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ऐस्केरिस के जीवन इतिहास का वर्णन Description of the life history of Ascaris

एस्केरिस (Ascaris)


एस्केरिस, मनुष्य की आंत में पाया जाने वाला अंतः परजीवी जीव है। इसका जीवन इतिहास एक ही पोषक (मनुष्य) में पूर्ण होता है।

मैथुन एवं निषेचन (Copulation and Fertilization) - नर व मादा पोषक की आंत में मैथुन करते हैं। नर जंतु से शुक्राणु मादा की योनि में पहुँच जाते हैं। जहाँ से यह शुक्राणु गर्भाशय में पहुँचते हैं। अण्डों का निषेचन गर्भाशय के पिछले भाग में या अण्डवाहिनियों के पश्च भाग में होता है। निषेचन के बाद अण्डों में अण्ड कवच व एल्बुमिन कवच का निर्माण होता है। अण्डे लंबे व अण्डाकार या दीर्घ वृत्ताकार होते हैं।

विदलन/विभाजन (Cleavage) -
अण्डे में विभाजन पोषक के शरीर के बाहर होता है। विभाजन सर्पिल व निर्धारक (Spiral and Determinate) होते हैं। प्रथम विभाजन अनुप्रस्थ होता है, जिससे दो कोशिकाओं का निर्माण होता है। ऊपरी कोशिका में विभाजन से पुनः दो कोशिकाएँ बनती हैं। साथ ही निचली कोशिका भी विभाजित होती है। फलस्वरूप चार कोशिका वाले "T" आकार के भ्रूण का निर्माण होता है। लगातार विभाजन के बाद भ्रूण के एक्टोडर्म का निर्माण होता है। इसके बाद एण्डोडर्म व मीसोडर्म की कोशिकाएँ बनती हैं व ब्लास्टुला का निर्माण होता है। अन्तर्गमन क्रिया (Invagination) द्वारा ब्लास्टुला से गैस्टुला अवस्था बनती है जो वृद्धि करके गतिशील जुवेनाइल अवस्था बनाती है, जिसे रैड्ब्डिटॉइड अवस्था (Rhabditoid stage) कहते हैं। अनुकूल जलवायु व ताप उपलब्ध होने पर 10-14 दिनों के भीतर अण्डों से प्रथम लार्वल अवस्था बनती हैं। एक सप्ताह के पश्चात् अण्ड कवच के भीतर ही इसमें प्रथम निर्मोचन (First moulting) होता है और यह द्वितीय रैड्ब्डिटॉइड अवस्था में पहुँच जाता है। अब अण्ड कवच से लार्वा निकलने के लिए तैयार रहता है।

अण्ड-रोपण (Egg laying) - पोषक की आँत में अण्डों का निक्षेपण होता है, जहाँ से यह पोषक के मल के साथ बाहर निकल आते हैं। बाहर आने पर यह संक्रामक अवस्था में विकसित होते हैं। इसके जीवन चक्र में मध्यस्थ पोषक नहीं पाया जाता है। द्वितीय अवस्था रैब्डिटॉइड लार्वा का पुन:वर्धन तभी संभव है जबकि अण्डे पोषक की आत में पहुँचे अन्यथा ये नष्ट हो जाते हैं।

नये पोषक का संक्रमण (Infection of new host) -  संक्रमित भोजन, पानी या कच्ची सब्जियों के प्रयोग से अण्डे पोषक की आहारनाल में पहुँच जाते हैं। छोटी आंत में पहुंचने पर इनके अण्ड कवच घुल जाते हैं तथा इससे द्वितीय रहन्डिटॉइड लावा बाहर निकल आते हैं। इनमें पूर्ण विकसित आहारनाल, तंत्रिका तंत्र व उत्सर्जन तंत्र पाये जाते हैं, किंतु जनन अंग नहीं पाये जाते। आँत में जीवन प्रारंभ करने के पूर्व यह पोषक के शरीर में लगभग 10 दिनों का प्रवासी जीवन प्रारंभ करता है। इस समय इसमें दो बार निर्मोचन की क्रिया होती हैं, फिर यह वयस्क में बदल जाता है।

प्रथम प्रवास (First migration) - द्वितीय प्रावस्था का रैहब्डिटॉइड लार्वा अण्डे से निकलने के बाद अति की म्यूकस झिल्ली को भेदकर रक्त परिवहन तंत्र में पहुँच जाता है। हिपेटिक पोर्टल तंत्र द्वारा यह यकृत में पहुँचता है, यहाँ से यह दायें भाग के हृदय में पहुंचता है। पल्मोनरी धमनी द्वारा यह फेफड़ों में पहुँच जाते हैं। यहाँ पर यह वायु कोष्ठों की दीवार में ठहर जाता है। यहाँ इसमें दो बार निर्मोचन होता है। निर्मोचन के बाद यह पुनः प्रवास प्रारंभ करता है।

द्वितीय प्रवास (Second migration) -
वायु कोष्ठ से निकलकर लार्वा वायु मार्ग से होता हुआ फैरिक्स की ओर बढ़ता है तथा इसकी दीवारों को उत्तेजित करता है जिससे खाँसी आती है। खाँसी के साथ यह लाव आहारनाल में पहुँच जाता है और अंत में पहुंचने पर इसमें अंतिम या पाँचवीं बार निर्मोचन होता है, जिससे यह प्रौढ़ या वयस्क में बदल जाता है। 6-10 सप्ताह के भीतर यह वयस्क जीव बनता है, जिसमें जनन अंगों का निर्माण भी पूर्ण हो जाता है। इस प्रकार पुनः निषेचन द्वारा अण्डों का निर्माण होता है एवं जीवन-चक्र चलता रहता है।