बीज वाले पौधों के अभिलाक्षाणिक गुण | Characteristics Of Seed Plants
बीजधारी (Spermatophyta) के पादपो को दो समूहों (1) आवृतबीजी (Angiosperms) तथा (2) अनावृतबीजी (Gymnosperms) में विभक्त किया गया है | आवृतबीजी वह पादप होते है जिनमे बीज (seed) अण्डाशय (Ovary) में सुरक्षित रहता है |सन 1827 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक ब्राउन (Brown) ने स्पष्ट कर दिया कि अनावृतबीजीयो में अंडप पर बीज नग्न उत्पन्न होते है तथा वे अण्डाशय के अन्दर वे सुरक्षित नही रहते है | तभी से यह भेद आवृतबीजीयो तथा अनावृतबीजीयो में माना जाता है | केटोनिएल्स (Caytoniales) के पादप संवहनी पौधे कहलाते है
किन्तु थामस (Thomas) ने अपनी खोज के आधार पर सिद्ध कर दिया कि केटोनिएल्स की बीज बहुत अच्छी प्रकार से अण्डाशय में पूर्ण सुरक्षित रहते है अतः उन्होंने इस वर्गको आवृतबीजी की मान्यता प्रदान की परन्तु कुछ समय बाद इसी वैज्ञानिक ने इस वर्ग के पौधों को अनावृतबीजी स्वीकार किया क्योकि इस वर्ग के पौधों में परागण (Pollination) के समय परागकण एक विशिष्ट ग्राही सतह पर पहुचते है जो वार्तिकाग्र कहलाती है और इसके पश्चात परागकण पराग नलिका का निर्माण करते है जिसे बीजांड (ovule) तक पहुचने में कम अथवा अधिक दूरी तय करनी पड़ती है यह दूरी वर्तिका की लम्बाई के अनुसार तय करनी होती है |
इसके अतिरिक्त कुछ दशाब्दियो में आवृतबीजी के कुछ ऐसे वंशो की खोज की गयी है जिनमे अंडप कम अथवा अधिक खुला रहता है, इसका उदाहरण फिजी का डीजोनेरिया विटिएन्सिस है | अतः अंडप के खुले व बंद होने के आधार पर आवृतबीजीयो तथा अनावृतबीजीयो को विभेदित किया जा सकता है |
बीज वाले पौधे के लाक्षणिक गुणों को निम्न प्रकार से दर्शाया गया है -
1. वितरण (Distribution) - आवृतबीजी पादपो का समूह विश्वव्यापी होता है | यह गहरी झीलों से मरुस्थल, समुद्रतल से ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की चोटियों जैसी विषम परिस्थितियों में वितरित होती है | मरुदभिद पौधे जैसे नागफनी (Opuntia) तथा कुल केक्तेसी (Family Cactaceae) के पौधे शुष्कता के लिए प्रतिरोधी होते है, मरुस्थल पर उगते है जहा पर वर्षा बहुत कम होती है |
कुल क्रेसीलुएसी (Family Crassulaceae) का पौधा सीडम नंगी चट्टानों पर उगता हुआ पाया जाता है दूसरी ओर कुल हायड्रोकेरीटेसी के पौधे जैसे हाईड्रीला जल में निमग्न रहते है अर्थात शुष्कन के लिए संवेदनशील रहते है | इसके एक विशिष्ट समूह के पौधे मेग्रोव कहलाते है | ये पौधे समुद्र के खारी जल व दलदली स्थानों पर उगते है जैसे राइजोफोरा आदि | उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में कुल आर्कडेसी के अधिपादप जैसे आर्किड आदि पाए जाते है | कुल ब्रोमोलिएसी का टिल्लेन्डसिया अस्नीआयडिस नामक पौधा जो दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाता है, टेलीग्राफ के तारो पर ख़ास तौर से उगता हुआ पाया जाता है | इस प्रकार का पादप का वितरण अनावृतबीजीयो में देखने को मिलता है |
2. स्वभाव (Habit) - आवृतबीजी पौधे अनावृतबीजी पौधों से प्रतिकूल स्वभाव वाले होते है और वे विभिन्न प्रकार की विविधताए प्रदर्शित करती है | आवृतबीजीयो के अंतर्गत शार्को, एकवर्षी, द्विवर्षी, तथा बहुवर्षी झाड़ियो तथा वृक्षो को प्रदर्शित किया गया है | किन्तु अनावृतबीजीयो में शाकीय पौधे नही पाए जाते है | इनके पौधे सीधे तथा आरोही हो सकते है अर्थात इनमे विविधता का अधिक परिसर पाया जाता है |
3. कार्यकी का परिसर (Range of Physiology) - अधिकतर आवृतबीजी पौधे स्वयंपोशी होते है | किन्तु इस वर्ग में मृतोपजीवी जैसे मोनोट्रोपा आदि भी पाए जाते है | अंगूर की पौधों की जड़ो पर रेफ्लीशिया आर्नोलडाई पूर्ण परजीवी होता है जो विश्व का व्रीहदतम पुष्प उत्पन्न करता है जिसमे सड़े मांस की गंध आती है स्ट्राइगा डेन्सीफ्लोरा तथा चन्दन आंशिक मूल परजीवी होते है अमरबेल तथा कैसीथा पूर्ण स्तम्भ परजीवी होते है | इसी प्रकार कुल लोरेन्थेसी के सदस्य आंशिक स्तम्भ परजीवी होते है | अन्य पौधे जैसे निपेंथीस एल्ड्रोवेन्डा ड्रोसेरा तथा यूटीकुलेरिया आदि कीट भक्षी होते है जो कीटो से नाईट्रोजन युक्त पदार्थ पोषण के लिए प्राप्त करते है | इसके विपरीत अनावृतबीजीयो के पोषण में इस प्रकार की विविधताए नही पाए जाते है |