लाइसोसोम की संरचना तथा कार्य - Structure and Functions of Lysosome

लाइसोसोम (Lysosome)

क्रिश्चियन डी डूवे ने सर्वप्रथम सन् 1955 में लाइसोसोम की खोज की। ये समस्त प्राणी कोशिकाओं में विद्यमान रहते हैं। ये गोलाकार काय होते हैं, जिनका व्यास 0.44 0-84 तक होता है। ये इकहरी यूनिट मेम्ब्रेन से बने होते हैं तथा इनके अन्दर सघन मैट्रिक्स भरा रहता है, जिसमें ऐसिड फॉस्फेटेज एन्जाइम भरे रहते हैं, जो अग्रलिखित प्रकार के होते हैं -

1. न्यूक्लियेजेस – ये नाभिकीय अम्लों का नाइट्रोजनी क्षार, फॉस्फेट तथा शर्करा में जल-अपघटन करते हैं।

2. फॉस्फेटेजेस - ये फॉस्फेट यौगिकों का जल-अपघटन करते हैं।

3. प्रोटियेजेस - ये प्रोटीन्स का अमीनो अम्लों में जल अपघटन करते हैं।

4. ग्लाइकोसाइडेजेस – ये जटिल कार्बोहाइड्रेट्स का मोनोसैकेराइड्स में जल-अपघटन करते हैं।

5. सल्फेटेजेस – ये सल्फेट यौगिकों का जल-अपघटन करते हैं।

6. लाइपेजेस – ये लिपिड अणुओं का ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्लों में जल-अपघटन करते हैं।

चूँकि लाइसोसोम के भीतर उपस्थित पाचक एन्जाइम सभी पदार्थों के पाचन में सक्षम होते हैं, परन्तु इसकी झिल्ली की वजह से ये अन्दर ही सिमटे रहते हैं, यदि यह झिल्ली किसी कारणवश टूट जाती है, तब इनके पाचक एन्जाइम सम्पूर्ण कोशिका में फैलकर सभी चीजों का पाचन कर उसे नष्ट कर देती हैं। अत: इस प्रक्रिया को स्वभक्षण भी कहते हैं। इसीलिए इन्हें कोशिका का आत्मघाती थैला कहते हैं।

लाइसोसोम के भीतर उपस्थित पदार्थों का क्रमश: पाचन होता रहता है, इससे यह कई रूपों में देखने को मिलता है, इन्हीं प्रकारों को बहुरूपकों में गिना जाता है। ये निम्नलिखित हैं -

1. मूल लाइसोसोम - ये गॉल्जीकाय से बनी मूल रचनाएँ हैं, इनमें एन्जाइम ताजा स्थिति में संगृहीत रहते हैं।

2. फैगो लाइसोसोम - कोशिका जब किसी ठोस पदार्थ को भोजन के रूप में ग्रहण करती है, तब उस पदार्थ तथा उसके चारों ओर कोशिका द्वारा निर्मित झिल्ली को फैगोसोम कहते हैं। इस रचना के मूल लाइसोसोम में समेकित हो जाने से फैगो लाइसोसोम का निर्माण होता है। इस प्रकार लाइसोसोम के एन्जाइम भोज्य पदार्थ के सोधे सम्पर्क में आ जाते हैं तथा पदार्थ का पाचन प्रारम्भ हो जाता है।

3. अवशिष्ट काय - उपर्युक्त पाचन क्रिया की समाप्ति पर जो अपशिष्ट शेष रह जाते हैं, उनके साथ लाइसोसोम को अवशिष्ट काय (Residual body) कहा जाता है।

4. स्वभक्षी रसधानियाँ (Autophagic vacuoles) - यदि कोशिका का कोई कोशिकांग शिथिल होकर निष्क्रिय हो जाता है, तब उसे लाइसोसोम की मदद से नष्ट किया जाता है। ऐसी स्थिति में चूँकि लाइसोसोम स्वतः की कोशिकांगों का भक्षण कर रहा होता है, उसे स्वभक्षी रसधानी कहा जाता है।

लाइसोसोम के कार्य (Functions of Lysosome)

(1) बाह्य कणों का पाचन - अर्थात् भोजन का पाचन।

(2) स्वतः भक्षण-शिथिल पड़े कोशिकांगों का भक्षण या पूर्णरूप से स्व-कोशिका का पाचन।

(3) निषेचन में सहायता - लाइसोसोम की मदद से शुक्राणु, अण्डाणु की दीवार को पचा कर उसमें प्रविष्ट होता है।

(4) अस्थिजनन (Osteogenesis) – कार्टिलेज के अस्थि में परिवर्तन के समय लाइसोसोम कार्टिलेज का अपरदन करता है।

(5) लाइसोसोम कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित भोज्य पदार्थों का पाचन करने का भी कार्य करता है।

(6) लाइसोसोम कोशिका के बाहर पाचन करने का कार्य करता है।

(7) लाइसोसोम कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है।

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