कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र के स्थिति में कैंसर और उसका उपचार (Cancer and its treatment in case of weakened immune system)

कैंसर का प्रसार जब अस्थि मज्जा तक हो जाता है तो इस स्थिति में शरीर का प्रतिरोधक तंत्र कमजोर हो सकता है। यहाँ यह बात काफी महत्वपूर्ण है कि अस्थि मज्जा रक्त कोशिकाओं के साथ-साथ प्रतिरोधक तंत्र की कोशिकाओं का निर्माण कार्य करना जो इस प्रकार के किसी भी संक्रमण से शरीर को सुरक्षा प्रदान करना होता है। यदि अस्थि मज्जा कैंसर के संक्रमण से प्रभावित हो जाये तो ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जो कैंसर अन्य प्रकारों के अलावा रक्त से संबंधित कैंसर है से शरीर ग्रसित हो जाता है। सामान्य अवस्था में अस्थि मज्जा कई प्रकार की रक्त कोशिकायें और प्रतिरोधक तंत्र से संबंधित कोशिकाओं का निर्माण करता है जो कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती है। कैंसर के कुछ उपचार कमजोर प्रतिरोधक तंत्र के कारण केवल अस्थायी रूप से कार्य कर पाते हैं। क्योंकि कमजोर प्रतिरोधक तंत्र श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण नहीं कर पाता। इस स्थिति में कैंसर के निम्न उपचारों की सहायता ले सकते हैं -

1. कीमोथैरेपी।

2. टारगेटेड कैंसर ड्रग्स ।

3. रेडियोथैरेपी।

4. स्टीरॉइड की उच्च मात्रा (High Dose of Steroid) ।


प्रतिरोधक तंत्र कैंसर से लड़ने में सहायता कर सकता है -  प्रतिरोधक तंत्र की कुछ कोशिकायें सामान्य कोशिकाओं के कैंसर कोशिका में परिवर्तन को पहचान सकती है और उन्हें समाप्त भी कर सकती है। दुर्भाग्य से इस प्रकार की कोशिकाओं की पहचान सुनिश्चित नहीं की जा सकी है इसलिये निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिरोधक तंत्र की कोशिकायें कैंसर कोशिकाओं को अच्छी तरह से पढ़कर उन्हें पहचान लें। परंतु कैंसर के उपचार में प्रतिरोधक तंत्र किस प्रकार से कारगर हो सकता है इस पर अभी शोध कार्य जारी है।

सामान्य तौर पर प्रतिरोधक तंत्र के दो मुख्य भाग हैं -

1. रक्षात्मक तंत्र जो जन्म से ही प्राप्त होता है इसे सहज प्रतिरक्षा कहते हैं।

2. रक्षात्मक तंत्र जो कुछ बीमारियों के संक्रमण के पश्चात् शरीर के परिपक्व होने पर तैयार होता है। अर्जित प्रतिरक्षा कहते हैं।


यह तंत्र जो शरीर को जन्म से ही प्राप्त होता है शरीर को किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाने के लिये हमेशा तैयार होता है और काफी तेज गति से संक्रमण के विरुद्ध लड़ने को तैयार हो जाता है यह निम्नानुसार है -

1. शरीर के चारों ओर मिलने वाली त्वचा।

2. आहार नाल और फेफड़ों के आंतरिक स्तर की लाइनिंग जो म्यूकस का स्राव करती है और बैक्टीरिया और हानिकारक सूक्ष्म प्राणियों से शरीर की रक्षा करता है।

3. आमाशय से निकलने वाले जठर रस जो हानिकारक बैक्टीरिया व अन्य संक्रमण से शरीर को रक्षा करता है।

4. मूत्र का उत्सर्जन जो हानिकारक बैक्टीरिया को शरीर से बाहर निकालता है।

5. श्वेत रक्त कणिकाएँ विशेष रूप से न्यूट्रोफिल जो बैक्टीरिया के संक्रमण से शरीर की रक्षा करता है।

कैंसर के कुछ उपचार इस पर काबू पाने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं जैसे कीमोथैरेपी परन्तु इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि रक्त में न्यूट्रोफिल की मात्रा काफी कम हो जाती है और तंत्र की संक्रमण से लड़ने की क्षमता काफी कम हो जाती है। इसी प्रकार रेडियोथैरेपी से फेफड़े, शरीर के बाल क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और म्यूकस तैयार करने वाली कोशिकायें क्षतिग्रस्त हो जाती है। जिससे बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म सामान्य तौर पर रक्त में न्यूट्रोफिल की जन्तुओं को समाप्त नहीं किया जा सकता।

न्यूट्रोफिल - यह रक्त कोशिका संक्रमण से लड़ने के लिये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कोशिका है यह निम्न प्रकार के कार्य करती है।

1. संक्रमित भाग से संक्रमण को हटाने का कार्य

2. बैक्टीरिया, वाइरस और फंगस को पकड़ कर उसे मार कर निगलने का कार्य।

मात्र 2000 से 7500 प्रति क्यूबिक मि.मि. यदि इसकी मात्र सामान्य से कम हो जाये तो व्यक्ति न्यूट्रोपेनिक हो सकता है अर्जित प्रतिरक्षा और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

3. रक्षात्मक तंत्र जो कुछ बीमारियों के संक्रमण के पश्चात् शरीर के परिपक्व होने पर तैयार होता है। अर्जित प्रतिरक्षा कहते हैं।

इस प्रतिरोधक तंत्र के संबंध में यह कहा जा सकता है कि जब शरीर पर किसी बाहरी संक्रमण का प्रभाव होता है उस स्थिति में हमारा शरीर यह सीखता है कि इससे लड़ने के लिये प्रतिरोधक तंत्र कोशिकाओं का निर्माण होना चाहिये। शरीर के प्रतिरोधक तंत्र ऐसे विशेष बैक्टीरिया फंगस और वाइरस को पहचानने का कार्य करता है जिनका संक्रमण शरीर में पहली बार हुआ है। और एक बार शरीर का प्रतिरोधक तंत्र इन्हें पहचान ले तो भविष्य में जब कभी भी दुबारा इनका संक्रमण होगा तो प्रतिरोधक तंत्र इन्हें आसानी से पहचान कर उन्हें मार सकता है और शरीर को संक्रमण से बचा सकता है। यही कारण है कि जन्म के साथ ही बच्चों को टीका अथवा वैक्सीन की मात्रा दे दी जाती है जो बच्चों को खसरा अथवा चिकन पॉक्स जैसी बीमारियों से रक्षा करता है।

इस तंत्र में दो मुख्य कोशिकायें प्रमुख रूप से भाग लेती हैं -

1. बी. कोशिका, 2. टी. कोशिका इन कोशिकाओं का निर्माण अस्थि मज्जा में होता है।

बी. कोशिका का मुख्य कार्य बैक्टीरिया और वाइरस को पहचानना और उन्हें मारना होता है और यह कार्य कोशिका अपने सतह पर मिलने वाले प्रोटीन की सहायता से करती है जिसे एन्टीबॉडीस कहते हैं। इन प्रोटीन में एन्टीजन में मिलने वाले प्रोटीन की संरचना के आधार पर स्वयं की संरचना में परिवर्तन की क्षमता होती है।

टी कोशिका मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है -

1. हेल्पर टी कोशिका, 2. किलर टी कोशिका, 3. सप्रेसर टी कोशिका।

हेल्पर टी कोशिका का कार्य की कोशिका को एन्टीजन से लड़ने के लिये उत्प्रेरित करना और किलर टी कोशिका के विकास में सहायता करना। किलर टी कोशिका हानिकारक बैक्टिीरिया एवं अन्य एन्टीजन का भक्षण करना एवं सप्रेसर टी कोशिका उपरोक्त दोनों टी कोशिका के कार्य को अवरुद्ध करना होता है।

प्रतिरोधक तंत्र की सहायता से कैंसर का उपचार -

कुछ कैंसर का उपचार में प्रतिरोधक तंत्र का उपयोग किया जाता है जिसमें प्रमुख हैं -

इम्युनोथैरेपी - कुछ विशेष प्रकार के कैंसर में इसका उपयोग किया जाता है उदाहरण के लिये जैसे मेलेनोमा। इस कैंसर में कैंसर कोशिकायें सामान्य से कुछ ज्यादा बड़ी होती हैं इसलिये प्रतिरोधक तंत्र को पहचानना आसान होता है। इस उपचार में शरीर को प्राकृतिक अवयव प्रयोग में लाये जाते हैं।

वैज्ञानिकों ने नवीनतम शोधकार्यों के दौरान प्रयोगशाला में विभिन्न प्रकार के रसायन तैयार किये जो प्रतिरोधक प्रतिक्रिया से संबंधित है। टीकाकरण भी प्रतिरोधक तंत्र का एक प्रमुख भाग है जो कैंसर के आक्रमण को पहचान सकता है। साइटोकाइनेज नाम का रसायन प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करता है।