लसिकाभ अंगों को दो प्रकार में विभाजित किया जाता है-
1. प्राथमिक लसिकाभ अंग (Primary lymphoid organ) - वे अंग जहाँ लसिकाणुओं की उत्पत्ति होती है तथा प्रतिजन संवेदनशील बनते है।उदाहरण -
(a) अस्थिमज्जा (Bone marrow) - यह प्रमुख लसिकाभ अंग है जहाँ लसिका अणुओं सहित सभी प्रकार की रुधिर कोशिकाओं का निर्माण होता है। यह दो प्रकार होता है लाल अस्थिमज्जा (Red bone marrow) एवं पीली अस्थिमज्जा (Yellow bone marrow)
(b) थाइमस (Thymus) - यह हृदय के ऊपरी सिरे की ओर वक्ष गुहा में स्टर्नम के नीचे पाया जाता है। यह बाल्यावस्था में पूर्ण विकसित होता है एवं धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। युवावस्था में यह एक तंतुमय डोरो के समान होता है। यह टी-लसिकाणु (T-lymphocyte) का परिपक्वन स्थल है।
2. द्वितीयक लसिकाभ अंग (Secondary lymphoid organ) - इसे परिधीय लसिकाभ अंग भी कहते हैं। परिपक्वता के बाद बी-लसिकाणु व टी-लसिकाणु (B-lymphocyte and T-lymphocyte) रक्त परिवहन तंत्र व लसिका तंत्र के माध्यम से द्वितीयक लसिकाभ अंगों में स्थानांतरित होते हैं जहाँ पर बी-लसिकाणु व टी-लसिकाणु (B-lymphocyte and T-Jymphocyte) का प्रचुरोद्भवन व विभेदन होता है। लसिकाणु इन अंगों में रहकर रोगाणुओं को फँसाकर उनको मारने का कार्य करते हैं। लसिका ग्रंथियाँ, प्लीहा, टॉन्सिल, छोटी आंत के पेयर पैच, लसिकाभ ऊतक (MALT) आदि द्वितीयक लसिकाभ अंग के उदाहरण हैं।
A. प्लीहा (Speen) - यह सेम के आकार का अंग है जिसमें लिम्फोसाइट व फैगोसाइट अधिक मात्रा में होते हैं। यह रक्त को छानकर रोगाणुओं को पृथक् करता है।
B. लसिका ग्रंथियाँ (Lymph nodes) - यह छोटी ठोस संरचनाएँ है जो शरीर के विभिन्न भागों में लसीका तंत्र के रूप में होती है। लसीका व ऊतक द्रव में प्रवेश करने वाले सूक्ष्मजीवों या एण्टीज़न को नष्ट करना इनका कार्य है।
C. श्लेष्म संबंधी लसिकाभ ऊतक (Mucosa Associated Lymphoid Tissue, MALT) - यह श्वसन मार्ग, पाचन मार्ग, मूत्र व जनन मार्ग जैसे शरीर के मुख्य मार्ग के आंतरिक या भीतरी सतह मे पाये जाते हैं। यह मानव शरीर में लगभग 50% लसिकाभ ऊतक का गठन करते हैं।
D. टॉन्सिल (Tonsils) - यह जीभ के आधार पर पाया जाने वाला लसिकाभ ऊतक पिंड है।
E. पेयर पैच (Peyers Patches) - यह छोटी आंत के ग्रहणी में पाये जाने वाले लसिकाभ ऊतक के पिंड है जिसमें T-लिम्फोसाइट पाये जाते हैं।