जंतु विज्ञान के महत्वपुर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

Que. 1) भ्रूणीय कलाएं क्या है?
मुर्गी के परिवर्धन में भ्रूणीय कलाओ के विन्यास का वर्णन एवं उनका कार्य?
बाह्य भ्रूणीय झिल्ली का वर्णन?
भ्रूणीय कलाओ के महत्व पर टिप्पणी?
ऐम्निऑन तथा कोरिऑन पर टिप्पणी?
ऐलेन्टोईस पर टिप्पणी?
योक सैक पर टिप्पणी?

कशेरुकी प्राणियों के परिवर्धन के समय कुछ ऐसी संरचनाएँ निर्मित होती हैं, जो कि भ्रूण के निर्माण में सहायक नहीं होती हैं, परन्तु विकसित हो रहे भ्रूण की रक्षा एवं व्यवस्थापन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये संरचनाएँ अस्थायी या स्थायी होती हैं। सामूहिक रूप से इन संरचनाओं को भ्रूणीय झिल्लियाँ (Foetal membranes) या बाह्य भ्रूणीय झिल्लियाँ (Extra embryonic membranes) कहते हैं। ये कशेरुकी प्राणियों के भ्रूण के परिवर्धन के लिए अति आवश्यक होती हैं।

ये चार प्रकार की होती हैं -

(1) योक सेक
(2) ऐम्निऑन
(3) कोरिऑन तथा
(4) ऐलेण्टॉइस


ये झिल्लियाँ जिन जन्तुओं में बनती हैं, उन्हें ऐम्निओट्स तथा जिन जन्तुओं में नहीं बनती हैं, उन्हें एनऐम्निओट्स कहते हैं।

मुर्गी परिवर्धन में भ्रूणीय झिल्लियाँ

ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं -

(i) ऐम्निऑन तथा कोरिऑन (Amnion and chorion)  - ब्लास्टोडर्म से भ्रूण बनने के अतिरिक्त उसके भ्रूण बाह्य क्षेत्र से ये भ्रूण झिल्लियाँ बनाती हैं। ब्लास्टोडर्म का सोमेटोप्लूट भ्रूण के सामने प्रत्येक पार्श्व में एक वलन के रूप में उठता है, यह भ्रूण को ऊपर से घेर लेता है तथा छतरीनुमा रचना का निर्माण करता है। इस वलन भ्रूण बाह्य सीलोम भी पहुँच जाती है। इसमें सोमेटोप्लूट की दो परतें होती हैं। बाह्य परत को कोरिऑन कहते हैं, जिसमें बाहरी एक्टोडर्म और भीतरी मीजोडर्म होती है और दूसरी परत ऐम्निऑन होती है, जिसमें भीतर की ओर एक्टोडर्म तथा बाहर की ओर कायिक (Somatic) मीजोडर्म होती है। यह मीजोडर्म कोरिऑन की मीजोडर्म की दोनों परतों के बीच से भ्रूण बाह्य सीलोम होती है, ये वलन पीछे की ओर बढ़ते जाते हैं तथा भ्रूण को ऊपर से पूर्ण ढँक लेते हैं। ऐम्निऑन तथा कोरिऑन का मिलन बिन्दु अपूर्ण रहता है, क्योंकि इसमें दोनों के सिर्फ एक्टोडर्म ही भाग लेते हैं। यह एक्टोडर्म का मिलन सिरो-ऐम्निऑटिक सन्धि कहलाता है। ऐम्निऑन एक द्रव से भरी हुई गुहा होती है, जो भ्रूण को द्रव में डुबाये रहती है, इस गुहा को ऐम्निऑटिक गुहा कहते हैं। इस प्रकार कोरिऑन भ्रूण को सूखने से तथा तापमान के उतार-चढ़ावों से बचाता है। बाहरी ऐल्बुमेन से ऐम्निऑटिक द्रव द्वारा जल अवशोषित किया जाता है, यह द्रव भ्रूण को बाहरी धक्के आदि आघातों से बचाता है। कोरिऑन योक के आस-पास बढ़ता है तथा रक्त वाहिकामय बन जाता है।

(ii) ऐलेण्टॉइस (Allantois) - पश्च आँत या क्लोएका के समीप स्प्लैंक्नोप्लूअर (Splanc-honopleure) भ्रूण के निचली तरफ से बढ़ता है तथा एक थैलेनुमा रचना बनाता है, जिसे ऐलेण्टॉइस कहते हैं। इसकी भीतरी परत एण्डोडर्म तथा बाहरी परत स्प्लैंक्निक मीजोडर्म होती है। यह थैला तेजी से बढ़ता है तथा बाह्य भ्रूण सीलोम में प्रवेश कर इसे लगभग पूरा भर देता है। ऐलेण्टॉइस की बाह्य स्प्लैंक्निक मीजोडर्म कोरिऑन की भीतरी कायिक मीजोडर्म से मिलकर एक ऐलेण्टोकोरिऑन का निर्माण करता है। यह ऐल्बुमेन के आस-पास बढ़कर एक एल्बुमेन थैले की रचना करता है। अभी भी ऐलेण्टॉइल भ्रूण पश्च आन्त्र से ऐलेण्टॉइल-वृन्त द्वारा जुड़ा रहता है। स्प्लैंक्नोप्लूअर की रक्त वाहिनियों की मदद से ऐलेण्टॉइल का भी रक्त वाहिकामय हो जाता है। यह ऐलेण्टॉइक धमनियों से भी रक्त प्राप्त करता है। इन्हें नाभि धमनी भी कहा जाता है। ऐलेण्टॉइस भ्रूण के मूत्राशय की तरह कार्य करता है, यह वृक्क प्रदत्त अम्ल के संग्रह में लीन रहता है। ऐलेण्टॉइस कवच झिल्लियों के सम्पर्क में रहकर श्वसन में मदद करता है। भ्रूणीय अवस्था के पश्चात् ऐलेण्टॉइस पूर्ण रूप से अवशोषित कर लिया जाता है।

(iii) योक सैक (Yolk sea) - बहुपीतकी अण्डे में योक इतना ज्यादा हो जाता है कि वह विकासशील भ्रूण के शरीर में सिमट नहीं सकता। अतः एक योक सैक बनता है, जिसमें योक भरा रहता है। भ्रूण बाह्य स्प्लैंक्नोप्लूअर योक के ऊपर की ओर बढ़ता है और एक योक सैक बनाता है। इसमें एक भीतरी परत एण्डोडर्म की और एक बाहरी परत स्प्लैंक्निक मीजोडर्म की होती है। योक सेक एक योक वृन्त की मदद से भ्रूण की मध्य आँत से जुड़ा रहता है, यह काफी रक्त वाहिकामय होता है। योक सैक फैलता है और सम्पूर्ण योक को घेर लेता है। इसकी एण्डोडर्म परत योक का पाचन व अवशोषण करती जाती है और भ्रूण का पोषण करती है। जन्म के समय योक सैक आहारनाल में समा जाता है।

उपर्युक्त चार भ्रूणीय झिल्लियों में ऐम्निऑन तथा कोरिऑन में रक्त वाहिनियाँ नहीं पायी जाती हैं, जबकि ऐलेण्टॉइस और योक सैक में पायी जाती हैं।

Que. 2) विभेदीकरण से आप क्या समझते हैं?
विभेदीकरण के विभिन्न स्तर का वर्णन?
विभेदीकरण पर सूक्ष्म वातावरण के प्रभाव का वर्णन?


भ्रूणीय विकास में कोशिका संरचना एवं कार्य के विभाजन को विभेदीकरण (defferentiation) कहते हैं। यह परिवर्धन का पूर्ण क्रम होता है।

परिवर्धन के अंतर्गत निषेचित अण्डों का विभाजन से बनने वाले कोशिकाओं का ऊतकों एवं अंगों के निर्माण की क्रिया, जिससे प्राणी को व्यवस्थित एवं पूर्ण आकार प्राप्त होता है, विभेदीकरण (defferentiation) कहलाती है। विभेदीकरण की विधि अपरिवर्तनीय (irreversible) होती है। सामान्यतः विभेदीकरण दो तरह का होता है -

(i) अन्तराकोशिकीय विभेदीकरण (Intracelluar differentiation)
(ii) अंतःकोशिकीय विभेदीकरण (Intercellular differentiation)


अन्तराकोशिकीय विभेदीकरण प्रोटोजोआ (Protozoa) तथा शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) एवं अण्डाणुजनन (Dogenesis) में पाया जाता है। अन्तः कोशिकीय विभेदीकरण बहुकोशिकीय प्राणियों एवं पौधों में पाया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों ने अन्तराकोशिकीय विभेदीकरण को अकोशिकीय विभेदीकरण (Non cellular differentiation) अथवा कोशिकीय विभेदीकरण (Cellular differentiation) कहा तथा अन्तः कोशिकीय विभेदीकरण को अद्यः कोशिकीय विभेदीकरण (Super cellular differentiation) कहा। वास्तव में इसका अर्थ होता है एक कोशिका से विभिन्न कोशिकाओं, ऊतकों एवं अंगों में विभेदीकरण वस्तुतः इसके अन्तर्गत भ्रूणीयजनन (Embryogenesis) की सम्पूर्ण विधि आती है, क्योंकि विकासशील भ्रूण की प्रत्येक कौशिका एक-दूसरे से तथा अपने वास्तविक रूप से भिन्न होती है।

कोशिका विभेदन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोशिकाओं के बीच स्थायी अन्तर आ जाता है। सभी उच्च प्राणी (Higher organisms) एक कोशिका या निषेचित अण्डाणु (Fertilized ovum) से विकसित होते हैं, जिससे विभिन्न ऊतक तथा अंगों का निर्माण होता है। दूसरे शब्दों में वह प्रक्रिया, जिसमें एक संरचना रहित अण्डाणु (Ovum) स्वयं पूर्णरूप से विकसित भ्रूण (Embryo) में परिवर्तित हो जाता है, कोशिका विभेदन कहलाता है।

सामान्यतः प्राणियों में मादा बड़े अनिषेचित अण्डे उत्पादित करती है, जिसमें भ्रूण के निर्माण के लिए सभी आवश्यक पदार्थ पाये जाते हैं। विकास की शुरुआत निषेचन से होती है। निषेचन (Fertilization) के लिए शुक्राणु (Sperm) से एक छोटा संघनित नाभिक (Male pronucleus) प्राप्त होता है, जो अण्डाणु के कोशिकाद्रव्य में बड़ा होकर मादा नाभिक (Female pronucleus) से संयुजन (Fusion) हो जाता है। इसके पश्चात् विभाजन प्रारम्भ हो जाता है। निषेचित अण्डे में तीव्र गति से परिवर्तन होते हैं, जिसमें पहले DNA का संश्लेषण तथा उसके पश्चात् विभाजन होता है। इन विभाजनों को विदलन (Cleavage) कहते हैं, क्योंकि सामान्य कोशिका विभाजन के विपरीत इनमें बिना वृद्धि किये कोशिकाद्रव्य विभाजित हो जाता है। इसके पश्चात् कोशिकाएँ एक गेंद के समान संरचना बनाती हैं, जिसे कोरक (Blastula) कहते हैं। इस अवस्था तक ऊतकों का कोई प्रमाण नहीं मिलता। इसके बाद कुछ कोशिकाओं की गति से अन्तर्वलन (Invagination) होता है, जिसे कन्दुकन (Gastrulation) कहते हैं तथा इस अवस्था को कन्दुक (Gastrula) कहते हैं। इसके साथ ही आकृति में कोशिका विभेदन (Cellular differentiation) का प्रथम संकेत दिखने लगता है। इस कार्य में बहुत कम समय लगता है। कोशिकाओं के क्रमशः आकार तथा कार्य में परिवर्तन एवं विशिष्टता की प्रक्रिया को कोशिकीय विभिन्नता (Cellular differentiation) कहते हैं। दक्षिण अफ्रीका में पाये जाने वाले मेढक - जीनोपस लीविस (Xenopus laevis) के टेडपोल में निषेचन के 72 घण्टे के बाद ही कोशिका विभेदन (रक्त, तन्त्रिका, नेत्र पेशियाँ आदि) प्रारम्भ हो जाता है।

सूक्ष्म रूप से कोशिका विभेदन का अर्थ एक ही प्राणी की कोशिकाओं में जीन की सक्रियता में भिन्नता भी होती है। इस कारण कोशिका में विशेष प्रकार की प्रोटीन का संश्लेषण होता है, जैसे-लाल रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन प्लाज्मा कोशिकाओं में प्रतिरक्षी प्रोटीन (Antibody protein) का पाया जाना प्रत्येक यूकैरियोटिक कोशिका उपस्थित जीन का बहुत थोड़ा भाग प्रदर्शित करती है। विभिन्न कोशिकाओं में भिन्न-भिन्न जीन का प्रदर्शन होता है। कुछ जीन सभी कोशिकाओं में समान रूप से सक्रिय रहते हैं। जैसे- राइबोसोम, माइटोकॉण्डिया तथा कोशिका-कला के निर्माण के लिए आवश्यक जीन।

कोशिका-विभेदन के गुण

कोशिका विभेदन के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं -

1. स्थायित्व (Stability) - कोशिका विभेदन का प्रमुख गुण यह है कि कोशिका में एक बार परिवर्तन हो जाने पर वह स्थायी रहता है तथा कई पीढ़ियों तक एक जैसा बना रहता है। जैसे किसी प्राणी में तन्त्रिका कोशिका (Neuron) जीवनपर्यन्त बिना परिवर्तित हुए रहती है। त्वचा की कोशिकाएँ पहले केरोटिन युक्त हो जाती हैं, तत्पश्चात् मृत हो जाती हैं। प्राणियों में कोशिका विभेदन कुछ उद्दीपनों (stimuli) द्वारा प्रेरित होता है। तथा एक बार विभेदन होने के बाद इसमें उद्दीपन के बिना भी स्थायित्व रहता है।

2. निरन्तरता (Persistence) - इस गुण के अनुसार कोशिका विभेदन की क्रिया को विभिन्न उद्दीपनों (Stimuli) द्वारा प्रेरित किया जा सकता है, लेकिन एक बार स्थापित होने के पश्चात् इसको निरन्तरता उद्दीपन की अनुपस्थिति में बनी रहती है। जैसे कि ऊतक संवर्धन के प्रयोगों में यह देखा गया कि न्यूरोब्लास्टोमा कोशिकाएँ (Neuroblastoma cells) जो कि विभेदन के पश्चात् तन्त्रिका कोशिकाओं में परिवर्तित होती हैं, उद्दोपनों की अनुपस्थिति में भी अनिश्चित वृद्धि करती रहती हैं।

विभेदीकरण के प्रकार (Types of Differentiation)

विभेदीकृत (Differentiated) कोशिकाएँ आकार, रूप, संरचना, रासायनिक प्रकृति (Chemical nature) एवं व्यवहार में विशिष्ट लक्षण दर्शाती हैं। इन अन्तरों की उत्पत्ति के आधार पर विभेदोकरण को विधि चार प्रकार में विभाजित की जाती है -

(i) आकारिकीय विभेदीकरण (Morphological differentiation) - परिवर्धन के समय कोशिकाओं के रूप में एवं आकार में जो विभिन्नता चाहिए, उसको आकारिकीय विभेदीकरण (Morphological differentiation) कहते हैं।

(ii) कार्यिकीय विभेदीकरण (Physiological differentiation) - इसके अन्तर्गत कोशिकाओं की कार्यिकी सक्रियता में विभिन्नता आती है।

(iii) व्यावहारिक विभेदीकरण (Behavioural differentiation) - इस विभेदीकरण के अन्तर्गत कुछ कोशिकाओं के व्यवहार में परिवर्तन आता है। जैसे कि तन्त्रिका कोशिकाएँ प्रेरणा को संवाहित करती हैं तथा पेशी कोशिकाएँ संकुचन का कार्य करती हैं।

(iv) जैव-रासायनिक विभेदीकरण (Biochemical differentiation) - यह बहुत ही प्रमुख प्रकार का विभेदीकरण होता है। विदलन एवं गैस्ट्रलेशन को सम्पूर्ण विधि के मूल अण्डे के विभिन्न क्षेत्र एक-दूसरे से जैव-रासायनिक रूप से भिन्न होते हैं। इस जैव रासायनिक भिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं।

विभेदीकरण की उत्पत्ति (Origin of Differentiation)

सभी प्रकार के विभेदीकरण/ विभेदन कोशिका के रासायनिक संघटन में परिवर्तन के कारण होते हैं। सभी प्रकार के रासायनिक परिवर्तन एन्जाइम की क्रिया के द्वारा होते हैं। एन्जाइम के प्रतिरूप (Pattern) में कोई भी परिवर्तन विभेदीकरण को उत्पन्न करता है। वैज्ञानिक स्पीजेलमेन (Spiegelman) ने दर्शाया कि "विभेदोकरण एक विशिष्ट एन्जाइम प्रतिरूप का उत्पादन होता है।" सभी एन्जाइम्स प्रोटीन्स होते हैं, इस कारण प्रोटीन के प्रतिरूप में किसी प्रकार का परिवर्तन भी रासायनिक विभेदन उत्पन्न करेगा। बेलिन्सकी (Balinsky, 1970) ने विभेदन / विभेदीकरण को प्रोटीन के प्रतिरूप का विशिष्ट उत्पादन कहा है। कोशिका में दो प्रकार के प्रोटीन्स पाये जाते हैं-(i) संरचनात्मक प्रोटीन्स (Structural proteins) तथा (ii) एन्जाइम्स को बनाने वाले प्रोटीन्स (Proteins forming enzymes) अधिकांश संरचनात्मक प्रोटीन्स जैसे - कोरेटोन (Keratin), अन्तराकोशिकीय (Intracellular) होते हैं। दूसरे कोशिकाओं से बाहर हो जाते हैं और अन्त:कोशिकीय (Intercellular) स्थानों में संगृहीत हो जाते हैं। कोशिका के सभी संघटकों का संश्लेषण एवं चयापचय (Metabolism) एन्जाइम के प्रभाव के द्वारा होता है। प्रोटीन के संश्लेषण को या एन्जाइम्स के संश्लेषण को नाभिकोय अम्ल (Nucleic acid) नियन्त्रित करता है। अतः कोशिका की मूलभूत संरचना को गुणसूत्र (Chromosomes) के डी. एन. ए. के द्वारा निर्धारित किया जाता है।

विभेदीकरण के स्तर (Levels of Differentiation)

बेरिल (Berrill, 1971) के अनुसार, विभेदीकरण विभेदन तन्त्र जिसमें विभिन्न प्रोटीन्स एवं एन्जाइम्स अन्तर्विष्ट होते हैं, तीन श्रेणियों के अन्तर्गत आते हैं। ये निम्नलिखित हैं -

(अ) सभी कोशिकाओं में मूलभूत संरचनाएँ एवं चयापचयी पथ (Metabolic pathways) पाये जाते हैं।

(ब) द्वितीयक चयापचयी पथ अनेक ऊतकों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं।

(स) एकल विशिष्ट प्रकार की कोशिका में विशिष्टीय कार्य पाया जाता है।


विभेदन के समय तीनों प्रकार की श्रेणी में प्रोटीन की सान्द्रता का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण क्रिया विभिन्न आनुवंशिक / जीन्स को क्रिया की सक्रियता का कुल परिणाम होता है।

रुटियर (Ruttier), बेसेल्फ (Wesself) एवं अन्य वैज्ञानिकों ने, सन् 1967 में विकासशील चूहे एवं विकसित चूहे की अग्नाशय की दोनों बहिःस्रावी (Exocrine) एवं अन्त:लावो (Endocrine) कोशिकाओं पर कार्य किया और चार प्रकार के विभेदीकरण / विभेदन (Differentiation) के स्तरों को ज्ञात किया। ये निम्नलिखित हैं -

(अ) अभिन्नित अवस्था (Undifferentiated state) 
(ब) आदिम / मूल भिन्नित अवस्था (Protodifferentiated state)
(स) भिन्नित अवस्था (Differentiated state)
(द) आरोपण/अधिमिश्रण (Modulation) ।

जबकि विभेदीकरण की संख्या चार होती है, लेकिन परिवर्तन तीन होते हैं। इसको ठीक प्रकार से अग्नाशयी कोशिकाओं के द्वारा दर्शाया जा सकता है -

(i) प्रथम परिवर्तन जो अन्तर्विष्ट होता है, वह पूर्णरूप से अभिन्नित कोशिका का अग्नाशयी लक्षण वाली कोशिका में परिवर्तन है। कुछ विशिष्ट अग्नाशयिक प्रोटीन आसानी से ज्ञात होने वाले स्तर में पाये जाते हैं। ये दर्शाते हैं कि जीन्स (Genes), जो अग्नाशयी विभेदीकरण के लिए आवश्यक होते हैं, वे क्रियाशील होकर विभेदन प्रारम्भ करते हैं। इस विधि के अन्तर्गत आनुवंशिक स्तर पर कुछ प्रमुख परिवर्तन होते हैं, परिणामस्वरूप आदि/मूल भिन्नत अवस्था (Protodifferentiated state) प्रारम्भ होती है।

(ii) दूसरे परिवर्तन के अन्तर्गत आदिम/मूल भिन्नित अवस्था (Protodifferentiated state) का भिन्नित अवस्था (Differentiated state) में परिवर्तित होना है। यह एक सक्रिय अवस्था होती है, जब कोशिकाओं में प्रगुणन (Proliferation) होता है। कुछ समय पश्चात् कोशिकाओं में प्रगुणन रुक जाता है, जो कि विभेदीकरण के लिए तैयार होता है। यह दूसरी नियमन क्रिया राइबोसोमल RNA के संश्लेषण के द्वारा पहचानी जाती है। रुट्टर (Rutter, 1967) के अनुसार, एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम (Endoplasmic reticulum) के बनने, कोशिका गुणन का रुकना और प्रोटीन संश्लेषण में वृद्धि के लिए सामान्य कारण होना चाहिए।

(iii) तृतीय एवं अन्तिम अवस्था में कुछ रूपान्तरण अन्तर्विष्ट होते हैं, जो कि प्रारम्भिक अवस्था से कोशिका को निश्चित रूप से भिन्नित करते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन परिवर्धन की बहुत बाद की अवस्था में होते हैं, आरोपण या अधिमिश्रण (Modulation) कहलाते हैं। यह अन्तिम भिन्नित अवस्था बाह्य कोशिकीय कारकों जैसे - हॉर्मोन्स, मेटाबोलाइट्स (Metabolites) आदि के अनुसार होते हैं।

वेसेल्स (Wessels, 1967) के अनुसार, वृद्धि के लिए ही नहीं बल्कि विभेदन के लिए भी समसूत्रण (Mitosis) प्रमुख नहीं होता है। इस धारणा को समझाने के लिए उसने दो उदाहरण दिये -

(i) वे कोशिकाएँ जो प्रतिरक्षियों (Antibodies) को उत्पन्न करती हैं, जब प्रतिजन (Antigen) के सम्पर्क में आती हैं, प्रतिरक्षी काय के निर्माण के पूर्व विभाजित होती हैं।

(ii) स्तन ग्रन्थि की कोशिकाएँ (Mammary cells) जब हॉर्मोन्स के द्वारा उत्प्रेरित होती हैं, सर्वप्रथम हॉर्मोन्स के उत्प्रेरण के अनुसार केसीन (Casein) के स्रावण के पूर्व कोशिकाएँ विभाजन करती हैं।


Que. 3) कोशिका विभेदीकरण से क्या समझते हैं?
कोशिका विभेदीकरण के विशेषताओ और मापदंडों का वर्णन?

कोशिकीय विभेदीकरण (Cell differentiation)


कोशिका में होने वाली वे परिवर्तन सम्बन्धी प्रक्रियाएँ हैं, जो किसी जीव के भ्रूणीय परिवर्धन की विभिन्न अवस्थाओं में पायी जाती हैं। इन्हीं के फलस्वरूप जीव कोशिका एक विशिष्ट प्रकार की कोशिका में परिवर्तित होकर विभेदीकृत कोशिका बनाती है। विभेदीकरण एककोशिकीय प्रक्रिया न होकर कोशिकाओं की सामूहिक प्रक्रिया है, जो एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं के समूह में घटित होती है और विशेष प्रकार के ऊतक का निर्माण होता है।

कोशिकीय विभेदीकरण की विशेषताएँ

1. स्थायित्व (Stability) - उच्च कोटि की जन्तुओं की यूकैरियोटिक कोशिकाओं में विभेदीकरण की अवस्था एक बार स्थापित होने के बाद सदैव स्थायी रहता है और यह अवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थायी रहती है।

2. निरन्तरण ( Persistence) - इसमें कोशिकीय विभेदीकरण की प्रक्रिया को विभिन्न प्रकार के उद्दीपनों के द्वारा प्रेरित किया जा सकता है, जो एक स्थापित होने के बाद कोशिका में उद्दीपनों की उपस्थिति में भी बने रहते हैं।

कोशिकीय विभेदीकरण के मापदण्ड (Criteria of Cellular differentiation)

ग्रोब्सटीन (Grobstein, 1959) द्वारा कोशिकीय विभेदीकरण के निम्नलिखित मापदण्ड निर्धारित किये गये हैं -

1. कोशिकीय विभेदीकरण के आकारिकीय मापदण्ड (Morphological criteria of Cellular differentiation) - प्रमुख आकारिकीय परिवर्तन जो किसी निश्चित स्थान और निश्चित समय पर किसी कोशिकाओं के समूह में घटित होते हैं।

2. कोशिकीय विभेदीकरण के कार्यात्मक मापदण्ड (Functional criteria of Cellular differ entiation)कोशिकाओं के व्यवहार एवं कार्यों में होने वाले विशेष प्रकार के परिवर्तन जन्तु शरीर में विशेष ऊतक के कारण होते हैं। जैसे-पेशी कोशिकाओं में संकुचनशीलता और तंत्रिका कोशिकाओं में आवेगों को संचारित करने की क्षमता।

3. कोशिकीय विभेदीकरण की जीव-रासायनिक या आण्विक मापदण्ड (Biochemical or Molecular Criteria of Cellular differentiation) - 
इसमें जन्तु शरीर की ऊतक कोशिकाएँ रूपान्तरित होकर विशेष प्रकार की संश्लेषणात्मक क्रियाएँ करती हैं। जैसे - म्यूकस कोशिकाएँ म्यूकस का संश्लेषण, श्वेत रुधिर कणिकाएं एण्टिबॉडीज का संश्लेषण करती हैं।