सिलैजिनेला में बीज प्रकृति (Seed Habit in Selaginella)
सिलैजिनेला (Selaginella) में बीज प्रकृति का उदगम दो पदों के अनुसार हुआ है | प्रथम विषमबीजाणुता (Heterospory) को मानना और द्वितीय मेगास्पोरेंजियम के अन्दर एकल मेगास्पोर की धारण शक्ति का पाया जाना तथा मेगास्पोरेंजियम के अंदर ही मेगास्पोर का अंकुरण होना | यह दोनों बाते बीज प्रकृति को स्थापित करने के लिए जिम्मेदार मानी जाती है जो टेरीडोस्पर्मोफाईट का प्रमुख लक्षण होता है |
संक्षेप में बीज प्रकृति का उदगम (Origin) निम्नलिखित प्रमुख गुणों से सम्बंधित है -
- दो प्रकार के बीजाणुओ (Spores) का पाया जाना, अर्थात विषमबीजाणुता (Heterospory) को प्रदर्शित करना |
- पादप पर लगे हुए ही मेगास्पोर (Megaspore) की धारण शक्ति एवं अंकुरण का पाया जाना तथा अंड का निषेचन (Fertilization) होकर भ्रूण (Embryo) का निर्माण होना |
- एक मेगास्पोरेंजियम में केवल एक मेगास्पोर का परिवर्धित होना |
स्पर्मेटोफाइट्स तथा सिलैजिनेला में मादा उत्पादक संरचनाओं का सारांश निम्न प्रकार से प्रस्तुत है -
सिलैजिनेला की भाँती स्पर्मेटोफाइट्स में गुरुबीजणु के पूर्ण परिपपक्व होने से पूर्व ही इसमें अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है | परिपक्व गुरुबीजाणु (भ्रूणकोष) गुरु बीजाणुधानी (बीजाण्ड) से पृथक नही होता है, अर्थात स्थायी रूप से इसके अन्दर रहता है | जब गुरुबीजाणुधानी (बीजाण्ड) अपने मातृ स्पोरोफिटिक पौधे से संलग्न रहता है तो उसमे निषेचन (Fertilization) होने लगता है | निषेचन के पश्चात गुरुबीजाणुधानी का बाहरी उत्तक अध्यावारण (Integuments) कठोर होकर सुरक्षात्मक आवरण बनाते है जिसके अन्दर मादा युग्मकोदभिद (Female Gametophyte), स्पोरोफाईट भ्रूण पाए जाते है | कुछ समय के बाद गुरुबीजाणुधानी (बीजाण्ड) नीचे गिर जाते है तथा सामूहिक संरचनाए अर्थात अध्यावारण युक्त गुरु बिजाणुधानी जिसमे युग्मकोदभिद तथा उन्नत भ्रूण होते है, बीज (Seed) कहलाता है |
स्पर्मेटोफाइट्स का प्रारुपी बीज परिपक्व अध्यावारण युक्त गुरुबीजाणुधानी को प्रदर्शित करता है जिसमे एक गुरुबीजाणु उपस्थित होता है जो युग्माकोदभिद को उत्पन्न करता है तथा निषेचन के पश्चात उन्नत भ्रूण बनता है | ये क्रियाए गुरुबीजाणुधानी के मातृ पौधे से संलग्न होने पर होती है | दुसरा प्रमुख नया लक्षण बीज प्रकृति से होता है जिसमे भ्रूण की अस्थायी वृद्धि भ्रूण के निलंबन की किसी अवस्था में हो सकती है जिसे विश्राम अवस्था कहते है |
सिलैजिनेला में बीज प्रकृति निम्नलिखित लक्षणों के फलस्वरूप होती है -
- सिलैजिनेला विषमबीजाणुता प्रदर्शित करता है |
- गुरुबीजाणुधानी के अन्दर ही गुरुबीजाणु का अंकुरण होता है और यह कुछ समय तक मातृ पौधे से पृथक नही होती है | यह जातियों के अनुसार होती है |
- सिलैजिनेला की कुछ जातियों जैसे सी. रुपेस्ट्रिस (S. Rupestris) तथा सी. मोनोस्पोरो (S. Monospora) की गुरुबीजाणुधानीयो में हासित होकर केवल एक गुरुबीजाणु पाया जाता है | इस प्रकार की प्रक्रिया अन्य जातियों में सुनिश्चित करती है | सी. रुपेस्ट्रिस की गुरुबीजाणुधानी में हासित होकर केवल एक गुरुबीजाणु का पाया जाना उस समय अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब उसमे न केवल स्त्रीधानीया उत्पन्न होती है, बल्कि निषेचन क्रिया द्वारा भ्रूण का निर्माण होता है जिससे मुले तथा बीजपत्र गुरुबीजाणु से बाहर निकल आते है जबकि गुरुबीजाणुधानी अपने मातृ पौधे के शंकु से संलग्न रहती है अतः सी. रुपेस्ट्रिस आवृतबीजीयो के पितृस्थ अंकुरण से समानता प्रदर्शित करता है |
अधिकतर जातियों में स्पष्ट विश्राम अवधि नही होती है किन्तु भ्रूण की अवधि रुकती नही है | वरन इसमें सतत वृद्धि होती रहती है जिसके फलस्वरूप गुरुबीजाणु (Megaspore) से प्ररोह (Shoot) तथा राइजोफोर ( Rhizophore) बाहर निकल जाते है | वास्तव में सिलैजिनेला के एक बीजाणु वाली गुरुबीजाणुधानी की ऎसी परिकल्पना हो जिसमे अंड निषेचन के फलस्वरूप भ्रूण का निर्माण करे जबकि वह अध्यावारण सहित गुरुबीजाणुधानी से घिरा हुआ हो और इसके भ्रूण में विश्रामावस्था पायी जाती हो तो हम उसे स्पर्मेटोफाइट्स का आकारिकीय बीज कह सकते है |