केंचुए का पाचन तंत्र


1. आहारनाल (Alimentary canal) - केंचुए का आहार नाल पूर्ण व सीधी होती है जो अग्र भाग से पश्च भाग तक फैली रहती है। यह प्रथम खण्ड के मुख से प्रारंभ होकर अंतिम खण्ड के गुदा द्वारा बाहर खुलती है। इसमें निम्न भाग पाये जाते हैं -

(i) मुखगुहा (Buccl cavity) -
प्रोस्टोमियम के नीचे केंचुए का मुख होता है, जो मुखगुहा में खुलता है। यह एक छोटी नलिका होती है जो तीसरे खण्ड तक फैली रहती है।

(ii) ग्रसनी (Pharynx) - यह आहार नाल का छोटा भाग है जो पाँचवें खण्ड तक फैला रहता है। यह नाशपाती के आकार की एवं दोनों पावों की और चौड़ी रहती है।

(iii) इसोफेगस (Oesophagous) – यह एक पतली नलिकानुमा रचना है। यह 5 वें खण्ड से 7वें खण्ड तक फैली रहती है इसकी दीवारें पतली होती हैं।

(iv) गिजार्ड (Gizzard) – यह 8वें खण्ड में पाया जाता है। यह मजबूत पेशीयुक्त मांसल पिण्ड होता है। इसका आकार अण्डाकार होता है। इसमें भोजन को पिसने का कार्य किया जाता है।

(v) आमाशय (Stomach) – यह गिजार्ड के पीछे 9 वें खण्ड से 14 वें खण्ड तक होता है। यह पतली नलिका रूपी होता है। यह भाग बहुत ही ग्रन्थिल व रक्त वाहिनियों से युक्त होता है। इसमें एन्जाइम का स्त्रावण होता है।

(vi) आंत्र (Intestine) – 14वें खण्ड के पीछे आमाशय एक चौड़ी नलिका में खुलता है जिसे आंत्र कहते हैं। यह मलाशय तक जाती है इसमें टिफ्लोसोल पाया जाता है जिसके कारण आंत्र तीन भागों में बँट जाती है - 15वें खण्ड से 26वें खण्ड तक 1. प्री टीफ्लोसोलर भाग 2. टिफ्लोसोलर भाग जिसमें आंत्र को ज्यादा जगह प्राप्त होती है भोजन का अवशोषण करने के लिए 3. 26वें खण्ड से अन्त तक पोस्ट टिफ्लोसोलर भाग कहलाता है।

केंचुआ सर्वाहारी प्राणी है। ज्यादातर इसका भोजन सड़ी-गली पत्तियाँ, घास-फँस, कीड़े-मकोड़े आदि होते हैं। इसके भोजन का अन्तर्ग्रहण मुख द्वारा होता है। पूरे आहारनाल में भोजन को एन्जाइम्स के द्वारा पचाया जाता है। गिर्जाड में भोजन को पीसा जाता है। पीसा भोजन आमाशय में आता है। यहाँ पाचक रस द्वारा भोजन की पाचन क्रिया प्रारंभ होती है और आंत्र में पचा भोजन अवशोषित किया जाता है। भोजन का अवशेष मलाशय द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

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