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विषाणुओं का आर्थिक महत्व | Economic importance of Viruses

विषाणुओं के आर्थिक महत्व

विषाणुओं के आर्थिक महत्व का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जाता है -

(A) लाभदायक पक्ष (Useful aspects)
(B) हानिकारक पक्ष (Harmful aspects)


(A) लाभदायक पक्ष (Useful Aspects)

1. आण्विक जीव विज्ञान के अध्ययन में (In the study of molecular biology) - आण्विक जीव विज्ञान के अंतर्गत विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे - DNA द्विगुणन, अनुलेखन (Transcription), RNA प्रोसेसिंग, अनुवादन, प्रोटीन का कोशिका के अंदर आवागमन एवं शरीर प्रतिरक्षा विज्ञान में विश्व में अनेक प्रयोगशालाओं में विषाणुओं का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है।

2. एण्टीबायोटिक्स के विकल्प के रूप में (As an alternative to antibiotics) - रोगकारक जीवाणुओं में विभिन्न एण्टीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी क्षमता (Resistance) का विकास समय के अनुसार होता रहता है। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में जीवाणुओं (रोगकारक) का भक्षण करने वाले विषाणुओं का उपयोग जीवाणुजनित रोगों के उपचार में किया जा सकता है।

3. प्रोटीन का उत्पादन (Production of proteins) - समस्त विषाणुओं में पाया जाने वाला आवरण अथवा कैप्सिड (Capsid) हमेशा प्रोटीन का बना होता है। ऐसे प्रोटीन्स का उपयोग एण्टीजन अथवा एण्टीबॉडी के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए कई विषाणुओं, जैसे HIV, प्रोवाइरस, रूबेला वाइरस आदि में आनुवंशिक पदार्थ द्वारा कोडित प्रोटीन एण्टीजन के रूप में कार्य करते हैं। कम प्रभावशाली अथवा अक्रियाशील एण्टीजन का उपयोग वैक्सीनेशन (Vaccination) में होता है।

4. नैनोटेक्नोलॉजी में (In nanotechnology) - विषाणु वास्तव में रासायनिक दीर्घ अणु होते हैं। इनमें कोशिकीय संरचना का अभाव होता है। अतः विषाणुओं को नैनोपार्टिकल (Nanoparticle) भी माना जाता है। अतिविशिष्ट संरचना, आकार एवं रासायनिक प्रकृति के कारण इनका उपयोग नैनोस्केल पर पदार्थ को संगठित करने में होता है।

5. जैविक नियंत्रण (Biological control) - जीवाणुभोजी विषाणुओं के द्वारा हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट किया जा सकता है अर्थात् विषाणुओं का उपयोग रासायनिक जहरीले प्रदूषणकारियों की जगह पर जैव नियंत्रण (Biological control) के लिए किया जा सकता है।

उदाहरणस्वरूप -

(i) गंगा के जल में वर्षों से मृत शरीर तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों का विसर्जन किया जाता है लेकिन जीवाणुभोजियों की उपस्थिति के कारण हो यह जल खराब नहीं हो पाता और वर्षों तक बोतलों इत्यादि में सुरक्षित पड़ा रहता है।

(ii) पौधों में होने वाले जीवाणुजनित एवं कोटों द्वारा होने वाले रोगों के उपचार में उपयोगी होते हैं।

6. रोगों का उपचार (Treatment of diseases) - जीवाणुभोजियों का उपयोग रोगजनक जीवाणुओं (Pathogenic bacteria) के द्वारा उत्पन्न रोगों, जैसे - न्यूमोनिया (Pneumonia). टी.बी. (Tuberculosis), कोह (Lepros) आदि के उपचार में किया जाता है। ये विषाणु जीवाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देते हैं।

7. प्रदूषित जल के उपचार में (In treatment of polluted water) - जीवाणुभोजी जीवाणुओं एवं अन्य प्रकार के सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रदूषित जल के उपचार में उपयोगी होते हैं।

(B) हानिकारक पक्ष (Harmful Aspects)

1. रोगकारक विषाणु (Pathogenic viruses) - अनेक विषाणु रोगकारक प्रकृति के होते हैं, जो मनुष्य, जन्तु एवं पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं -

(i) मानव रोग (Human diseases) - मनुष्य में रोग उत्पन्न करने वाले कुछ प्रमुख विषाणु निम्नानुसार है- इन्फ्लुएन्जा वाइरस, मम्प्स वाइरस, रूबेला वाइरस, पोलियोमाइलिटिस वाइरस, हिपेटाइटिस वाइरस, हरपीज वाइरस, डेंगू वाइरस, रेबीज वाइरस, आदि।

(ii) जन्तु रोग (Animal disease) – फुट एण्ड माउच रोग (पालतू पशुओं में), रेबीज (कुत्ते में) पॉक्स (गाय में) आदि जन्तु रोग विषाणुजनित होते हैं।

(iii) पादप रोग (Plant diseases) - कई पादप रोग विषाणुओं के संक्रमण के कारण होते हैं। जैसे तम्बाकू का मोजैक, पोटैटो मोजैक, टमाटर मोजैक, टमाटर का पीत-पर्ण मुड़न, कुकुम्बर मोजैक आदि विषाणुओं द्वारा होने वाले पादप रोग हैं।

2. भविष्य में खतरा (Dangers in future) - विषाणुओं में उत्परिवर्तन को दर अति तीव्र होती है। अत: उत्परिवर्तन (Mutation) के कारण अत्यधिक क्षमता वाले रोग उत्पादक विषाणुओं के उत्पन्न होने का खतरा हमेशा बना रहता है।

3. जैविक युद्ध (Biological war) - कई मौके ऐसे आते हैं जब विश्व के विभिन्न देशों के बीच आपसी तनाव भिन्न-भिन्न कारणों से बढ़ जाता है, ऐसी स्थिति में एक देश के द्वारा दूसरे देश पर रोगकारक विषाणुओं से हवा, जल अथवा अन्य माध्यम से हमला करने का डर बना रहता है। ऐसा माना जाता है कि कई देशों के पास जैविक बम मौजूद हैं।