पैरामीशियम में प्रचलन (Locomotion in Paramecium) - पैरामीशियम सूक्ष्म एक कोशिकीय माइक्रोस्कोपिक प्राणी है जो अपने सीलिया के द्वारा प्रचलन करता है साथ ही इसका धारारेखित शरीर भी इसे पानी में प्रचलन के समय मदद करता है प्रचलन का शाब्दिक अर्थ होता है जन्तु का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर गमन करना है। पैरामोशियम निम्न दो प्रकार से प्रचलन करता है।

1. सीलिअरी प्रचलन (Ciliary Locomotion) -
इस प्रकार के प्रचलन को सीलिअरी गति (Ciliary movement) भी कहते हैं। सीलिअरी गति प्रोटोप्लाज्म से बने सूक्ष्म धागे के समान प्रवर्धी से होती है, इन प्रवर्धी को सीलिया कहते हैं। सीलिया के द्वारा पैरामीशियम सर्पिल गति करते हुए आगे बढ़ता है सीलिया पैरामीशियम के पूरे शरीर में फैला रहता है गति करते समय सौलिया पेण्डुलम की तरह दोलन करता है।

प्रत्येक दोलन में दो स्ट्रोक होते हैं एक इफैक्टिव स्ट्रोक (Effective stroke) दूसरा रिकवरी स्ट्रोक (Recovery stroke)

(a) इफेक्टिव स्ट्रोक (Effective stroke) -
इस स्ट्रोक के समय सोलियम कुछ तिरछा झुका हुआ किन्तु दृढ अवस्था में रहता है और एक पतवार की तरह पानी में मजबूती से टकराता है जिसके फलस्वरूप पैरामीशियम का शरीर स्ट्रोक की विपरीत दिशा में आगे पानी में धकेल दिया जाता है इस स्ट्रोक को प्रबल बैकवर्ड स्ट्रोक भी कहते हैं।

(b) रिकवरी स्ट्रोक (Recovery stroke) -
यह इफैक्टिव स्ट्रोक के तुरंत बाद होता है इस अवस्था में सीलियम पूर्णतया ढीला व झुका रहता है जिससे वह पानी की लहर के साथ कम से कम प्रतिरोध करता हुआ। फिर से अगले इफेक्टिव स्ट्रोक के लिए अपनी पहली स्थिति में आ जाता है अतः सीलिया के इफेक्टिव तथा रिकवरी स्ट्रोक्स में बार-बार आने से पैरामीशियम गति करता हुआ आगे बढ़ता रहता है।

पैरामीशियम के सभी सीलिया एक-साथ गति नहीं करते हैं बल्कि एक पंक्ति में लगे सीलिया आगे से पीछे की ओर एक के बाद एक गति करते हैं उनकी इस गति को मेटाक्रोनस गति ( Metachronous movement) कहते हैं। इसके विपरित अनुप्रस्थ कतार के सभी सीलिया एक साथ गति करते हैं। इस गति को सिनक्रोनस गति (Synchronous movement) कहते हैं। सीलिया की गति न्यूरोमोटर तंत्र (Neuromotor system) द्वारा नियंत्रित होती है।

2. शारीरिक प्रचलन (By Metaboly Locomotion) -
पैरामीशियम के शरीर में पाये जाने वाले मायोनीम्स के संकुचन एवं शिथिलन (Contraction and Relaxation) से यह गति होती है प्राणी अपने शरीर के व्यास से कम व्यास वाले स्थानों से होकर निकल जाता है इस प्रकार की गति को मेटाबोली कहते हैं।

(B) पैरामीशियम में व्यवहार (Behaviour in Paramecium) -
एक जीव का अपने वातावरण के साथ सक्रिय सम्बन्ध स्थापित करना व्यवहार (Behaviour) कहलाता है। पैरामीशियम भी वातावरणीय उद्दीपनों के प्रति संवेदनशील होता है तथा उनके अनुकूल तथा प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ करता है। अगर पैरामीशियम उद्दीपन को ओर गति करता है तो ये अनुकूल रिस्पॉन्स (Positive response) कहलाता है यदि ये उद्दीपन के विपरीत गति करता है तो इसे प्रतिकूल रिस्पॉन्स (Negative response) कहते हैं। पैरामीशियम अपने वातावरण में विभिन्न प्रकार के उद्दीपनों के प्रति निम्न क्रियाएँ दर्शाता है -

1. स्पर्श के प्रतिक्रिया या थिगमोटैक्सिस (Reaction to contact or Thigmotaxis) -
पैरामीशियम में स्पर्श के प्रति विभिन्न प्रकार का रिस्पॉन्स देखने को मिलता है यदि इसके अगले सिरे को किसी वस्तु से स्पर्श किया जाय तो बड़ी तेजी से एवॉइडिंग रिएक्शन (Avoiding reaction) देता है। परन्तु जब धीरे-धीरे तैरता हुआ पैरामीशियम जब किसी एलगल फिलामेण्ट (Algal filament) या जलीय पौधों के सम्पर्क में आता है तो उससे लगा रह जाता है हटता नहीं है यानी पॉजीटिव रिस्पॉन्स देता है, क्योंकि यहाँ उसे अधिक भोजन की प्राप्ति होती है।

2. तापमान (Temperature) -
इसके प्रति होने वाली रिएक्शन को तापानुवर्तन (Thermotaxis) कहते हैं यह 24-28°C तक पॉजीटिव रिएक्शन देता है तथा इससे कम अथवा अधिक ताप पर पैरामोशियम निगेटिव रिस्पॉन्स देता है।

3. प्रकाश (Light) -
प्रकाश के प्रति होने वाली क्रिया को प्रकाशानुवर्तन (Photoaxis) रिएक्शन कहते हैं पैरामीशियम धीमे प्रकाश में रहना पसन्द करता है अत: अंधेरे व तेज प्रकाश के प्रति निगेटिव रिस्पॉन्स दिखाता है।

4. गुरुत्व (Gravity) -
पैरामीशियम गुरुत्व के प्रति निगेटिव रिस्पॉन्स दिखाता है यदि एक टेस्ट ट्यूब में जल लेकर उसमे पैरामीशियम डाला जाये तो वह अपने अग्र सिरे को क्षितिज के विपरीत रखता है तथा जल की सतह के नीचे आ जाता है।

5. जलधारा (Water current) -
जलधारा के विपरीत तैरकर पैरामीशियम पॉजीटिव रिस्पॉन्स दिखाता है धीमी जलधारा में पैरामीशियम अपने अग्र सिरे को जलधारा के विपरीत रखकर जलधारा के साथ गति करता है।

6. रसायन (Chemical)–
रसायनों के प्रति अनुक्रिया रसानुवर्तन (Chemotaxis) कहलाता है। इसके जल में कोई अन्य बाह्य रसायन मिलाया जाता है तो वह निगेटिव रिस्पॉन्स दिखाता है। परन्तु तनु ऐसीटिक एसिड डालने पर यह पाजीटिव रोस्पॉन्स दिखाता अर्थात तनु ऐसीटिक एसिड की तरफ गमन करता है। मरक्यूरिक क्लोराइड के घोल में पैरामोशियम मर जाता है।

(C) साइकॉन का जीवन चक्र (Life cycle of Sycon)


साइकॉन में जनन (Reproduction in Sycon) -
साइकॉन में अलैंगिक व लैंगिक (Asexual and Sexual) दोनों प्रकार का जनन पाया जाता है। अलैंगिक जनन मुकुलन (Budding), शाखान्वयन (Branching) गेम्यूल्स (Gemmules) एवं पुनरुद्भवन (Regeneration) द्वारा होता है। लैंगिक जनन साइकॉन में किसी प्रकार के विशिष्ट जनद (Gonads) नहीं होते हैं बल्कि जनन काल में आर्कियोसाइट्स रूपान्तरित होकर शुक्राणु (Sperm) व अण्डाणु (Ovum) बनाती है। जिसमें शुक्राणु का निर्माण होता है। स्पर्मेटोगोनियम (Spermatogonium) कहलाते हैं। तथा जिसमें अण्डाणु का निर्माण होता है। उसाइट (Oocyte) कहलाते हैं।

निषेचन (Fertilization) -
साइकॉन में निषेचन आंतरिक होता है। स्पर्म जलधारा के द्वारा अण्डाणु तक पहुँच जाता है तथा स्पर्म की पूँछ बाहर छूट जाती है तथा स्पर्म का शरीर अण्डाणु में प्रवेश कर जाता है और अण्डाणु को निषेचित कर देता है और जाइगोट (Zygote) का निर्माण होता है।

साइकॉन में भ्रूणीय परिवर्धन (Embryonic development in Sycon) -
साइकॉन में निषेचन के पश्चात् जाइगोट का निर्माण होता है। जाइगोट का विभाजन होलोब्लास्टिक होता है यह विकास  पैतृक स्पंज के अन्दर ही होता है। इसमें पहले तीन विभाजन खड़े होते हैं। जिससे जाइगोट में आठ समान ब्लास्टोमियर्स बन जाती है चौथा विभाजन होरिजॉन्टल होता है जो ब्लास्टोमियर्स को दो असमान भागों में बाँट देता है। इस प्रकार भ्रूण एक ओर आठ छोटी माइक्रोमियर्स तथा दूसरी ओर आल बड़ी मैक्रोमियर्स में बँट जाता है यह भ्रूण की मारुला अवस्था होती है। इन दोनों खण्डों के बीच अब एक गुहा बन जाती है और मारुला अवस्था ब्लास्टुला में बदल जाता है। माइक्रोमियर्स तेजी से विभाजन करते हैं और लम्बी कोशिका का निर्माण करते हैं। इनके भीतरी स्वतंत्र सिरों पर फ्लैजेला बन जाते हैं। मैक्रोमियर्स वाला भाग गोल तथा दानेदार हो जाता है। भ्रूण (Embryo) की इस अवस्था को स्टोमोब्लास्टुला (Stomoblastula) कहते हैं। स्टोमोब्लास्टुला की मैक्रोमियर्स के बीच छिद्र बन जाता है जो भीतरी गुहा में खुलता है इसे भ्रूण का मुख कहते हैं इसी से भ्रूण अपना आहार ग्रहण करता है।

अब स्टोमोब्लास्टुला में इन्वर्सन (Inversion) की क्रिया होती है जिसमें ब्लास्टोमियर्स के बाहरी सिरे भीतर की ओर तथा भीतरी सिरे बाहर की ओर हो जाते हैं। जिससे माइक्रोमियर्स की फ्लैजेला भ्रूण की बाहरी सतह पर आ जाती है। इस अवस्था को एम्फिब्लास्टुला (Amphiblastula) लार्वा (Larva) कहते हैं। यह लार्वा जल में स्वतंत्र रूप से तैरकर जीवनयापन शुरू करता है।

कुछ समय बाद एम्फिब्लास्टुला लार्वा में इनवेजीनेशन तथा एम्बोली की क्रियाओं के फलस्वरूप एम्फि ब्लास्टुला गैस्टुला (Gastrula) में बदल जाता है। अब इस गैस्टुला अवस्था की कोशिकाएँ काफी तेजी से विभाजन प्रारम्भ करती हैं और दो भ्रूणीय स्तर (Embryonic layers) बन जाती है बाहरी स्तर एक्टोडर्म और भीतरी स्तर एण्डोडर्म बनाता है सेण्ट्रल कैविटी एक छिद्र द्वारा बाहर खुलती है जिसे ब्लास्टोपोर कहते हैं। अब स्वतंत्र रूप से तैरता हुआ गैस्टुला अपने ब्लास्टोपोर की मदद से किसी आधार से चिपक जाता है। अब भ्रूण लंबा होकर बेलनाकार हो जाता है दूर वाले सिरे में ऑस्कुलम का निर्माण होता है। कोनेकोसाइट्स व पिनेकोसाइट्स का निर्माण भी हो जाता है और देहभित्ति छिद्रित हो जाती है इसे ऑस्टिया कहते हैं।

इस प्रकार भ्रूण एक युवा स्पंज साइकॉन में बदल जाता है और जल प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है इसके बाद यह प्रौढ़ साइकॉन में बदलकर बडिंग कर नये साइकॉन कॉलोनी का निर्माण करता है।