मछलियों में प्रवास (Migration in fishes)

बहुत से जीवों की जनसंख्या भोजन के तलाश में, घोंसले बनाने के लिए, जनन के लिए या फिर विपरीत परिस्थितियों से बचाव हेतु एक निश्चित समय के लिए स्थान परिवर्तन करते हैं तथा अपना कार्य पूर्ण करने के पश्चात् वापस लौट आते हैं। इस स्थान परिवर्तन की क्रिया को प्रवास (Migration) कहते हैं |

कैन (Cahn) के अनुसार - प्राणियों का एक निश्चित समय या ऋतु में एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानान्तरण होना प्रवास कहलाता है |

प्रवास अनेक प्राणी समुदायों में पाया जाता है। मछलियों की अनेक जातियों में यह क्रिया पाई जाती है। इस तरह की मछलियों को जो कि एक निश्चित समय में स्थान परिवर्तित करती हैं, फिर कुछ समय पश्चात् वापस आ जाती हैं, प्रवासी मछलियाँ (Migratory fishes) कहते हैं |

प्रवास के कारण (Causes of Migration)प्रवास के लिए निम्नलिखित कारण हो सकते हैं -

  • आवश्यकतानुरूप भोजन की उपलब्धता |
  • प्रतिकूल वातावरण से बचने के लिए। वातावरण के परिवर्तन और भोजन की आवश्यकता के लिए प्राणियों में प्रवास होता है |
  • मछलियों में वार्षिक लैंगिक चक्र के द्वारा या लैंगिक अंगों के परिपक्व होने पर उनके शरीर में क्रियात्मक परिवर्तन होने लगते हैं, जिससे आवेग उत्पन्न होता है और मछलियाँ उपयुक्त जनन स्थलों को खोजने के लिए प्रवास करती हैं |
  • प्रवास के पूर्व परिवर्तित चयापचय क्रियाओं के कारण वसा एकत्रित होने लगती है, जो कि मछलियों को प्रवास के लिए प्रेरित करती हैं |
मछलियों में प्रवास (Migration in fishes) – बहुत सी मछलियों का आवासीय क्षेत्र बहुत छोटा होता है, जिससे वह अपनी सभी प्रकार की क्रियाएँ संपादित नहीं कर पाती हैं और प्रवास करती हैं। मछलियाँ प्रवास के समय समुद्र से नदियों की ओर या इसके विपरीत नदियों से समुद्र की ओर गति करती हैं। इस तरह से प्रवास दो प्रकार का होता है -

(i) केटाड्रोमस (Catadromous)इस तरह के प्रवास वाली मछलियों का मुख्य आवास नदियाँ होती हैं, जहाँ से वे समुद्री जल में प्रवास करती हैं |

उदाहरण - यूरोपियन ईल (European Eel)

(ii) ऐनाड्रोमस (Anadromous)इस तरह के प्रवास वाली मछलियों का प्रमुख आवास समुद्र होता है जहाँ से ये नदियों में प्रवास करती हैं |

उदाहरण - साल्मन (Salmon), हिल्सा (Hilsa) आदि |


प्रवासी मछलियों के उदाहरण (Example of Migratory Fishes)

(1) ईल (Eels)यह मछली केटाड्रोमस प्रवास का एक अच्छा उदाहरण है। ईल की दो जातियाँ प्रमुख हैं - एंगुइला रोस्ट्रेटा (Anguilla rostrata) यूरोप में और एंगुइला वल्गेरिस (Anguilla vulgaris) में पाई जाती है। शरद ऋतु के प्रारम्भ होते ही ईल मछलियाँ परिपक्व हो जाती हैं। ये मछलियाँ प्रवास के समय 5000 से 6500 किमी तक की दूरी तय करती हैं। जनन के लिए की जाने वाली प्रवास के समय इनमें निम्नलिखित परिवर्तन परिलक्षित होते हैं |

  • त्वचा की स्तर अधिक मोटी हो जाती है |
  • नेत्र बड़ी हो जाती हैं और रेटिना में क्राइसोप्सिन (Chrysopsin) नामक वर्णक का विकास हो जाता है।
  • जनद (Gonads) परिपक्व हो जाते हैं |
  • परासरणीय नियमन तन्त्र में परिवर्तन के कारण गिल ऊतक की कोशिकाएँ क्लोराइड को अधिक स्त्रावित करती हैं |
  • शरीर की पृष्ठीय सतह का रंग गहरा हो जाता है और अधरीय सतह सिल्वर (Silver) के समान सफेद होती है|
(2) हिल्सा हिल्सा (Hilsa hilsa) - यह भारतीय प्रवासी मछली है। नदियों में निर्मोचन के पश्चात् फ्राई (fry) अपने प्रारम्भिक जीवन का अधिकांश भाग ऐस्च्युरीस (Estuaries) में व्यतीत करती है और अन्तत: समुद्र में प्रवेश कर जाती है। इस तरह से यह मछली ऐनाड्रोमस प्रवास का एक अच्छा उदाहरण है। यह मछली समुद्र में प्रवेश करने के पश्चात् भोजन ग्रहण करती है और वयस्क मछली के रूप में वृद्धि करती है। समुद्र में ये मछली तटीय क्षेत्रों तक ही सीमित रहती हैं, तत्पश्चात् ये अण्डे देने के लिए नदियों में चली जाती हैं |

मछलियों में प्रवास का महत्व (Significance of Migration of Fishes) - जहाँ लाभ होता है, वहीं उनको बहुत-सी हानियाँ भी होती हैं -

लाभ - (1) प्रवास से अत्यधिक भोजन की प्राप्ति होती है।

(2) प्रवास से प्रजनन के लिए उचित स्थान एवं वातावरण प्राप्त होता है।

(3) प्रतिकूल परिस्थितियों से अपना बचाव कर सकती हैं।

हानि - (1) प्रवास के समय बहुत सी मछलियाँ शत्रुओं द्वारा खा ली जाती हैं।

(2) लम्बी दूरी के प्रवास में बहुत सी कमजोर मछलियाँ मर जाती हैं।

(3) मौसम में अचानक परिवर्तन के कारण बहुत-सी मछलियाँ मर जाती हैं।