ओबेलिया का जीवन-चक्र (Life cycle of Obelia) -  ओबेलिया एकलिंगी जन्तु होते हैं, जिनमें जनद का निर्माण एक्टोडर्म से होता है, जिनमें उपस्थित इण्टरस्टिशियल कोशिकाएँ गेमीट्स का निर्माण करती हैं, जिनके परिपक्व होने पर जनद की भित्ति फट जाती है तथा गैमीट्स जल में तैरने लगते हैं।

निषेचन (Fertilization) – निषेचन बाह्य या आन्तरिक होता है। नर व मादा मेड्यूसी अपने गैमीट्स पानी में छोड़ते हैं। बाह्य निषेचन पानी में तथा आन्तरिक निषेचन मादा के शरीर में होता है व एक ओवम के साथ एक स्पर्म समेकित होकर जायगोट बनाता है।

परिवर्धन (Development) - निषेचन के बाद जायगोट का निर्माण होता है, जिसमें परिवर्धन के समय अग्रलिखित क्रियाएँ होती हैं -

(i) विखण्डन (Cleavage) - ओबेलिया में विखण्डन समान व पूर्ण होते हैं, जिसके अन्तर्गत प्रथम विभाजन ऊर्ध्व (veritcal) तथा दूसरा क्षैतिज (Horizontal) होता है, जिससे चार समान कोशिकाएँ बनती हैं, जिसको मॉरुला अवस्था कहते हैं तथा कोशिकाएँ ब्लास्टोमियर्स कहलाती हैं।

(ii) ब्लास्टुला अवस्था (Blastula Stage) -
मॉरुला अवस्था के बाद कोशिकाएँ व्यवस्थित होनी शुरू हो जाती हैं, जिससे सभी कोशिकाएँ एक सतह में व्यवस्थित हो जाती हैं तथा बीच में खाली स्थान रह जाता है जो खोखली गेंद के समान होती है। इस गुहा को ब्लास्टोसील कहते हैं तथा यह अवस्था ब्लास्टुला अवस्था कहलाती है, जिसमें सभी ब्लास्टोमीयर कोशिकाएँ एक सतह में स्थित होती हैं।

(iii) गैस्टूला अवस्था (Gastrula Stage) -
ब्लास्टुला के बाद कोशिकाएँ घूमना शुरू करती हैं, जिसके अन्तर्गत भीतरी कोशिका बाहर की ओर तथा बाहरी कोशिका अन्दर की ओर घूम जाती है तथा सभी कोशिकाएँ दो सतह में व्यवस्थित हो जाती हैं, जिसकी बाहरी सतह एक्टोडर्म व भीतरी सतह एण्डोडर्म होती है। यह अवस्था गैस्ट्रला अवस्था कहलाती है।

(iv) प्लैनुला लार्वा (Planula Larva) - कुछ समय बाद गैस्ट्रला लम्बाई में वृद्धि करता है तथा शरीर की सतह के ऊपर सिलिया का विकास हो जाता है। यह लावा पानी में सिलिया के द्वारा तैरता रहता है, जो आकार में लम्बा तथा अण्डाकार हो जाता है। बाहरी स्तर सिलिएटेड एपिथीलियम का बना होता है, जिसके अन्दर एण्डोडर्म का समूह होता है। एण्डोडर्मल कोशिकाओं में डिलेमिनेशन (delamination) के द्वारा गुहा का निर्माण हो जाता है तथा लार्वा द्विस्तरीय हो जाता है। बाद में हिस्टोलॉजिकल विभेदीकरण (histological differentia tion) के द्वारा लावा में स्तम्भी एक्टोडर्मल, संवेदी तन्त्रिका, ग्रन्थिल कोशिका, मस्कुलर प्रवर्ध व निमैटोसिस्ट कोशिकाएँ बन जाती हैं।

कायान्तरण (Metamorphosis) - कुछ समय तक तैरने के बाद लार्वा ठोस आधार के साथ चिपककर स्थिर हो जाता है तथा इसमें कायान्तरण शुरू हो जाता है, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं -

(1) अगला सिरा ठोस आधार से चिपककर आधार डिस्क बनाता है, जबकि दूसरा सिरा मैन्युब्रियम बनाता है।

(2) मैन्युब्रियम के सिरे पर मुख का निर्माण होता है तथा चारों ओर टेण्टेकिल बन जाते हैं। अब यह लाव सामान्य पॉलिप के समान दिखायी देता है तथा इस अवस्था को हाइडूला (Hydrulla) अवस्था कहते हैं।

(3) इसका आधार लम्बा होकर हाइड्रोराइजा बनाता है, जो बाद में अलैंगिक मुकुलन के द्वारा पार्श्व शाखाओं का निर्माण करता है तथा ओबेलिया कॉलोनी में बदल जाता है। बाद में ये पॉलिप मेड्यूसा का निर्माण करते हैं।

पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of Generation) - जब एक जन्तु के जीवन-चक्र में एक अलैंगिक अवस्था तथा दूसरी लैंगिक अवस्था, नियमित रूप से एक के बाद एक आती है, तो वह पीढ़ी एकान्तरण कहलाता है। ओबेलिया के जीवन-चक्र में पॉलिप (अलैंगिक) तथा मेड्यूसा (लैंगिक) एकान्तर क्रम में बनते हैं।

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