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प्रतिरक्षा पर टिप्पणी (Comments on Immunity in Hindi)

प्रतिरक्षा या प्रतिरक्षण


शरीर के द्वारा किन्हीं विशिष्ट रोगाणुओं के लिए प्रतिरोध उत्पन्न करना या किसी रोग के प्रति प्रतिरोध करने के गुण को रोग-क्षमता या प्रतिरक्षण (Immunity) कहते हैं।

प्राणियों को हमेशा बाहरी आक्रमणकारी फफूँद, जीवाणु, विषाणु एवं सूक्ष्मजीवियों आदि अनेक परजीवियों का सामना करना पड़ता है। यदि प्राणी में संक्रमण कम होता है तो वह परजीवी के आक्रमण से प्रतिरक्षित (Immune) हो सकता है। किसी आक्रमणकारी ऐण्टिजन (Antigen) के विरुद्ध प्रतिक्रिया में शरीर की विभिन्न कोशिकाओं, कारक तथा अभिक्रियाओं की श्रृंखला को मिलाकर एक इम्यून तंत्र (Immune system) कार्य करता है। इस इम्यून तंत्र की उत्पत्ति दो महीने की भ्रूण में ही हो जाती है।

शरीर के इम्यून तंत्र के निर्माण में निम्नलिखित कोशिकाएँ सम्मिलित होती हैं -

(A) इम्यूनतंत्री सक्षम कोशिकाएँ (Immunologically competent cells) - इसके अंतर्गत (a) लिम्फो साइट्स – इसमें T एवं B कोशिकाएँ आती हैं तथा (b) प्लाज्मा कोशिकाएँ आती हैं।

(B) सहायक कोशिकाएँ (Accessory cells) या मैक्रोफेजेस (Macrophages)।

(A) इम्यूनतंत्री सक्षम कोशिकाएँ - ये वे कोशिकाएँ होती हैं, जो कि किसी इम्यून प्रतिक्रिया में सीधे सम्मिलित रहती हैं। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ आती हैं -

(a) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) - अस्थि मज्जा में उत्पन्न होने वाली प्रीमोर्डियल कोशिकाएँ जिन्हें स्टेम कोशिकाएँ (Stem cells) भी कहते हैं, लिम्फोसाइट्स का निर्माण करती हैं। लिम्फोसाइट्स रुधिर तथा लिम्फॉइड तंत्र में घूमती रहती हैं। ये बड़ी एकनाभिकीय कोशिकाएँ हैं, जो कि कुल ल्यूकोसाइट्स का 20-30% तक होती है। परिधीय रक्त में 92% लिम्फोसाइट्स छोटे तथा 8% बड़े आकार के होते हैं।

लिम्फोसाइट कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं - (i) T-लिम्फोसाइट्स एवं (ii) B-लिम्फोसाइट।

(i) T-लिम्फोसाइट - यह भ्रूणीय अवस्था में अस्थि मज्जा में निर्मित होता है। अपरिपक्व कोशिकाएँ थायमस ग्रंथि में पहुँचकर परिपक्व होती हैं, जो कि परिपक्व होकर थायमस ग्रंथि से रक्त परिवहन द्वारा अन्य लिम्फॉइड अंगों जैसे–लिम्फनोड, प्लीहा, टॉन्सिल आदि में पहुँच जाते हैं। जहाँ पर ये सक्रिय होकर ऐण्टिबॉडीज का निर्माण करते हैं। T- लिम्फोसाइट रुधिर तंत्र एवं लिम्फॉइड तंत्रों के बीच गति करते रहते हैं। आकार के आधार पर T-लिम्फोसाइट्स दो प्रकार के होते हैं -

1. सूक्ष्म लिम्फोसाइट (Micro lymphocyte) - ये लाल रक्त कणों से थोड़े बड़े होते हैं। इनका केन्द्रक थोड़ा बड़ा एवं दाँतेदार होता है और कोशिका का अधिकांश भाग घेरे रहता है। कोशिकाद्रव्य, केन्द्रक के चारों ओर फैली हुई एक बेसोफिलिक होती है। बच्चों में इसकी मात्रा 50% होती है तथा उम्र के साथ यह कम होती जाती है और 10 वर्ष की आयु में केवल 35% रह जाती है।

2. दीर्घ लिम्फोसाइट (Macro lymphocyte) - इनका केन्द्रक गोलाकार, अण्डाकार या वृक्क जैसा होता है। कोशिकाद्रव्य कणिकाविहीन होता है। ये बच्चों में अधिक संख्या में तथा वयस्क में 4-8% तक पाये जाते हैं।

कार्यों के आधार पर T-लिम्फोसाइट्स को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है -

(1) किलर T-लिम्फोसाइट्स (Killer T-Lymphocytes) - ये सीधे ऐण्टिजन पर आक्रमण करते हैं और पोषक की संक्रमित कोशिकाओं को ही नष्ट कर देते हैं। इनकी सतह पर विशिष्ट प्रोटीन T-कोशिका ग्राही (T-cell receptor) होती है। यह बाहरी कोशिकाओं को पहचान कर उन्हें मार देती है।

(2) सहायक T-लिम्फोसाइट्स (Helper T-lymphocytes) - ये ऐण्टिजन से बँधकर ऐण्टीबॉडीज का उत्पादन करने वाली अन्य कोशिकाओं, जैसे-B-कोशिकाओं एवं T-कोशिकाओं की सहायता करती हैं।

(3) सप्रेसर T- लिम्फोसाइट (Suppressor T-lymphocyte) - आवश्यकता अनुसार ये B तथा T कोशिकाओं के सामान्य कार्य को अवरोधित करती है तथा इम्यून प्रतिक्रिया को रोकती हैं। जैसे - AIDS के रोगियों में सहायक T-लिम्फोसाइट की कमी तथा सप्रेसर T-लिम्फोसाइट की अधिक संख्या पाई जाती है. फलस्वरूप ये इम्यून तंत्र को सप्रेस करते हैं।

(ii) B-लिम्फोसाइट - इन कोशिकाओं का भी निर्माण अस्थि मज्जा में होता है और परिपक्व भी अस्थि मज्जा में ही होता है। सर्वप्रथम इनका अध्ययन पत्तियों में किया गया था। परिपक्वन पश्चात् ये कोशिकाएं लिम्फॉइड अंगों में पहुँच जाती हैं। B-लिम्फो साइट्स, ऐण्टिबॉडीज का संश्लेषण करती हैं, जो कि अवांछित ऐण्टिजन का स्कंदन (agluti nation) करती हैं। इसके साथ ही ये विशिष्ट प्लाज्मा कोशिकाओं में भी विभेदित होती हैं, जो जरूरत पड़ने पर भारी मात्रा में ऐण्टिबॉडीज का निर्माण करती हैं।

B तथा T लिम्फोसाइट का आकार एक समान होता है, परन्तु सतह पर पाये जाने वाले प्रोटीन अलग-अलग होते हैं। B- कोशिकाओं पर सतह ऐण्टिबॉडी तथा B-220 जैसे प्रोटीन होते हैं। इसी तरह से T सतह पर T-कोशिका ग्राही तथा Thy-1 प्रोटीन पाये जाते हैं।

(b) प्लाज्मा कोशिकाएँ (Plasma cells) - ये B-लिम्फोसाइट से निर्मित होती हैं ये एकनाभिकीय -कोशिकाएं होती है, जिसका कोशिकाद्रव्य ऐम्फोफिलिक होता है, ये कोशिकाएँ विशिष्ट पेण्टिबॉडीज का निर्माण करती हैं। ये अत्यधिक मात्रा में इम्यूनोग्लोब्युलिन का निर्माण करती है।

(B) सहायक कोशिकाएँ या मैक्रोफैज - ये कोशिकाएँ इम्यून प्रतिक्रिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। ये सभी प्रकार के ऊतकों में पायी जाती है तथा रक्त में भी भ्रमण करती हैं, रक्त में इन्हें मोनोसाइट्स (monocytes) कहते हैं। किसी बाहरी पदार्थ का भक्षण सबसे पहले इन्हीं कोशिकाओं के द्वारा की जाती हैं। इन कोशिकाओं में भक्षण हाइड्रोलिटिक एन्जाइमों तथा ऑक्सीडेटिव आक्रमण के द्वारा पूर्ण होता है। नष्ट किये गये प्रोटीनों के पेप्टाइड (Peptide) बाद में इन कोशिकाओं के सतह पर आ जाते हैं, जहाँ इनकी पहचान कोशिकाओं के द्वारा किया जाता है।

इस प्रकार से हम देखते हैं कि इम्यून तंत्र में अनेक प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं, जो इम्यून प्रतिक्रिया में सहायता करती है।

एण्टिजन (Antigen) - ऐण्टिजन रासायनिक रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, पॉलिसराइड्स या न्यूक्लिक ऐसिड स्वभाव के पाये जाते हैं। यह एंटीबॉडीय के निर्माण को प्रेरित करता है ऐण्टिजन एवं जीवाणु से उत्पन्न लिपिड्स संयुक्त रूप से हैप्टेन्स का निर्माण करते हैं। ऐण्टिजन की सतह पर छोटे रासायनिक समूह होते हैं जिन्हें एन्टोजेनिक डोटर मिनेन्ट कहते हैं। इन रासायनिक समूह से एण्टिबॉडीज अभिक्रिया करते हैं। एण्टिजन का न्यूनतम अणुभार 10.000 होता है। ऐपिटजन प्रायः कोशिका मध्यस्थता प्रतिरक्षता (Cell mediated Immunity) को उत्पन्न करते हैं। हैप्टेन्स कम अणुभार के होते हैं।

एण्टिजन के प्रकार - 1. संक्रामक कारकों के ऐण्टिजन जो ऐण्टिबॉडीज के उत्पादन को Stimulate करते हैं। 2. कोशिका में पाए जाने वाले एण्टिनन उदाहरण - आइसो ऐण्टिजन (Isoantigen) एवं हेटेरोफिल ऐण्टिजन (Heterophil-antigen)

परिमाण के आधार पर एण्टिजन के प्रकार

1. Complete antigen - ये ऐण्टिबॉडी (Antibody) के उत्पादन को प्रेरित करते हैं।

2. Hapten or Partial antigen – ये ऐण्टिबॉडी के उत्पादन को प्रेरित नहीं करते हैं। परन्तु बैक्टीरिया या वायरस के अन्दर उपस्थित होने पर Antibody produce कर सकते हैं।

जन्मजात प्रतिरक्षा के रासायनिक एवं यांत्रिक कारक (Chemical and Mechanical factors of Innate Immunity) - किसी भी संक्रमण या रोग के प्रति प्रतिरोध करने के विशेष गुण को प्रतिरक्षण कहते हैं। यह प्रतिरक्षा (Immunity) मनुष्य के शरीर में निम्न कारणों द्वारा उत्पन्न होती है।

1. त्वचा (Skin) - त्वचा के ऊपर किरैटिन (Keratin) प्रोटीन पाया जाता है। जीवाणु इसे भेद नहीं सकता है तथा यह शरीर में जल प्रवेश करने से रोकता है। अतः त्वचा मैकेनिकल बेरियर का काम करता है।

2. म्युकस मेम्ब्रेन (Mucous Membrane) - श्वसन नलिका की म्युकस मेम्ब्रेन की कोशिका म्युकस (Mucous) का स्त्रावण करती है। जो धूल के कण एवं बैक्टीरिया को ट्रेप (Trap) कर लेती है।

3. आमाशय (Stomach) - आमाशय में अम्लीय माध्यम पाया जाता है जिसका पी. एच pH 2-0 होता है यह जीवाणु के जनन का प्रतिरोध करता है और माइक्रो आर्गेनिज्म को मार देता है।

4. इन्टरफेरॉन (Interferon) - यह शरीर के सेल द्वारा स्त्रावित होता है। यह वाइरस (Virus) के मल्टीप्लिकेशन को रोकता है।

5. लेक्टोफेरिन (Lectoferrin) - यह रसायन मुख्य रूप से लेक्राइमल ग्लैण्ड (Lacrymal gland) से निकले आँसुओं, तथा सीमन (Semen) में पाया जाता है। यह जीवाणु की वृद्धि को रोकने का कार्य करता है।

6. ट्रान्सफेरिन (Transferrin) - यह ऊतक (Tissues) में पाया जाने वाला रसायन है। यह वाइरस के जनन को रोकने का कार्य करता है।

7. लाइसोजाइम (Lysozyme) – यह मनुष्य के लार (Saliva) एवं आँसुओं में पाया जाता है। यह बैक्टीरिया के कोशिका भित्ति के पेप्टाइडोग्लाइकेन (Peptidoglycan) का पाचन करता है।