केंसर (Cancer

सामान्य अवस्था में जब शरीर के किसी भाग पर चोट लग जाती है, तब कोशिकाओं के सूत्री विभाजन के फलस्वरूप चोट लगे हुए भाग का पुनः निर्माण होता है, परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों या रोग जनित अवस्था में इन कोशिकाओं का विभाजन अनियन्त्रित हो जाता है। कोशिकाओं के निरंतर विभाजन और अनिश्चित वृद्धि के फलस्वरूप ट्यूमर बन जाता है या कैंसर की वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। कैंसर मानव एवं अन्य उच्चवर्गीय प्राणियों में होने वाला एक असाध्य रोग है। यह रोग किसी भी अंग में तथा किसी भी उम्र में हो जाता में है। मानव जाति के लिए कैंसर अभिशाप है, क्योंकि इससे विश्व में लगभग 45% मौतें होती हैं। इस रोग के उपचार के लिए विश्व के अनेक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं और प्रारम्भिक अवस्था में ही इस रोग को पहचानने एवं नियंत्रित करने में काफी सफलता मिली है।

कोशिकाओं का अनियमित विभाजन और असाधारण प्रकृति के कारण ये कोशिकाएँ सामान्य सोमैटिक कोशिकाओं से व्यवहार तथा कार्य में भिन्न होती हैं। ये भेदन करके या म्यूटेशन क्रिया द्वारा शरीर के अन्य भागों में जा सकती हैं, जहाँ यह द्वितीय कैंसर वृद्धि प्रारम्भ कर देती है, जिसकी परिणति मृत्यु से होती है। आजकल कोशिका विज्ञान तथा मॉलिक्युलर बॉयोलाजी के क्षेत्र में कैंसर कोशिकाओं का अध्ययन बायोमेडिकल (Bio medical) की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा संवेदनशील हैं। कैंसर क्या है ? इसको वैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार से परिभाषित किया है। सामान्य शब्दों में इसे निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-"कैंसर या मैलिग्नेन्सी, कोशिकाओं की वह असाधारण (Abnormal) वृद्धि है, जिसके कारण प्रायः सभी कोशिका नियमन तथा नियंत्रण संबंधी क्रियाएँ अप्रभावी या समाप्त हो जाती है" इस असाधारण वृद्धि से बनी हुई नयी कोशिकाएँ मातृ कोशिकाओं पर भोजन तथा ऊर्जा के लिए पराश्रयी होती हैं, जिससे मातृ कोशिकाएँ कमजोर पड़ जाती हैं तथा उनमें होने वाली उपापचयी क्रियाएँ अनियमित हो जाती हैं। कैंसर की आधुनिक परिभाषा वाटसन एवं हॉपकिन्स (J.D. Watson and N.H. hopkins) द्वारा सन् 1988 में दी गई, जो कि जेनेटिक बेस (genetic base) पर आधारित है, जिसके अनुसार “Cancer is a disease of malfunctioning of cellular genes or unwanted viral gene expression."

कभी-कभी किसी ऊतक विशेष को कोशिकाओं में वृद्धि एवं गुणन अनियमित एवं उद्देश्यहीन हो जाने के कारण एक कोशिका समूह या ट्यूमर (Tumour) बन जाती है। यह ट्यूमर ही कैंसर का कारण हो सकता है, परन्तु सभी प्रकार के ट्यूमर कैंसर नहीं होते हैं।

ट्यूमर को उनके स्वभाव तथा बायोमेडिकल के आधार पर दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं -

(i) बिनायन ट्यूमर या नॉन-मैलिग्नेन्ट (Benign tumour or Non-malignant) - इस प्रकार के ट्यूमर से कैंसर उत्पन्न नहीं होता है। ये हमेशा अपने उद्भव स्थान तक ही सीमित होते हैं और अन्य भागों में नहीं फैलते। प्रारम्भ में ये छोटे होते हैं, किन्तु बाद में धीरे-धीरे वृद्धि करके काफी बड़े हो जाते हैं। शरीर में बनने वाले अधिकांश ट्यूमर इसी प्रकार के होते हैं।

(ii) मैलिग्नैन्ट ट्यूमर (Malignant Tumours) - ये कैंसर प्रकृति के होते हैं। ये प्रारम्भ में बहुत छोटे होते हैं तथा इनमें वृद्धि भी बहुत धीमी होती है, किन्तु बाद में ये अति तीव्रता से वृद्धि करके शरीर के अन्य अंगों के ऊतकों में फैलने लगते हैं। अन्त में यह ट्यूमर अपने उद्गम स्थान से अलग होती जाती है और रक्त परिवहन के द्वारा शरीर के अन्य अंगों में पहुँचकर सेकण्डरी ट्यूमर (Secondary Tumours) उत्पन्न करती हैं। कैंसर की यह बहुत ही घातक अवस्था है और इसे मेटास्टेशिया (Metastacia) कहते हैं।

कैंसर कोशिकाओं की विशेषताएँ (Characteristics of Cancer Cells)

ऊतक संवर्धन के विभिन्न प्रयोगों के द्वारा कैंसर कोशिकाओं की विशेषताओं के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई है, जो कि अग्रलिखित हैं -

(1) ये कोशिकाएँ अनियमित प्रकार से बहुत तीव्रता से बढ़ती हैं, जिससे इनमें कार्बोहाइड्रेट की खपत अधिक बढ़ जाती है।

(2) ये कोशिकाएँ अनॉक्सी- श्वसन से ऊर्जा प्राप्त करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप लैक्टिक अम्ल की मात्रा अधिक हो जाती है।

(3) ये कोशिकाएँ शरीर के उद्गम स्थान से अलग होकर शरीर के अन्य भागों में पहुँचती हैं और पुनः असामान्य रूप से विभाजित हो-होकर बढ़ती हैं तथा सेकण्डरी कैंसर ट्यूमर उत्पन्न करती हैं।

(4) कैंसर कोशिकाओं में सामान्य कोशिकाओं की तुलना में अधिक गुणन की क्षमता होती है, अतः इनका जीवनकाल सामान्य कोशिकाओं से अधिक होता है और ये अविनाशी (Immortal) स्वभाव की होती हैं।

(5) कोशिका संवर्धन में ये कोशिकाएँ एक जगह एकत्रित होकर गिल्टी या गाँठ बना लेती हैं। इनमें कोशिकीय विभेदन का अभाव होता है।


(6) कैंसर कोशिकाओं में स्पर्श अवरोध गुण (Contact inhibition) नहीं पाया जाता है।

(7) कैंसर कोशिका के केन्द्रक का आकार बढ़ जाता है तथा क्रोमैटिन धागे संघनित हो जाते हैं।

(8) कैंसर कोशिकाओं के विकास के लिए अधिक सीरम की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

(9) कैंसर कोशिकाओं का कैरियोटाइप असामान्य होता है तथा क्रोमोसोम की संख्या तथा संरचना में अनेक परिवर्तन हो जाते हैं।

कैंसर उत्पन्न करने वाले कारक (Cancer Causing Agents)

कैंसर के उत्पत्ति के कारणों पर बहुत सारे शोध कार्य किये जा रहे हैं, लेकिन यह ज्ञान नहीं हो पाया है कि कैंसर किन कारणों से होता है। किन्तु सामान्य सम्बन्धित कोशिकाएं अनेक भौतिक (Physical), रासायनिक, (Chemical) तथा जैविक (Biological) उत्प्रेरकों या कारकों द्वारा कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। इन कारकों को सामूहिक रूप से कार्सीनोजेनिक कारक या ऑन्कोजेनिक कारक (Carcinogenic agents For Oncogenic agents) कहते हैं। ये सभी कारक न्यूक्लिओटाइड के क्रम में परिवर्तन या म्यूटेशन द्वारा सामान्य कोशिकाओं के DNA को प्रभावित करते हैं।

कैंसर उत्पन्न करने वाले इन कारकों को उनके स्वभाव के अनुसार, निम्नलिखित तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है -

(1) भौतिक कारक (Physical Agents) - इसमें ताप, दाब एवं विकिरण जैसे भौतिक कारक सम्मिलित हैं। तापक्रम एवं दाब में लगातार वृद्धि के कारण कोशिकाएँ उत्तेजित होकर कैंसर उत्पन्न कर सकती हैं। जैसे कश्मीर के लोग शीत ऋतु में जलते हुए कोयलों को कांगड़ी का उपयोग करते हैं, अतः इन लोगों में उदरीय त्वचा के कैंसर की अधिक घटनाओं के लिए यह एक कारण हो सकती है। इसी तरह अधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में फेफड़े का कैंसर अधिक पाया जाता है। पान एवं तम्बाकू के अधिक सेवन से मुखगुहा का कैंसर हो सकता है। विभिन्न प्रकार के विकिरण जैसे-X-किरणें, पराबैंगनी किरणें तथा अन्य कॉस्मिक किरणें जन्तु के कोशिकाओं में म्यूटेशन उत्पन्न करती हैं और ये किरणें कैंसर उत्पन्न करने में अत्यन्त प्रभावी मानी जाती हैं।


(2) रासायनिक कारक (Chemical Agents) - इनमें ऐसे रासायनिक पदार्थ आते हैं, जो कि कैंसर उत्पन्न करते हैं। इनमें कैफोन, निकोटिन, तेल तथा कोयले के जलन से उत्पन्न पदार्थ, ऐल्काइलेटिंग ड्रग्स तथा पॉलिसायक्लिक ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन आदि पदार्थ सम्मिलित हैं।

(3) जैविक कारक (Chemical Agents) - इस श्रेणी के अंतर्गत अनेक प्रकार के वाइरस तथा ऑन्कोजीन्स आते हैं -

(a) वाइरस (Viruses) - ऐसे वाइरस जो कि कैंसर उत्पन्न करते हैं, ऑन्कोजेनिक वाइरस (Onco genic virus) कहलाते हैं। ये वाइरस कोशिकाओं में प्रवेश करके उसे कैंसर कोशिका में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं। ये वाइरस DNA तथा RNA दोनों प्रकार के हो सकते हैं। पोषक कोशिका में प्रवेश करने के पश्चात् अपने जीनोम को पोषक कोशिका के जीनोम से एकबद्ध कर लेते हैं। RNA वाइरस जिन्हें रिट्रोवाइरस भी कहते हैं, जन्तुओं में कैंसर उत्पन्न करने वाले प्रमुख वाइरस हैं। ये वाइरस अण्डे को प्रभावित करने में सक्षम हैं तथा इस प्रकार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जा सकते हैं। इन वाइरस को मनुष्य में मुख्यतः स्तन कैंसर के लिए उत्तरदायी माना जाता है।

पॉलिओमा (Polyoma) तथा SV 40 प्रमुख DNA वाइरस हैं, जो कि जन्तुओं के नवजात शिशुओं में कैंसर ट्यूमर उत्पन्न करते हैं। इन वाइरस का उपयोग कोशिका संवर्धन द्वारा कैंसर कोशिकाओं के अध्ययन में किया जाता है।

(b) ऑन्कोजीन्स (Oncogenes) - ह्यूबनर तथा टोडेरो (Hubner and Todaro, 1968) ने बताया कि ऑन्कोजीन्स (Oncogenes) सामान्य कोशिकाओं के भीतर ही उनके शत्रु के रूप में उपस्थित होते हैं। ये ऑन्कोजीन्स वाइरसों के समान हैं तथा उत्तेजित होने पर कैंसर उत्पन्न करते हैं। मनुष्य में कैंसर उत्पन्न करने की क्षमता रखने वाले ऐसे लगभग 20 जीन्स की अब तक पहचान की जा चुकी है। ये जीन्स कोशिकाओं में सामान्य रूप (निष्क्रिय) से पाई जाती हैं, किन्तु क्रियाशील होने पर इनकी

अभिव्यक्ति बढ़ जाती है और ये कैंसर उत्पन्न करते हैं। ये जीन्स जीन म्यूटेशन, क्रोमोसोम स्थानान्तरण तथा DNA के परिवर्तन आदि के कारण ऑन्कोजीन्स की पुनरावृत्ति के द्वारा उत्तेजित होकर क्रियाशील हो जाते हैं।

उदाहरण - फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम (Philadelphia chromosome) था अफ्रीकी लोगों में पाया जाने वाला कैंसर बुकिट्स लिम्फोमा (Brukitt's lymphoma) क्रोमोसोम स्थानान्तरण द्वारा ऑन्कोजीन्स की क्रियाशीलता बढ़ने के उदाहरण हैं। बुकिट्स लिम्फोमा एक हपज वाइरस से संबंधित है। इसमें क्रोमोसोम 8 का एक भाग जिसमें ऑन्कोजीन C-mye स्थित होता है, क्रोमोसोम-14 पर स्थानान्तरित हो जाता है, जिसके कारण ऑन्कोजीन की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और मनुष्यों में यह कैंसर उत्पन्न करती है।

ऊतक के आधार पर कैंसर के प्रकार - ट्यूमर कोशिकाओं के आधार पर कैंसर दो प्रकार का होता हैं -

1. बिनायन (Benign) 2. मैलिग्नेंट (Malignant)

जबकि ऊतक के आधार पर कैंसर चार प्रकार का होता है -

1. कार्सीनोमाज (Carcinomas) - यह मुख्य रूप से एपीथिलियल कोशिका में पाए जाते हैं। उदाहरण - स्क्वामास (Squamous), कासनोमाज (Carcinomas)

2. सामाज (Sarcomas) - यह संयोजी ऊतक में पाया जाता है। उदाहरण - फाइब्रो सामाज (Fibro sarcomas)

3. लसिकानिहित (Lymphomas) - लिम्फोसाइट में Abnormal growth पाया जाता है। उदाहरण - लिम्फोसाकमा (Lympho-Sarcoma)

4. अति श्वेत कोशिका रक्तता (Leukemia) - इस प्रकार के कैंसर में ल्यूकोसाइट में Abnormal growth पाया जाता है।


इसी प्रकार Embryonic tissue, Nervous tissue एवं Vascular tissue में भी कई प्रकार के कैंसर (Cancer) पाये जाते हैं।

कैंसर प्रतिरक्षा - प्रतिरक्षा तंत्र एवं किसी भी बीमारी का आपस में काफी गहरा संबंध होता है इसके अंतर्गत विशेष रूप से यह देखना है कि कैंसर की बीमारी होने पर इसके प्रभाव और इसके उपचार में शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र की क्या भूमिका होती है और इस दौरान यदि हमारा प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाये तो इसे किस प्रकार से मजबूत किया जाये कि वह कैंसर के विरुद्ध लड़ सके और शरीर की रक्षा कर सके। इसको समझने के लिये निम्नलिखित बिन्दुओं से परिचित होना आवश्यक है -

1. प्रतिरक्षा तंत्र क्या करता है।

2. कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र के स्थिति में कैंसर और उसका उपचार किस प्रकार किया जाता है।

3. प्रतिरक्षा तंत्र कैंसर से हमारे शरीर की रक्षा किस प्रकार करता है।

4. शरीर के मूल प्रतिरक्षा (Innet immunity) तंत्र का रक्षात्मक कार्य।

5. न्यूट्रोफिल ।

6. प्रतिरक्षा जो हमें बाहर (Auired immunity) से प्राप्त होती है।

7. B कोशिका एवं T कोशिका।

8. प्रतिरक्षा तंत्र की सहायता से कैंसर का उपचार।

प्रतिरक्षा तंत्र - यह हमारे शरीर के विभिन्न बीमारियों बैक्टीरिया, वाइरस, फंगस और दूसरे अन्य परजीवियों से शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है। यह शरीर में होने वाले संक्रमणों और टूटी-फूटी कोशिकाओं के मरम्मत के समय भी सक्रिय हो जाता है।