सर्पों की दंशन विधि (Biting mechanism of Snakes)
विषैले
सर्पों की स्कल (Skull)
तथा
जबड़े की हड्डियाँ जैसे पैलेटाइन (Palatine) टेरीग्वॉइड (Pterygoid),
स्क्वैमोसल
(Squamosal),
क्वाड्रेट
(Quadrate),
ट्रान्सवर्स
एक्टोटेरीग्वाइड (Ectopterygoid)
तथा
मैक्सिलरी (Maxillary)
हड्डियाँ
आपस में गतिशील सन्धियों (movable joints) से
जुड़ी रहती हैं। इसी कारण भोजन को निगलने अथवा बाइटिंग की प्रक्रिया में इन
हड्डियों की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है। प्रीमैक्सिला हड्डियाँ भली-भाँति
विकसित नहीं होतीं या आपस में फ्यूज्ड होती हैं। छोटे आकार की मैक्सिलरी हड्डियों
पर विषदंत (fang) उपस्थित होते हैं, किन्तु विषहीन सर्पों में विषदंत
नहीं पाये जाते हैं। पैलेटाइन तथा टेरीग्वाइड हड्डियों पर अन्य दन्त पाये जाते
हैं। निचले जबड़े के रेमाई (rami) आगे की
ओर एक-दूसरे से फाइब्रस ऊतक (fibrous symphysis) के
द्वारा जुड़े होते हैं। इसी कारण, इन दोनों रैमाई का मूवमेण्ट (movement) स्वतन्त्र रूप से हो सकता है।
विषैले
सर्प का मुख जब बन्द होता है, तो उस समय उसके विषदन्त मुड़े हुए रहते हैं तथा एक
फाइब्रस खोल में छिपे रहते हैं, किन्तु जैसे ही शिकार उसके मुख के समीप आता है
मैसिटर अथवा डाइगैस्ट्रिक मांसपेशियों में संकुचन के फलस्वरूप निचला जबड़ा नीचे की
ओर चलायमान होता है, और मुख इस प्रकार खुलने लगता है।
मुख के
खुलने के साथ ही क्वाड्रेट हड्डी जिसका सम्बन्ध निचले जबड़े से होता है, घूम जाती
है और के टेरीग्वाइड, पैलेटाइन तथा ट्रान्सवर्स बोन को आगे की ओर धकेल देती है।
ट्रान्सवर्स बोन के आगे खिसकने के कारण उसके अगले सिरे से सम्बद्ध मैक्सिला बोन भी
रोटेट हो जाती है, जिसके फलस्वरूप विषदंत (Fang) सीधे होकर आगे की ओर वर्टिकल अवस्था में आ जाते हैं। इसी अवस्था में सर्प
शिकार पर आक्रमण कर देता है।
जैसे
ही शिकार सर्प के मुख में आता है, एन्टीरियर टेम्पोरेलिस मसल (Anterior temporalis
muscle) संकुचित
होती है और निचले जबड़े को ऊपर की ओर खींचती है। मुख बन्द होते ही इस क्रिया में
विष-दन्त शिकार के शरीर में धँसते जाते हैं। विष ग्रन्थियों के चारों ओर स्थित
कान्सट्रिक्टर मसल्स (Con strictor muscles) में इसी समय संकुचन होने के कारण विष ग्रन्थियों पर दबाव पड़ता है तथा विष,
विष-दन्तों की विष नलिकाओं से होता हुआ शिकार के शरीर में पहुँच जाता है।
मुख
बन्द होने की इस प्रक्रिया में मैक्सिला बोन पर दबाव पड़ता है, जो वापस अपनी
प्रारम्भिक अवस्था में आती है, साथ-साथ ट्रान्सवर्स बोन को पीछे धकेल देती है
अर्थात् सारी गतियाँ उल्टी हो जाती हैं और स्कल की सभी हड्डियाँ अपनी प्रारम्भिक
अवस्था में आ जाती हैं। शिकार के शरीर में धँसे हुए विषदन्तों को वापस खींचकर
उन्हें प्रारम्भिक अवस्था में पहुँचा दिया जाता है।