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स्पर्मियोजेनेसिस पर टिप्पणी | Comments on spermiogenesis in Hindi

स्पर्मियोजेनेसिस (Spermiogenesis)

इस फेज के अन्तर्गत प्रत्येक अचल एवं गोल स्पर्मेटिड कोशिका एक चल व धागेनुमा शुक्राणु (Sperm) में परिवर्तित हो जाती है। इस विधि को स्पर्मेटोलिओसिस या स्पर्मियोजेनेसिस कहते हैं। स्पर्मियोजेनेसिस के अन्तर्गत शुक्राणु बनने में स्पर्मेटिड कोशिका में जो परिवर्तन होते हैं, उनको निम्नांकित भागों में बाँटा जा सकता -

(1) न्यूक्लियस में परिवर्तन (Changes in Nucleus) - प्रत्येक स्पर्मेटिड कोशिका का न्यूक्लियस काफी बड़ा होता है। किन्तु स्पर्मियोजेनेसिस के अन्तर्गत इसके न्यूक्लियस से जल की काफी मात्रा निकलकर साइटोप्लाज्म में मिल जाती है। तथा इसके साथ ही न्यूक्लियस में RNA की मात्रा बहुत कम हो जाती है और DNA काफी गाढ़ा (Concentrated) हो जाता है। इस प्रकार स्पर्मेटिड का न्यूक्लियस काफी छोटा होकर शुक्राणु (Sperm) के हैड (Head) का अधिकांश भाग बनाता है।

(2) ऐक्रोसोम का निर्माण (Formation of Acrosome) - ऐक्रोसोम शुक्राणु के अग्रभाग में न्यूक्लियस के सामने एक लम्बे उभार के रूप में होता है। ऐक्रोसोम का निर्माण स्पर्मेटिड के गॉल्जीकाय (Golgibody) के द्वारा होता है। शुक्राणु के सिर का अगला भाग नुकीला होता है, इसमें प्रोटिओलिटिक एन्जाइम पाये जाते हैं जो निषेचन के समय अण्डाणु को भेदने में सहायक होते हैं।

(3) सेण्ट्रिओल (Centriole) - स्पर्मेटिड के दोनों सेण्ट्रिओल न्यूक्लियस के पीछे एक के बाद एक व्यवस्थित हो जाते हैं। इनमें से अगले सेन्ट्रीओल को Proximal centriole तथा पिछले सेन्ट्रीओल को Distal centriole कहते हैं।

(4) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) - माइटोकॉण्ड्रिया स्पर्मेटिड के विभिन्न भागों से शुक्राणु के मध्य में अक्षीय तन्तुओं (Axial filament) के आधार भाग तथा डिस्टल सेण्ट्रिओल (Distal centriole) के चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं। ये माइटोकॉण्ड्रिया धीरे-धीरे आपस में समेकित होने लगते हैं और अन्त में अक्षीय तन्तु (Axial filament) के प्रत्येक ओर एक-एक संकुचित काय का रूप ले लेते हैं। बाद में ये तन्तु (Filament) के चारों ओर सर्पिल (Spiral) रूप में ऐंठ जाते हैं।