केंचुए में कोकून निर्मा


नाइट्रोजीनस उत्सर्जन (Nitrogenous-excretion) के लिये केंचुए में अनेक सूक्ष्म कुण्डलित नलिकाओं के रूप में उत्सर्जी इकाइयाँ या अंग (Excretory-units) होते हैं। जिसे नेफ्रिडिया (Nephridia) कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं -

1. सेप्टल नेफ्रिडिया (Septal nephridia)

2. फेरिंजियल नेफ्रिडिया (Pharyngeal-nephridia)

3. इन्टेग्यूमेन्ट्री नेफ्रिडिया (Integumentary-nephridia)

सेप्टल या पटीय नेफ्रिडिया (Septal Nephridia)


फेरीटिमा (Pheretima)
में ये सबसे कम होते हैं और 15वें सेगमेण्ट के पीछे प्रत्येक इण्टरसैगमेण्टल सेप्टम (Intersegmental septum) के दोनों सतहों (आगे एवं पीछे) पर चिपके रहते हैं। सेप्टा मे पाये जाने के कारण इसको सेप्टल नेफ्रिडिया कहते हैं।

(A) संरचना (Structure) - एक टिपिकल (Typical) सेप्टल नेफ्रिडियम तीन मुख्य भागों से मिलकर बना होता है- (i) नेफ्रोस्टोम, (ii) काय या बॉडी, और (iii) टर्मिनल डक्ट।

(i) नेफ्रोस्टोम (Nephrostome) - नेफ्रोस्टोम एक सीलिएटेड फनल या कीप (Ciliated funnel) के आकार की रचना होती है, जो सीलोम में खुलती है। इसमें एक अण्डे के आकार (Elliptical) का छिद्र होता है, जो ऊपरी तथा निचले होठों (Lips) से घिरा रहता है। ऊपरी होंठ बड़ा तथा घोड़े की नाल के आकार (Horse shoe shaped) का होता है। इसकी रचना आठ या नौ सीलिएटेड मार्जिनल कोशिकाओं (Ciliated marginal (cells) से होती है जो एक बड़ी सीलिएटेड केन्द्रक-कोशिका (Central cell) को घेरे हुए होते हैं। निचला होंठ चार या पाँच कॉम्पेक्ट कोशिकाओं (Compact cells) का बना होता है जो सभी सीलिएटेड (Ciliated) होते हैं।

(ii) नेफ्रिडियम की काय या बॉडी (Body of nephridium) -
नेफ्रोस्टीम या सीलिएटेड फनल एक छोटी सँकरी तथा सीलिएटेड नली के समान ग्रीवा (Neck) के द्वारा नेफ्रिडियम की मुख्य काय या बॉडी (Body) में खुलता है। नेफ्रिडियम की काय के दो भाग होते हैं -

(a) स्ट्रेट लोब (Straight lobe)
या सीधा पिण्ड, (b) ट्विस्टेड लोब (Twisted lobe) या ऐंठी पाली ।

स्ट्रेट लोब की लम्बाई ट्विस्टेड लोब की आधी होती है, अर्थात् स्ट्रेट लोब, ट्विस्टेंड लोब की अपेक्षा छोटा होता है। ट्विस्टेड लोब (Twisted lobe) में प्रॉक्सीमल (Proximal) तथा डिस्टल (Distal) दो लम्बी भुजाएँ होती हैं, जो एक-दूसरे के साथ रस्सी की तरह बटी या ऐंठी रहती हैं। सेप्टल नेफ्रिडियम की ट्विस्टेड लोब में ऐंठनों की संख्या 9 से 13 तक हो सकती है। नेफ्रिडियम की प्रॉक्सीमल भुजा ग्रीवा (Neck) से जुड़ी रहती है।

(iii) टर्मिनल डक्ट (Terminal duct) -
नेफ्रिडियम के ट्विस्टेड लोब की डिस्टल भुजा (Distal limb) एक छोटी और संकरी नली में समाप्त होती है, जिसे टर्मिनल डक्ट कहते हैं। सीलिएटेड ट्रैक्ट (Ciliated Tracts) सेप्टल नेफ्रिडियम का जब हम माइक्रोस्कोप (Microscope) में ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि, यह एक ऐसा ग्लैण्डुलर मास या पुंज (Glandular mass) होता है, जिसके अन्दर एक जटिल कुण्डलित नलिका (Coiled tubule) या नेफ्रिडियल नलिका (Nephridial tubule) होती है, जो नेफ्रिडियम में भीतर कई लूप (Loops) बनाती है। स्टेट लोब में यह नलिका चार बार Twisted-lobe में तीन बार तथा एपिकल (Apical) भाग में केवल दो बार फैली रहती है तथा ग्रीवा एवं टर्मिनल डक्ट में एक होती है। ये Ciliated-cells से आस्तरित रहती है। 15वें खण्ड के पीछे प्रत्येक सेग्मेण्ट में 80 से 100 सेप्टल नेफ्रिडिया सेप्टम से जुड़े हुये सौलोम में स्वतंत्रतापूर्वक लटके रहते हैं। प्रत्येक सेग्मेण्ट में Septal-excretory canal होती है जिसमें Terminal duct आकर खुलती है। आँत की पृष्ठ सतह पर दो समानान्तर सुप्रा इन्टेस्टाइनल उत्सर्जन नलिकाएँ (Supra intestinal excretory-ducts) फैली रहती है, इसमें अपनी ओर के Septal-excretory ducts में खुलती है। दोनों Supra-intestinal-excretory duct सेप्टम के पीछे की ओर एक-दूसरे से मिलकर एक छोटी नलिका (Ductule) द्वारा आँत की गुहा में खुलती है। 15वें खण्ड के पीछे जितने सेगमेण्ट होते हैं की पृष्ठ दीवार में उतने ही उत्सर्जन छिद्र होते हैं, जो कि अवरोधनी (Sphincter) से घिरा रहता है।

सेप्टल नेफ्रिडिया के उत्सर्जी पदार्थ Septal-excretory - duct द्वारा Supra-intestinal duct में आते हैं. जहाँ से वे अंत की गुहा में आते हैं। इस प्रकार के नेफ्रिडिया जिसमें उत्सर्जी पदार्थ आँत में डाल दिया जाता है. उसे ऐण्टरों नेफ्रिक नेफ्रिडिया (Antero-nephric-nephridia) कहलाते हैं जो कि Septal nephridia में होता है।

केंचुए में कोकून का निर्माण - केंचुए कोकून का उत्पादन करते हैं ताकी उनमें केचुए के भ्रूण और उससे और केंचुए तैयार हो सके। यह नम जमीन पर मिलने वाले प्राणी है जो बिल बनाकर रहता है। इसका मल किसानों के लिए एक प्राकृतिक खाद के रूप में कार्य करता है इसलिये इसे किसानों का मित्र भी कहा जाता है। इसका शरीर लंबा व बेलनाकार होता है जिसमें प्रचलन के लिये धागेनुमा संरचना सिटी पायी जाती है। जब केचुए लैंगिक रूप से परिपक्व होते हैं इस दौरान इसके मुख से एक तिहाई भाग पीछे 14 वें से 16 वें खण्ड से मिलकर एक चिकनी व मांसल पेंडनुमा रचना पायी जाती है जिसे क्लाइटेलम कहते हैं जिससे म्यूकस के समान चिकना गाढ़ा द्रव स्रावित होता है।

केंचुआ एक उभयलिंगी प्राणी है इसके शरीर में नर व मादा दोनों जनन अंग एक ही प्राणी में पाये जाते हैं। मैटिंग के दौरान दो केंचुए एक-दूसरे से जुड़ते हैं और नर जनन छिद्र से शुक्राणु का आदान प्रदान करते हैं और ये शुक्राणु स्पर्मेथिका में सुरक्षित रहते हैं। मैटिंग के बाद दोनों केंचुए एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। क्लाइटेलम की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है इससे निकलने वाला म्यूकस क्लाइटेलम के चारों ओर एक थैलेनुमा रचना बनाता है जिससे मादा जनन छिद्र से अण्डाणु निकल कर सुरक्षित आ जाते हैं और यह थैलेनुमा रचना कोकून कहलाती है। जिसमें अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्व भरे हुये होते हैं। कोकून के पूर्णतः अण्डाणु से भरने के पश्चात् केंचुआ अपने शरीर को पीछे की ओर खींचता है जिससे कोकून इसके अग्र भाग की ओर बढ़ता चला जाता है और यह जैसे ही स्पर्मेथिका जिसमें दूसरे केंचुए के शुक्राणु भरे हुये होते हैं के ऊपर से गुजरता है सारे शुक्राणु कोकून के अन्दर स्थानांतरित कर दिये जाते हैं। और यह सरकता हुआ कोकून जैसे ही शरीर से अलग होते हैं। यह पूरी तरह से बंद हो जाता है। यही वास्तविक कोकून होता है। अण्डों एवं शुक्राणुओं से भरा कोकून नम जमीन के अंदर सुरक्षित कर दिया जाता है। कोकून का ऊपरी आवरण काफी मजबूत होता है जो अंदर विकसित होते भ्रूण की सुरक्षा करता है। इसके अंदर मिलने वाले पोषक तत्व वृद्धि करते हुए भ्रूण के विकास में सहायक होते हैं। एक केंचुआ प्रति वर्ष 4 से 70 कोकून तैयार करता है। प्रत्येक कोकून में 2 से 20 भ्रूण पाये जाते हैं। अनुकूल परिस्थिति में कोकून से छोटे केंचुए निकलते हैं और वे 10 से 15 सप्ताह के अंदर कोकून बनाने का कार्य प्रारंभ कर देते हैं।