वाइरूसॉइड्स (Virusoids)
डॉ. जे. डब्ल्यू. रेन्डल्स (Dr. J. W. Randies) एवं सहयोगियों द्वारा सन् 1981 में की गयी। ये छोटे गोलाकार एकसूत्री RNA के अणु होते हैं, जो वाइरॉइड्स के समान होते हैं। परन्तु ये किसी वाइरस के स्वयं के RNA अथवा जीनोम नहीं होते। किसी भी प्रोटीन को कोडित करने हेतु (Genes) वाइरूसॉइड (RNA) पर नहीं पाये जाते। ये हमेशा किसी विषाणु के साथ ही पाये जाते हैं, जिसे हेल्पर विषाणु (Helper virus) कहा जाता है।वाइरूसॉइड्स एक अन्य प्रकार के रोगकारक RNA अणु हैं जो कई फसलों में रोग उत्पन्न करते हैं। वास्तव में ये विषाणु अथवा वाइरस के भाग नहीं होते, परन्तु विषाणुओं के साथ ही पाये जाते हैं। यदि किसी पौधे का संक्रमण वाइरूसॉइड्स द्वारा होता है तो इसका तात्पर्य है कि उसकी कोशिकाओं में किसी पादप विषाणु का संक्रमण हुआ है जिसके साथ वाइरूसॉइड RNA भी पोषक कोशिका के अंदर प्रविष्ट हुआ वाइरूसॉइड्स RNA को धारण करने वाले विषाणुओं को सहायक विषाणु (Helper virus) कहते हैं। अतः पोषक पादय कोशिका में संक्रमण वाइरूसॉइड्स एवं वाइरस दोनों के कारण साथ-साथ होता है। ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक जात पाँच वाइरूसॉइड्स के सभी सहायक विषाणु, विषाणुओं के सोबेमो वाइरस (Sohemo viruses) कुल के अंतर्गत आते हैं।
सहायक विषाणु का एक अच्छा उदाहरण 'सबटेरेनियन क्लोवर मोटल वाइरस' (Sub-terranean clover mottle virus) है, जिसके प्रोटीन आवरण (Capsid) के अन्दर एक वाइरूसॉइड पाया जाता है।
वाइरूसॉइड्स का द्विगुणन (Replication of Virusoids)
यदि किसी पादप कोशिका का संक्रमण हेल्पर वाइरस द्वारा होता है तो सर्वप्रथम उसके कैप्सिड के अंदर स्थित वाइरूसॉइड मुक्त हो जाते हैं। ये पोषक कोशिका के कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं। यहाँ ये राइबोजाइम (Ribozyme) की भाँति कार्य करते हैं तथा स्वयं के द्विगुणन में एन्जाइम की भाँति कार्य करते हैं। हेल्पर विषाणुओं का द्विगुणन स्वतंत्र प्रक्रिया द्वारा होता है। अर्थात् पोषक के अन्दर हेल्पर विषाणु एवं वाइरूसॉइड्स RNA का द्विगुणन एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होता बल्कि ये स्वतंत्र एवं पृथक् रूप से पादप कोशिका के अंदर संपन्न होते हैं।वाइरूसॉइड का जीनोम (Genome) अत्यन्त छोटा होता है एवं केवल 220-338 राइबोन्यूक्लियोटाइड्स का बना होता है। यह किसी भी प्रोटीन अणु को कोडित नहीं करता बल्कि केवल टेम्प्लेट की भाँति कार्य करता है जिस पर नये वाइरूसॉइड का निर्माण होता है। इसके द्विगुणन के लिए RNA डिपेन्डेन्ट RNA पॉलीमरेज (RNA. dependent RNA polymerase) की आवश्यकता होती है। द्विगुणन के पश्चात् हेल्पर वाइरस नए संश्लेषित वाइरूसॉइड्स को अपने कैप्सिड के अंदर समाहित कर लेते हैं।
वाइरूसॉइड्स का संचरण (Transmission of virusoids) - वाइरूसॉइड्स का संचरण मुख्य रूप से हेल्पर विषाणुओं के साथ-साथ होता है। परन्तु कभी-कभी ये मानव एवं कीट संपर्क, बीज तथा वर्धी जनन अंगों द्वारा भी संचरित होते हैं।
वाइरूसॉइड्स एवं हेल्पर विषाणु एवं उनके द्वारा होने वाले पादप रोग के कुछ उदाहरण (Some Examples of Virusoids and Helper Viruses and Plant Diseases Caused by Them)
1. बार्ली येलो ड्वार्फ वाइरस सेटेलाइट RNA (वाइरूसॉइड) एवं हेल्पर लूलेवाइरस (Barley yellow dwarf virus satellite RNA (Virusoid) and helper Lulevirus) ।2. टोबैको रिंग स्पॉट वाइरस सेटेलाइट RNA (वाइरूसॉइड) एवं हेल्पर नेपोवाइरस (Tobacco ring spot virus satellite RNA) (Virusoid) and helper Nepovirus)।
मोटे तौर पर वाइरूसॉइड्स सेटेलाइट RNAs नामक रोगकारक समूह के अंतर्गत आते हैं। सेटेलाइट RNA भी वाइरूसॉइड्स के समान होते हैं। परन्तु ये जन्तु कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं तथा प्रोटीन अणुओं को भी कोडित करते हैं। दोनों को पोषक पादप पर संक्रमण के लिए हेल्पर वाइरस की आवश्यकता होती है।