। इस क्रिया में केवल प्रतिरोधकता ही नहीं उत्पन्न होती है, बल्कि जीवाणुओं में संयुग्मन द्वारा स्थानान्तरित होने के कारण इनको RTF (Resistance transfer factor) भी कहते हैं।

(3) कोल-प्लाजिमड या कारक (Col-plasmid or Factors) - कुछ जीवाणु जैसे- ईश्चीरिचिया शिरौला, साल्मोनेला विषैले प्रोटीन निर्माण करता है, जो कोलोसिन कहलाते हैं। यह अन्य जीवाणुओं को मार देता है। यह कोलीसीन कारकों पर निर्भर करता है इसे Col-plasmid कहते हैं। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि कोलीसीन का उत्पादन, जीवाणु क्रोमोसोम पर उपस्थित जीन द्वारा नहीं होता है। Col-Factor का स्थानांतरण F Factor की उपस्थिति पर निर्भर नहीं करता है। अत: Col- कारक का स्थानांतरण दो F. strain के मध्य भी हो सकता है।

(4) Ti-प्लाज्मिड या क्राउन गाल प्लाजिमड (Ti-plasmid or Crown gall plasmid) - Tr-plas mids (I] = Tumour inducing plasmids) Higher plants में Gene transfer में उपयोग किया जाने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्लामिड होता है, जिसका उपयोग वेक्टर (Vector) के रूप में किया जाता है। II - प्लाज्मिड मृदा (Soil) में पाये जाने वाला जीवाणु (Bacteria) ऐग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफैसियेन्स (Agrobacterium Tummifaciens) में पाया जाता है। इस जीवाणु के संक्रमण से पौधों में क्राउन गाल रोग (Crown gall disease) उत्पन्न होता है।

Ti-प्लाज्मिड संरचना (Structure of Ti-plasmid ) -

Ti-प्लाज्मिड ऐग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफैसियेन्स (Agrobacterium tumifactens) नामक जीवाणु में पाया जाने वाला वृहद् प्लाज्मिड (Large plasmid) है, जिसका आकार 180 से 250kb के मध्य होता है। यूंजर एवं सहयोगियों (Unger et al. 1985) ने लिप्पिया (Lippia) नामक पौधे के ट्यूमर से 500 kb लम्बाई वाला Ti- प्लाज्मिड पृथक् किया था।

(i) T- क्षेत्र या T-DNA - यह क्षेत्र (Region) 23 से 25 kb खण्ड (Segment) होता है, जो कि Plant or plant genome में Agrobacterium के संक्रमण (Infection) के दौरान स्थानांतरित होता है। T-DNA में Tumor निर्माण (Formation) से संबंधित जीन पाया जाता है। यह क्राउन गाल (Crown gall) का निर्माण होता है -

T- DNA निम्न क्षेत्रों से मिलकर बना होता है -

(a) one-क्षेत्र (onc-tegion)-इस क्षेत्र में तीन प्रकार के जीन (gene) पाये जाते हैं। शूटी लोकस (Shooty locus) के लिये ms-1एवं tms-2 जोन तथा रूटी लोकस (Rooty locus) के लिये mr-जीन (mr-gene)। उपर्युक्त तीनों जीन दो प्रकार के हॉर्मोन (पादप हॉर्मोन) इण्डोल ऐसीटिक अम्ल (IAA) एव आइसोपेन्टिल ऐडीनोसीन 5 मोनोफॉस्फेट (IPA-5mp) के उत्पादन के लिए उत्तरदायी होते हैं। IAA-Auxin and IPAS-mp सायटोकाइनिन होता है। यह पादप हॉमोन के निर्माण करने वाले एन्जाइम की कोडिंग (Coding) करता है।

(b) os-क्षेत्र (os-region)- यह क्षेत्र असामान्य अमीनो अम्ल अथवा शर्करा के व्युत्पाद (Sugar de rivative) के व्युत्पादन के लिये उत्तरदायी होता है। अमीनो अम्लों एवं शर्करा के व्युत्पाद को सम्मिलित रूप से ओपीन्स (Opins) कहते हैं। ओपीन्स का निर्माण आर्जिनीन एवं पायरुबेट से होता है, जो कि पादप कोशिका में पाये जाते हैं। ये ओपीन्स दो प्रकार के होते हैं-(1) ऑक्टोपोन (Octopine) (2) नोपेलीन (Nopaline) | इस क्षेत्र में ओपीन्स निर्माण संबंधी एन्जाइम पाया जाता है।

(ii) vir-क्षेत्र (vir-region)- यह Virulence अथवा Crowngall या रोमिल मूल रोग (Hairy roo (disease) के उत्पादन के लिए आवश्यक होता है। इसे Virulence or Vir क्षेत्र कहते हैं। यह 35 kbp लम्बा होता है। यह 8 ओपेरॉन्स (8operons)-(vir-A.vir-B,vir-Cvir D vir-Evir-Fvir-G. and vir-H) से मिलका बना होता है। इन आठ ओपेरॉन्स में से चार ओपेरॉन्स vir-Avir B.vir D.vir-G वाइलेन्सी (Virulence) अर्थात् रोग उत्पादन के लिये उत्तरदायी होते हैं, जबकि शेष चार ओपेरॉन्स (Operons) vir-C, vir-E. VIP. और viH ट्यूमर निर्माण में भाग लेते हैं। vir-gene में उपस्थित जीन्स स्वयं स्थानांतरित नहीं होते हैं, बल्कि T-DINA स्थानांतरण प्रक्रिया को प्रेरित करते हैं।

(iii) संयुग्मन क्षेत्र - यह क्षेत्र संयुग्मन ट्रांसफर के लिये उत्तरदायी होता है। (Gv) द्विगुणन क्षेत्र–प्लान्पिड का द्विगुणन प्रारंभ होता है। इसे ओरिजिन ऑफ रेप्लिकेशन क्षेत्र (O Origin of replication region) भी कहते हैं। TI-plasmid के प्रकार (Types of Tiplasmid)

Ti-plaxmids को उनके जोनों के द्वारा उत्पादित ओपोन्स के प्रकारों के आधार पर चार समूहों वर्गीकृत किया गया है -

(i) ऑक्टोपीन Ti-plasmids ये प्लामिड ऑक्टोपीन के चयापचय (Catabolism) से सम्बन्धित होते हैं तथा इन्हें OCC से व्यक्त किया जाता है। उदाहरण- pTiBg pTi Achs. pTi B653 pTi Ag1ax ph As आदि।

(ii) नोपेलीन Ti-plasmids Nopaline चयापचय से सम्बन्धित होते हैं। उदाहरण- pTyTy.pTiness, PTc223 आदि ।

(iii) ल्यूसीनोपीन Ti-plasmids – ये ल्यूसीनोपीन चयापचय (Catabolism) से सम्बन्धित होते हैं। (iv) सक्सिनेमोपीन Ti-plasmids-Succinamopine Ti-plasmid के चयापचय से सम्बन्धित होते हैं।

(5) Ri-प्लाज्मिड (Root inducing Plasmid ) — Ri-प्लाज्मिड ऐग्रोबैक्टीरियम राइजोजेन्स (Agrobac terium rhizogenes) नामक जीवाणु में पाया जाने वाला दीर्घ प्लाज्मिड है, जिसकी लम्बाई 190 से 240kb होता है। इसकी उपस्थिति के कारण पौधों में अपस्थानिक जड़ों का निर्माण होता है। Ri-Plasmid में भी T-DNA पाये जाते हैं, जो कि Hairy roots के विकास के लिये उत्तरदायी होते हैं। यह निम्नांकित प्रकार के होते हैं

(i) मैनोपीन Ri-Plasmids. उदाहरण-pRi 8196, pRiTR-7

(ii) ऐग्रोपीन Ri - Plasmids. उदाहरण-pRiA 4, pRi 1855

(iii) कुकुमोपीन Ri-Plasmids उदाहरण-pRi 2659, आदि।

Ri-प्लामिड का महत्व (Advantages of Ri-Plasmids )

(1) ये जड़ें पौधों को अच्छी तरह स्थिर रखती हैं।

(ii) जड़ों की सघनता में वृद्धि होने से पौधे की शुष्कता प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि होती है।

(iii) मृदाजनित कवकमूल कवकों के साथ अन्तर्क्रिया की संभावनाओं में वृद्धि हो जाती है।

प्लाज्मिड के उपयोग (Uses of Plasmid)

(1) इनमें स्वद्विगुणन की क्षमता होती है।

(2) इनमें अन्य प्रकार के DNA से जुड़ने की क्षमता होती है।

(3) ये पोषक कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुँचाये उनके अन्दर आसानी से पहुँच जाते हैं। यहाँ पर भी इनमें द्विगुणन की क्षमता होती है।

(4) इसमें एक कोशिका के DNA को दूसरी कोशिका तक पहुँचाने की क्षमता होती है।


Structure of plasmid in hindi
Plasmid in hindi