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स्तनियो में जरायु पर टिप्पणी | Comment on Placenta in Mammals

स्तनियों में जरायु (Placentation in Mammals)

विविपेरी जन्तु में जरायु प्रक्रिया पायी जाती है। यह बच्चे के परिवर्धन के समय उच्च स्तनियों में बनने वाली एक रचना है जो गर्भ में बच्चे व माँ के बीच पुल का कार्य करती है। अतः जरायु वह अंग है जो माता तथा बच्चे दोनों में बनता है तथा माता के अंग से पोषक पदार्थ बच्चे तक ले जाने का कार्य करता है।

जरायु का प्रकार (Types of Placenta)

(1) कोरिओ-विटेलाइन जरायु - कुछ स्तनियों में एलेण्टॉइस कुछ छोटा रह जाता है तथा कोरिऑन के संपर्क में नहीं रह पाता जबकि योक सैक काफी बड़ा हो जाता है तथा कोरिऑन से मिल जाता है। इस प्रकार कोरिऑन अपना रक्त प्रदाय विटेलाइन कोशिकाओं से प्राप्त करता है, जो यौक सेक से उत्पन्न हुई होती है। इस प्रकार के जरायु को योक सेक जरायु या कोरिओ विटेलाइन जरायु कहते हैं। उदाहरण - मासूपियल (कंगारू)

(2) कोरिओ - ऐलेण्टोइक जरायु - यह आमतौर पर यूथीरियन स्तनियों में पाया जाता है, जिनमें योक - सैक अवशेष के रूप में होता है और ऐलेण्टोइस पूर्ण विकसित और कोरिऑन के साथ मिलकर जरायु बनाता है। इसमें जोड़ों के समान विलाई पाये जाते हैं जो कोरिऑन से निकल कर पास माता के ऊतक में जाते हैं। 

ये तीन प्रकार के हो सकते हैं -

(i) नॉन डेसिडुएट जरायु
(ii) डेसिडुएट जरायु
(iii) काण्ट्राडेसिडुएट जरायु


जरायु का विलाई के वितरण के अनुसार वर्गीकरण (Classification of Placenta according to distribution of Villi)

(1) डिफ्यूज जरायु - इसमें पूरी कोरिऑनिक विलाई फैले रहते हैं। उदाहरण- सूअर, घोड़ा।

(2) कॉर्टिलिडनरी - इसमें विलाई गुच्छों में पायी जाती है। उदाहरण- भेड़, गाय।

(3) जोनरी - यह मांसाहारी स्तनधारियों में पाया जाता है। उदाहरण- कुत्ते, बिल्ली।

(4) डिस्कॉइडल - इसके विलाई डिस्क के तरह होते हैं, इसलिए इसे डिस्कॉइडल जरायु कहते हैं। उदाहरण- चूहा, मनुष्य।

जरायु का हिस्टोलॉजी के अनुसार वर्गीकरण (Classification of Placenta According to histology)

(1) एपिथिलियो-कोरियल जरायु - यह मासूंपियल तथा उँगुलेट प्राणियों में पाया जाता है। जैसे कंगारू, घोड़ा।

(2) सिनडेस्मो-कोरियल जरायु - यह रुमिनेण्ट उँगुलेट प्राणियों में पाया जाता है। जैसे-भेड़, गाय।

(3) एण्डोथिलियो-कोरियल जरायु - यह मांसाहारी जन्तुओं में मिलता है।

(4) हीमो-कोरियल जरायु - यह प्रायमेट्स वर्ग के स्तनियों में मिलता है।

(5) हीमो-एण्डोथीलियल जरायु - यह रोडेण्ट स्तनियो जैसे-चूहे, खरगोश आदि में पाया जाता हैं।

जरायु के कार्य (Function of Placenta)

(1) यह पोषण के रूप में कार्य करता है। मातृक रक्त वाहिनियों द्वारा पोषण पदार्थ भ्रूण के रक्त में पहुँचाते

(2) यह श्वसन का कार्य करता है। प्लेसेन्टा भ्रूण एवं मादा के बीच O, एवं CO2 के आदान-प्रदान में सहायक होता है।

(3) यह उत्सर्जन में भी मदद करता है। वायापत्तय क्रिया के द्वारा जो नाइट्रोजन युक्त व्यर्थ पदार्थ उत्पन्न होता है। वह प्लेसेन्टा द्वारा दूर किया जाता है।

(4) यह प्रतिरक्षण का कार्य भी करता है। इसके द्वारा भ्रूण के कोमल ऊतकों का रक्षण होता है एवं मादा के रक्त में एण्टीबॉडीज विकसित होती है, जो भ्रूण को प्लेसेन्टा के द्वारा कई रोगों से बचाती है।

(5) जीवाणु संक्रमण से भ्रूण की रक्षा करता है।

(6) दवाओं का संवहन प्लेसेन्टा के द्वारा होता है।