अतिरिक्त भ्रूणीय झिल्ली

चिक भ्रूण में इनका विकास एक्स्ट्रा - भ्रूणीय ब्लास्टोडर्म (Extra-embryonic blastoderm) से होता है तथा ये भ्रूण के निर्माण में कोई भाग नहीं लेती है। इसलिए इन्हें एक्स्ट्रा-भ्रूणीय मेम्ब्रेन कहते हैं। इनका कार्य समाप्त हो जाने तथा अण्डे से शिशु बाहर आ जाने पर ये समाप्त हो जाती हैं। जिन जन्तुओं में यह पाया जाता है उसे एग्नियोट्स (Amniotes) कहते हैं।

एम्नियोट्स में यह मेम्ब्रेन तीन प्रकार की होती है

(1) योक सैक (Yolk sac)

चिक अण्डे में योक (Yolk) भ्रूण का मुख्य पोषक पदार्थ होता है। यह एक कोष के आकार की मैम्ब्रेन में बन्द रहता है, जिसे योक सैक कहते हैं। योक सैक, योक को चारों ओर से पूरी तरह से नहीं ढके रहता है। बल्कि वेण्ट्रल तल पर यह योक को एक छोटे छिंद्र द्वारा खुला रखता है। जिसके द्वारा बचा हुआ एल्ब्यूमेन भी पोषित पदार्थ के रूप में भ्रूण के द्वारा अवशोषित होता रहता है। जैसे-जैसे भ्रूण को वृद्धि होती है, योक सैक का आकार घटता चला जाता है। इस प्रकार हैचिंग (Hatching) के दो या तीन दिन पहले यह मिडगट द्वारा पूर्णतया अवशोषित कर लिया जाता है तथा इसके स्थान पर छोटा-सा उभार रह जाता है।

योक सैक के कार्य

(i) योक सैक योक की सुरक्षा करता है तथा साथ ही इसे इसकी निश्चित स्थिति में रखता है।

(ii) योक सैक से विकसित भ्रूण का पोषण होता है। इसकी ग्रंथिल दीवार पाचक एन्जाइम का स्रावण करती है, जो योक का पाचन कर उसे घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर देती है। इस प्रकार घुलनशील योक को योक सैक की दीवार अवशोषित करके भ्रूण को पोषित करती रहती है।

(2) ऐम्निऑन एवं कोरिऑन (Amnion and Chorion)

(a) ऐम्निऑन (Amnion) - पूर्ण विकसित ऐम्निऑन एक Private pond के रूप में होता है जिसके द्रव से भरी हुई ऐम्निऑटिक गुहा में भ्रूण सुरक्षित बंद रहता है। लगभग एक दिन या 24 घण्टे के इनक्यूबेशन के बाद जब प्रिमिटिव स्ट्रीक का निर्माण पूर्ण हो जाता है, तो भ्रूण नीचे को और योक में धँसने लगता है तथा इसके साथ एक्स्ट्रा-एम्ब्रियोनिक संरचनाओं से घिरता चला जाता है।

ऐम्निऑन के कार्य

(i) ऐम्निऑन में उपस्थित ऐम्निऑटिक द्रव विकसित भ्रूण के लिए एक रक्षात्मक गद्दी का कार्य करता है, अर्थात् वह भ्रूण की वातावरण के बाहरी धक्कों (Shocks) से रक्षा करता है।

(ii) ऐम्निऑटिक द्रव भ्रूण को सुखने (Desication) से बचाता है तथा तापमान को एक - सा बनाये रखता हैं।

(iii) यह विकसित भ्रूण को एल्ब्यूमेन से पोषण प्रदान करने में सहायक होता है।

(b) कोरिऑन (Chorion) - कोरिऑन का विकास ऐम्निऑन के विकास के साथ ही होता है। वास्तविक ऐम्निऑन के निर्माण के बाद सोमेटोप्ल्यूर का बाहरी स्तर सारी ऐम्निऑटिक कनैक्शन से अलग होकर कोरिऑन का निर्माण करता है। कोरिऑन का बाहरी स्तर एक्टोडर्म से तथा भीतरी स्तर सोमेटिक मीसोडर्म से बना होता है।

कोरिऑन के कार्य

कोरिऑन ऐलेण्टाइस के साथ मिलकर भ्रूण के श्वसन में सहायता करता है, जबकि ऐम्निऑन तथा कोरिऑन दोनों ही भ्रूण को कवच तथा कवच मैम्बैन के अन्दर कुछ गतिशील रखकर इसे इन संरचनाओं से चिपकने से रोकते रहते हैं। ऐम्निऑन तथा कोरियॉन का चिक-भ्रूण में परिवर्धन तीसरे दिन के इनक्यूबेशन की समाप्ति पर पूर्ण हो जाता है।

(3) ऐलेण्टॉइस (Allantois) - चिक भ्रूण की वृद्धि, उत्सर्जन तथा श्वसन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए इसमें ऐलेण्टॉइस मेम्ब्रेन का विकास होता है। लगभग 72 घण्टे या चौथे दिन के इनक्यूबेशन के पश्चात् जब चिक-भ्रूण में 28 जोड़ी सोमाइट्स का विकास हो जाता है, तो चिक - भ्रूण की हाइण्ड गट (Hind gut) के पिछले भाग को वैण्ट्रल दीवार से एक ब्लाइण्ड डाइवर्टिकुलम (Blind diverticulum) या उभार एक्स्ट्रा एम्ब्रिओनिक सीलोम में विकसित होता है। इस ब्लाइण्ड डाइवर्टिकुलम (Blind diverticulum) या उभार या ब्लेडर की आकृति के उभार को एलेण्टॉइस कहते हैं।

ऐलेण्टॉइस के कार्य (Functions of Allantois)

(i) कोरियो - ऐलेण्टॉइस अत्यन्त ही वैस्क्यूलराइज्ड (Vascularised) भाग होता है, अर्थात् इसमें ऐलेण्टॉइक ऑर्टिरिज तथा शिराओं की कैपिलरीज (Capillaries of allantoic arteries and veins) का जाल फैला रहता है। अतः यह भ्रूण के लिए एक मुख्य भ्रूणीय श्वसन अंग की तरह कार्य करता है।

(ii) यह एक भ्रूणीय यूरिनरी ब्लेडर या भ्रूणीय उत्सर्जी अंग की तरह कार्य करता है जिसमें भ्रूणीय उत्सर्जी पदार्थ जो ठोस यूरिक एसिड क्रिस्टल के रूप में एकत्रित होते रहते हैं

(iii) ऐलेण्टॉइस अण्डे का सफेद भाग या एल्ब्युमेन (Egg white or Albumen) को अवशोषित करके विकसित भ्रूण का पोषण भी करता है।