पैलीमॉन


पैलीमॉन एक जलीय प्राणी है। इसमें श्वसन तंत्र सुविकसित होता है। इसके श्वसनांग निम्नलिखित हैं -

1. एक जोड़ी ब्रैंकियोस्टेगाइट
2. तीन जोड़ी एपिपोडाइट
3. आठ जोड़ी क्लोम।


समस्त श्वसन अंग एक जोड़ी क्लोम कक्षों (Gill chambers) में बंद रहते हैं। क्लोम कक्ष वृक्ष के दोनों ओर एक-एक करके स्थित होते हैं तथा बाहर से क्लोम छद (Gill cover) या बैंकियोस्टेगाइट (Branchi (ostegite) द्वारा ढँके रहते हैं।

1. ब्रैंकियोस्टेगाइट (Branchiostegite)

क्लोम छद या बँकियोस्टेगाइट पतली झिल्ली के समान तथा अति संवहनीय स्तर द्वारा आस्तरित रहते हैं। ये स्तर क्लोम-गुहा में आने वाली जल की धारा के सीधे सम्पर्क में रहते हैं। अत: जल में घुली O, इनके भीतर प्रसारित हो जाती है तथा CO, विसरण द्वारा बाहर आ जाती है।

2. एपिपोडाइट (Epipodites)

ये सरल, पत्ती के समान रचनाएँ हैं, जो मैक्सिलीपीड के कोक्सा नामक खण्डों की बाहरी सतह से त्वचा के उभारों के रूप में लगे रहते हैं। क्लोम-कक्ष के अगले भाग में तीन एपिपोडाइट पाये जाते हैं। ये अत्यन्त संवहनीय होते हैं और श्वसन में सहायता करते हैं।

3. क्लोम (Gills)

प्रत्येक क्लोम-कक्ष में आठ क्लोम पाये जाते हैं, परन्तु क्लोम-छद हटाने पर केवल सात क्लोम ही दृष्टिगत होते हैं, क्योंकि तीसरा क्लोम दूसरे क्लोम के नीचे स्थित होता है। अपनी स्थिति के अनुरूप क्लोम तीन प्रकार के होते हैं

(i) पाद क्लोम (Podobranch)

पाद क्लोम केवल एक होता है, जो द्वितीय मैक्सिलीपीड के कोक्सा के बाहरी सतह पर लगा रहता है।

(ii) सन्धि क्लोम (Arthrobranch)

प्रत्येक क्लोम कक्ष में दो सन्धि क्लोम पाये जाते हैं, जो तीसरे मैक्सिलीपीड तथा शरीर के बीच के स्थान पर पायी जाने वाली आर्थोडियल झिल्ली (Arthrodial membrane) पर एक दूसरे के ऊपर स्थित होते हैं।

(iii) पार्श्व क्लोम (Pleurobranch)

पार्व क्लोम वक्ष के खण्डों की दीवारों पर लगे रहते हैं। पैलीमॉन में पाँच पार्श्व-क्लोम होते हैं, जो उन पाँच वक्ष खण्डों में पाये जाते हैं जिन पर टाँगें होती हैं।

क्लोम की संरचना (Structure of Gill)

पैलीमॉन में पाये जाने वाले क्लोम लगभग अर्द्ध-चन्द्राकार (Crescentic or semilunar) होते हैं। इनका आकार आगे से पीछे की ओर बढ़ता जाता है। प्रत्येक क्लोम के मध्य में क्लोम मूल (Gill-root) होता है, जिसके द्वारा क्लोम वक्ष से जुड़ा रहता है। क्लोम तन्त्रिका (Branchial nerve) तथा क्लोम वाहिनी (Branchial chan nel) क्लोम मूल में से गुजरती है। पैलीमॉन के E क्लोम फाइलोबैंक (Phyllobranch) कहलाते हैं। इसमें एक लम्बा क्लोम-अक्ष (Gill axis) होता है, जिसके दोनों किनारों पर क्लोम पट्टिकाओं (Gill plates) की एक-एक पंक्ति होती है। क्लोम पट्टिकाएँ चौकोर (Rhomboidal) व चपटी पत्ती के समान रचनाएँ हैं, जो एक-दूसरे के समान्तर स्थित होती हैं। क्लोम पट्टिकाओं की दोनों पंक्तियाँ एक-दूसरे से मध्य-लम्बवत् खाई (Median longi tudinal groove) द्वारा अलग रहती हैं। मध्य-लम्बवत् खाई क्लोम अक्ष में पूरी लम्बाई में पायी जाती है। क्लोम के मध्य में पायी जाने वाली क्लोम पट्टिकाएँ बड़ी होती हैं तथा दोनों सिरों की ओर धीरे-धीरे छोटी होती जाती हैं।

अनुप्रस्थ काट में क्लोम

आधार (Gill-base) तिकोना दिखाई देता है। यह ढीले संयोजी ऊतक का बना होता है, जो एपिडर्मिस तथा क्यूटिकल के द्वारा बँधा रहता है। प्रत्येक क्लोम पट्टिका में एपिथोलियम कोशिकाओं की एक पंक्ति होती है, जिसके बाहर पतली क्यूटिकल की परत होती है। क्लोम पट्टिका की कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं। रंजक तथा पारदर्शी कोशिकाएँ एक के बाद एक स्थित होती हैं।

रुधिर वाहिनियाँ (Blood channels)

प्रत्येक क्लोम में तीन लम्बवत् रुधिर नालों (Blood channels) में से होकर रुधिर बहता है, जो क्लोम अक्ष में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली रहती हैं। दो पाश्र्व लम्बवत् रुधिर नालें (Lateral longi tudinal blood channels) क्लोम अक्ष के पार्श्व किनारों के साथ स्थित होती हैं तथा एक मध्य लम्बवत् रुधिर नाल (Median longitudinal channel) क्लोम अक्ष की मध्य खाई में से होकर जाती है। दोनों पार्श्व लम्बवत् नालें अनेक अनुप्रस्थ संयोजिकाओं (Transverse connectives) द्वारा जुड़ी रहती हैं, जिससे ये सीढ़ी के समान रचना बनाती हैं। पार्श्व लम्बवत् नाल के बाहर से एक | महीन मार्जिनल चैनल निकलकर प्रत्येक क्लोम पट्टिका के स्वतन्त्र किनारे के साथ-साथ चलती है और अन्त में मध्य लम्बवत् चैनल से जुड़ जाती है।

अभिवाही क्लोम वाहिनी (Afferent branchial channel) द्वारा रुधिर प्रत्येक क्लोम में पहुँचता है। यह क्लोम मूल के सामने स्थित अनुप्रस्थ संयोजिका में खुलती है। क्लोम में शुद्ध किया हुआ रुधिर मध्य लम्बवत् नाल में एकत्रित होता है और वहाँ से अपवाही क्लोम वाहिनी (Efferent branchial channel) द्वारा पेरिकार्डियल साइनस में पहुँचता है। मार्जिनल चैनल में से जाते समय अनॉक्सीकृत रुधिर ऑक्सीकृत हो जाता है।

श्वसन की क्रिया-विधि (Mechanism of Respiration)

जल में घुली ऑक्सीजन श्वसन के उपयोग में आती है। मैक्सिला के स्केफोग्नेथाइट की क्रमिक गति क्लोम कक्ष में स्वच्छ जल की धारा उत्पन्न करती है। स्केफोग्नेथाइट की गति से क्लोम कक्ष के अगले भाग से जल बाहर निकलता रहता है। अतः पिछले सिरे से क्लोम कक्ष में जल आता रहता है। जब जल की धारा क्लोम कक्ष के पिछले सिरे से अगले सिरे की ओर बढ़ती है, तो मार्ग में आने वाले समस्त श्वसन अंगों को भिगोती जाती है। एपिपोडाइट तथा क्लोम इस समय विसरण द्वारा O2 ग्रहण कर लेते हैं और CO, बाहर की ओर विसरित हो जाती है।