मछलियों की त्वचा एवं शल्क (Skin and Scales of Fishes)

मछलियों में त्वचा शरीर के बाहर बाह्य आवरण का निर्माण करता है तथा अनेक महत्वपूर्ण कार्यो में भी उपयोगी होता है | शरीर की सुरक्षा के अतिरिक्त त्वचा श्वसन, उत्सर्जन एवं ऑस्मो-रेगुलेशन का भी कार्य करता है | त्वचा की व्युत्पत्तिया शरीर की चयापचय गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है | मछलियों में त्वचा से कुछ महत्वपूर्ण अंगो की व्युत्पत्तिया होती है, जैसे - इलेक्ट्रिक अंग, विष ग्रंथिया, प्रकाश उद्दीपन अंग आदि |

त्वचा की संरचना (Structure of Integument)

मछलियों की त्वचा में डो स्टार होते है | बाह्य स्तर को एपिडर्मिस तथा भीतरी स्तर को डर्मिस कहते है | एपिडर्मिस अनेक स्तरीय संरचना होती है, जिसकी उत्पत्ति एक्टोडर्म से होती है | ये कोशिकाए चपटी होती है | इन स्तरों में सबसे भीतरी स्तर को स्ट्रेटम जर्मिनेटिवम कहते है, जो कि स्तम्भाकार कोशिकाओं से बनी होती है | ये कोशिकाए निरंतर विभाजित होती रहती है | सबसे उपरी स्तर को स्ट्रेटम कोर्नियम कहते है, जो कि मृत कोशिकाओं का स्तर होता है |

त्वचा की भीतरी स्तर डर्मिस की उत्पत्ति मीजोडर्म से होती है | इस स्तर में संयोजी उत्तक, रक्त नलिकाए, तंत्रिकाए एवं संवेदी अंग पाए जाते है |डर्मिस का सबसे उपरी स्तर को स्ट्रेटम स्पोंजीओसम तथा निचली स्तर को स्ट्रेटम कोम्पेक्टम कहते है | एपिडर्मिस के स्तर में नलिका या फ्लास्क के आकार के अनेक म्यूकस कोशिकाए स्थित होती है |, जो कि कभी-कभी डर्मिस तक फैले रहते है | इन कोशिकाओं से स्त्रावित होने वाला म्यूकस शरीर के बाह्य सतह पर फैला रहता है, जिससे शरीर चिकना एवं फिसलनदार बना रहता है | 

शल्क (Scales)

अधिकाँश मछलियों की त्वचा बाह्य कंकाल से ढंकी रहती है, जिन्हें शल्क कहते है | शल्को को विकास के आधार पर दो वर्गो में विभाजित किया जा सकता है -

1) ऐसे शल्क जो कि एपिडर्मिस एवं डर्मिस दोनों ही स्तरों के स्त्राव से बनते है, जैसे - इलैस्मोब्रैंक के प्लेकोइड स्केल्स |

2) ऐसे शल्क जो कि केवल डर्मिस से विकसित होते है, इन्हें नाव प्लेकोइड शल्क भी कहते है, जैसे - टिलिओस्ट के स्केल्स |

संरचनात्मक दृष्टि से शल्को को निम्नलिखित प्रकारों से विभाजित किया गया है -

1) कोस्मोइड शल्क (Cosmoid Scale)
2) गेनोइड या रोम्बोइड शल्क (Ganoid or Rhomboid Scales)
3) प्लेकोइड शल्क (Placoid Scales)
4) साइक्लोइड शल्क (Cycloid Scales)
5) टीनोइड शल्क (Ctenoid Scales)

1) कोस्मोइड शल्क (Cosmoid Scale)

इस प्रकार के शल्क विलुप्त क्राइसोप्टेरिजी एवं डिप्नोई में पाये जाते हैं । इन शल्कों के बाह्य सतह इनेमल की तरह पदार्थ के पतले विट्रोडेन्टीन से बनते हैं। मध्य स्तर कड़े अकोशिकीय, डेन्टीन जैसे पदार्थ कॉस्मीन (Cosmine) का बना होता है। इस सतह में कक्षों एवं नलिकाओं की शाखाएँ फैली रहती हैं। आन्तरिक संवहनीय, हड्डी जैसे पदार्थ, आइसोपेडीन (Isopedine) का बना होता है। यह शल्क वर्तमान में मछलियों में नहीं पाये जाते हैं।

2) गेनॉइड शल्क (Ganoid scales)

इस प्रकार के शल्क आदिम ऐक्टिनोप्टेरिजियन (Primitive actinopterygians) मछलियों में पाये जाते हैं। ये शल्क भारी होते हैं। इनका बाह्य स्तर कड़े अकार्बनिक, एनेमल, जैसे पदार्थ से बनता है, जिसे गेनॉइन (Ganoine) कहते हैं। मध्य स्तर कॉस्मीन (Cosmine) का बना होता है तथा इस स्तर में अनेक शाखान्वित नलिकाएँ स्थित होती हैं। सबसे भीतरी स्तर अत्यधिक मोटा और लेमिलर अस्थि से बना होता है, जिसे आइसोपेडीन (Isopedine) कहते हैं। ये वास्तव में रॉम्बॉइड आकार के होते हैं तथा कील एवं साकेट सन्धि द्वारा गति करते हैं। इस प्रकार के शल्क कॉण्ड्रोस्टियन एवं होलोस्टियन मछलियों में अच्छे विकसित होते हैं।

3) प्लेकॉइड शल्क (Placoid scales)

 ये सूक्ष्म डर्मल डेंटिकल्स हैं, जो दाँतों के रूप में स्कोलियोडॉन की डर्मिस में धँसे रहते हैं और तिरछी पंक्तियों में विन्यस्त रहते हैं। ये शार्क मछली का बाह्य कंकाल बनाते हैं। इसमें अग्रलिखित भाग होते हैं |

A) बेसल प्लेट (Basal Plate)

ये रोम्बॉइडल (Rhomboidal) अथवा हीरे के आकार की होती है और सीमेण्ट जैसे पदार्थ की बनी होती हैं। ये डर्मिस में धँसी रहती हैं तथा उससे संयोजी ऊतक के मजबूत तन्तुओं द्वारा जुड़ी रहती हैं। बेसल प्लेट में एक छोटा छिद्र होता है, जिससे यह काँटे की पल्प कैविटी से जुड़ी रहती है। जीवित अवस्था में रक्त वाहिका तन्त्रिका तन्तु (Nerve fibres) तथा लिम्फ चैनल्स आदि इस छिद्र के द्वारा पल्प कैविटी में प्रवेश करते हैं। पल्प कैविटी में अनेक ओ डोण्टोब्लास्ट कोशिकाएँ, संयोजी ऊतक तन्तु, तन्त्रिका तन्तु, रक्त वाहिकाएँ आदि पाये जाते हैं, जो सामूहिक रूप से पल्प का निर्माण करते हैं।

B) स्पाइन (Spine)

यह चपटी पीछे की ओर झुकी ट्राइडेन्ट (Trident) संरचना है, जो त्वचा के बाहर निकली रहती है और उसे खुरदरा बनाती है। यह कठोर नलिका युक्त डेन्टाइन (Dentine) का बना होता है।

परिवर्धन (Development of Placoid Scales)

इसके परिवर्धन को शुरुआत डर्मिस की मोजेनकाइमल कोशिका के एपिडर्मिस के नीचे एकत्र होने से होती है। ये कोशिकाएँ एकत्र होकर ऊपर की ओर उठती हैं और डर्मल पैपिलर बनाती हैं। बढ़ते हुए पैपिला का पोषण रक्त वाहिकाओं (Blood vessels) द्वारा किया जाता है, जिससे इसका तेजी से विकास होता है और यह त्वचा की सतह पर एक उभार के रूप में निकल आता है। स्ट्रेटम जर्मिनेटियम इस पैपिला को ऊपर से ढके रहती हैं। स्ट्रेटम जर्मिनेटिवन की सतह दोहरा स्तर बनाती है, जिसे इनेमल ऑर्गन (Enamel organ) कहते हैं। इसको आन्तरिक सतह ऐमीलोप्लास्ट (Ameloplast) कहलाती है, जो इनेमल या विट्रोडेन्टाइन (Vitrodentine) कहलाती है। पैपिला की वे मीजेनकाइमल कोशिकाएँ जो ऐम लोब्लास्ट कोशिकाओं को विपरीत दिशा में स्थित होती हैं, डेन्टाइन खावण करना प्रारम्भ कर देती हैं। ये एक के रूपर एक दो पर्त बनाती हैं। मोजेनकाइमल कोशिकाएँ जो शल्क के पदार्थ का स्त्रावण करती हैं स्क्लीरोप्लास्ट (scleroplast) या ओडोन्टोब्लास्ट्स कहलाती है। पैपिला का मध्य भाग मुलायम तथा वाहिकायुक्त (Vascularised) होता है, जो पल्प केविटी कहलाता है, जिसमें रक्त वाहिकाएँ, ओडोन्टोब्लास्ट कोशिकाएँ तन्त्रिका तन्तु और संयोजी ऊतक आदि रहता है। स्पाइन के दाँत (Dentine) में अनेक महीन नलिकाएँ पायो जाती हैं, जिन्हें केनालीक्यूली (Canalicule) कहते हैं। पैपिला वृद्धि करता है तथा ट्राइडेंट काँटे जैसा होता है, पैपिला के आधार पर स्थित डर्मिस को मीजेनकाइम कोशिकाएँ बेसल प्लेट का निर्माण करती हैं। पूरा निर्माण हो जाने के बाद काँटे इनेमल आर्गन को धक्का देकर एपिडर्मिस को फाड़कर बाहर निकल आता है। अब डर्मिस में पल्प कैविटी की ओपनिंग सेंकरी हो जाती है और शल्क की वृद्धि दर रुक जाती है।

पुउने और टूटे-फूटे शल्कों के स्थान पर नये शल्क बनते रहते हैं। इस प्रकार शल्क मछलियों को सुरक्षा प्रदान करता है।

4) साइक्लॉइड शल्क (Cycloid scales)

यह शल्क गोल, केन्द्रीय भाग में मोटे तथा किनारे के भाग में पतले होते हैं इन शल्कों में निचली स्तर तंतु संयोजी ऊतकों (Fibrous connective tissue) से बनी होती है, जबकि ऊपरी स्तर अस्थि समान आइसोपेडीन (Isopedine) की बनी होती है, जिससे डेन्टीन बनती है। इन शल्कों में संकेन्द्रित वृद्धि रेखाएँ (Concentric growth lines) होती हैं। ये वृद्धि रेखाएँ मछलियों की उम्र को बताती हैं। यह शल्क एक-दूसरे को विकर्णत: अतिव्याप्त करते हुए डर्मिस में धँसे होते हैं। इन शल्कों में एक खड़ी नलिका, पार्श्व रेखा (Lateral line) से आती है और बाहर की ओर खुलती है। यह शल्क अस्थिमय मछलियों (Bony fishes) में पाये जाते हैं।

5) टीनॉइड शल्क (Ctenoid Scales)

यह शल्क केन्द्र में मोटे और बाहरी किनारों पर पतले होते हैं। इन शल्कों के ऊपर आइसोपेडीन (Isopedine) की पतली स्तर होती है। इन शल्कों में भी संकेन्द्रिय वृद्धि रेखाएँ होती हैं, परन्तु इन शल्कों के मुक्त पश्च भाग में छोटे-छोटे दाँत या टिनी (Cteni) पाये जाते हैं। अग्र भाग अन्दर की ओर दबा हुआ और लहरदार सीमांत होता है। यह सामान्यत: अस्थिमय मछलियों (Bony fishes) में पाया जाता है।